Anand Kumar
रोबो-एडवाइज़र तो आएंगे ही. इसे थोड़ा और स्पष्ट करता हूं. मैं ख़ासतौर पर जनरल पर्सनल फाइनांस पर सलाह और म्यूचुअल फ़ंड निवेश पर दी जाने वाली सलाह की बात कर रहा हूं, जो आने वाले समय में पक्का ही रोबो-एडवाइज़र दिया करेंगे.
जब मैं रोबो-एडवाइज़र कहता हूं, तो मेरा मतलब एक असली इंसानी सलाहकार के बजाए एक ऑटोमैटिक, सॉफ़्टवेयर से चलने वाली सलाह से बदलना. हालांकि, यहां एक सावधानी रखने की ज़रूरत है जो मेरे ज़्यादातर पाठकों को चौंकाएगी: रोबो-एडवाइज़र से मेरा मतलब 'AI' नहीं है, कम-से-कम उस अर्थ में नहीं जिस अर्थ में आज इस शब्द का इस्तेमाल होता है. सटीक तौर पर कहूं, तो मेरा मतलब लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) से चलने वाला AI नहीं है.
मैं अपने बताए दो बातें स्पष्ट करता हूं. म्यूचुअल फ़ंड निवेशकों में से ज़्यादातर लोगों को किसी की सलाह की ज़रूरत होती ही है. ये ख़ासतौर पर तब सच होता है जब वे निवेश शुरू करते हैं. हालांकि, तब जो पैसा वो निवेश कर रहे होते हैं वो उनके लिए किसी बड़े और सक्षम सलाहकार से पर्सनल, इंसानी सलाह पाने के लिए काफ़ी नहीं होता. इससे कई निवेशक, ख़ासकर मध्यम वर्गीय या करियर के शुरुआती दौर वाले युवा निवेशकों के लिए निवेश में उतरने में एक बड़ी रुकावट पैदा करता है. अच्छी क्वालिटी वाले इंसानी सलाहकारों की फ़ीस ऐसी होती है जो छोटे निवेश पोर्टफ़ोलियो के लिए बिल्कुल सही नहीं होती. नतीजा, कई नए निवेशकों को म्यूचुअल फ़ंड की जटिल दुनिया में ख़ुद ही रास्ता तलाशना पड़ता है, जिससे अक्सर निवेश के फ़ैसले ख़राब हो जाते हैं या इससे भी बुरा होता है कि बहुत से लोग निवेश करने से पूरी तरह दूर हो जाते हैं.
यहीं पर आते हैं रोबो-एडवाइज़र, जो एक बड़ी खाई पाट देते हैं. एल्गोरिदम और पहले से तय रूल्स के आधार पर ये स्टैंडर्ड लेकिन निजी सलाह दे सकते हैं, जो ताज़े-ताज़े निवेशकों के लिए बेहद क़ारगर हो सकती है. इसके अलावा, ये रोबो-एडवाइज़र बड़े पैमाने पर काम कर सकते हैं, एक साथ हज़ारों लोगों को सर्विस दे सकते हैं, जिससे वे निवेशकों और वित्तीय संस्थानों के लिए एक सस्ता समाधान बन हो जाते हैं. जैसे-जैसे भारतीय बाज़ार परिपक्व होगा है और ज़्यादा लोग निवेश सलाह चाहेंगे, तब हम असल में इन ऑटोमैटिक एडवाइज़र सर्विस का फैलना देखेंगे, जो फ़ाइनांस की सलाह को ज़्यादा लोगों तक पहुंचा कर इसका लोकतंत्रीकरण करेगी.
अब आते हैं तथाकथित 'AI' पर. सलाह चाहे कोई भी दे, उसे पारदर्शी, समझ में आने वाली और इस्तेमाल के लायक़ होना चाहिए. मिसाल के तौर पर अगर सलाह में कहा जाए कि अपने पैसे का 30 प्रतिशत सोने में निवेश करें. सिस्टम के नियमों में स्पष्ट और समझने लायक़ तर्क होना चाहिए. इसके अलावा, पारदर्शिता और कम्प्लायंस के लिए, सलाह देने वाले संस्थान ये साफ़-साफ़ बताने में सक्षम होने चाहिए कि कोई भी सलाह क्यों दी गई है. ये ज़रूरतें LLM नहीं पूरा कर सकता.
इसके बजाय, एक ऑटोमैटिक एडवाइज़री सिस्टम को स्पष्ट रूप से बताए गए नियमों के सेट से अपने निष्कर्ष निकालकर एक इंसानी एक्सपर्ट को फ़ॉलो करना चाहिए और उसे इंसानी एक्सपर्ट द्वारा किए जाने वाले काम पर आधारित होना चाहिए. जो लोग AI का इतिहास जानते हैं, वे मुस्कुरा रहे होंगे क्योंकि जो बात मैंने अभी कही है - जानबूझकर - वो एक 'एक्सपर्ट सिस्टम' का वर्णन है, जिसे पहले AI समझा जाता था.
एक्सपर्ट सिस्टम एक तरह का AI है जो किसी ख़ास क्षेत्र में इंसानी एक्सपर्ट के फ़ैसले लेने की प्रक्रिया की नकल करता है. विकिपीडिया बताता है कि इसे 1970 के दशक में विकसित किया गया था और 1980 के दशक में सफलता मिलने वाली शुरुआती AI तकनीकों में से एक के तौर पर लोकप्रियता मिली. इस दौरान, उन्हें बड़े पैमाने पर AI रिसर्च और एक्सपेरिमेंट की दिशा में आगे देखा गया. ध्यान दें, एक एक्सपर्ट सिस्टम की विशेषज्ञता ख़ास क्षेत्र या डोमेन की होती है, ठीक वैसे ही जैसे कोई इंसान किसी एक विषय का एक्सपर्ट होता है. मज़ेदार ये है कि मौजूदा रोबो-एडवाइज़र और इसी तरह के सिस्टम एक एक्सपर्ट सिस्टम से काफ़ी मिलते-जुलते हैं, और बेहतर तरीक़े से डिज़ाइन किए गए सिस्टम उसी दायरे के भीतर काफ़ी अच्छी तरह काम करते हैं. निवेश की दुनिया में कई एक्सपर्ट सिस्टम हैं, भले ही ज़्यादातर इसी शब्द का इस्तेमाल करते हों. स्प्रेडशीट से लेकर वैल्यू रिसर्च के नए फंड एडवाइज़र सिस्टम तक, ये परिभाषा कई सिस्टम पर फ़िट बैठती है, फिर भले ही आज किसी को भी AI नहीं कहा जाता क्योंकि शब्द के अर्थ बदल गए हैं.
भारत में बड़े पैमाने पर फ़ाइनेशियल एडवाइज़ और गाइडेंस का भविष्य अ-पारदर्शी AI सिस्टम के बजाय इन नियम-आधारित, पारदर्शी रोबो-एडवाइज़रों के इर्द-गिर्द बनाया जाना चाहिए. जबकि LLM और दूसरी अत्याधुनिक AI तकनीकें अपनी जगह बना सकती हैं, फ़ाइनांस पर फ़ैसलों की अहमियत का स्वभाव ज़्यादा जवाबदेह नज़रिए की मांग करता है.