Anand Kumar
भले ही प्रॉपर्टी की बिक्री पर नए प्रस्तावित टैक्स को कम किया जा रहा है, लेकिन स्टॉक और म्यूचुअल फ़ंड पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स अब एक सच्चाई बन चुका है. इस टैक्स को लागू हुए सात साल हो चुके हैं, और अब तक एकमात्र बदलाव यही हुआ है कि इस साल, इसका रेट 10 प्रतिशत से बढ़कर 12.5 प्रतिशत हो गया है. अब न केवल स्टॉक और इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड बल्कि कई दूसरे निवेशों के लिए एक जैसा रेट है. हालांकि, ये समानता बस यहीं तक ही है. जो निवेशक लंबे समय के दौरान रिटर्न कमाना चाहते हैं और इक्विटी-आधारित परिसंपत्तियों से असल में पैसा बनाना चाहते हैं, इस टैक्स स्ट्रक्चर के कारण उनके लिए और भी ज़रूरी हो गया है कि वो ध्यान दें कि वो कहां निवेश कर रहे हैं और कब ख़रीदते-बेचते हैं.
सबसे बड़ी बात है कि स्टॉक की तुलना में म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करना (टैक्स के लिहाज़ से) कहीं ज़्यादा फ़ायदे का सौदा है. जहां ये फ़रवरी 2018 से ही सच रहा है, वहीं इस बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स बढ़ने की वजह से ये और भी अहम हो गया है. वैसे, पहले भी, कई निवेशक टैक्स को नज़रिए से इस बात की अहमियत नहीं समझते थे.
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इसके अंतर्निहित सिद्धांत को मैं फिर से दोहराता हूं. सभी इक्विटी पोर्टफ़ोलियो में कुछ ख़रीदने या बेचने की ज़रूरत होती है क्योंकि कोई न कोई स्टॉक कम या ज़्यादा पसंदीदा हो ही जाता है. ये तब भी होता है जब आप स्टॉक चुनने में माहिर होते हैं और ज़्यादातर स्टॉक्स कई साल तक अपने पास रख सकते हैं. समय बीतता है, परिस्थितियां बदलती हैं, कंपनियां और बाज़ार विकसित होते हैं, और पहले के अच्छे स्टॉक बेचने पड़ते हैं और कुछ बेहतर ख़रीदना पड़ता है. अगर आप ख़ुद स्टॉक में निवेश कर रहे हैं, तो इस लेन-देन पर टैक्स लगता है.
हालांकि, एक इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड में, फ़ंड मैनेजर फ़ंड के भीतर ही ख़रीदने-बेचने का काम कर लेता है. आप पर कोई टैक्स नहीं लगता, क्योंकि आपने ख़ुद ये लेन-देन नहीं किया होता. इसके अलावा, ये बात केवल टैक्स के पैसे तक ही सीमित नहीं है. समय के साथ, इसका बड़ा असर इस पैसे के भविष्य में बढ़ने से पड़ता है. आप इस साल (काल्पनिक रूप से) कोई दो लाख रुपये लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स का भुगतान कर सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं करना हो, तो पांच साल बाद, ये पैसा बढ़ कर 5 लाख रुपये हो सकता है. ये बचाए गए टैक्स का एक और फ़ायदा है क्योंकि आपका पैसा टैक्स में जाने के बजाए निवेश में लगा रहता है और इस तरह से आपका मुनाफ़ा और बढ़ जाता है. लंबे समय के निवेश में बरसों की कंपाउंडिंग के दौरान, यही पैसा बहुत बड़ा अंतर ला सकता है. ज़ाहिर है, इस तरह की कंपाउंडिंग का फ़ायदा पाने के लिए, आपको एक ऐसे एसेट में निवेश करना होगा, जिसमें बार-बार ख़रीदने और बेचने का झंझट न हो और ऐसा निवेश एक डायवर्सिफ़ाइड इक्विटी फ़ंड होता है. आप सोच रहे होंगे कि मैं ख़ासतौर पर डायवर्सिफ़ाइड ही क्यों कह रहा हूं. तो एक बार फिर कहता हूं, इसका कारण है कि सेक्टोरल, थीमैटिक या दूसरे ख़ास फ़ंड्स के लिए आपको अपनी होल्डिंग्स को ज़्यादा बार एडजस्ट करने की ज़रूरत होगी, जबकि डायवर्सिफ़ाइड फ़ंड्स में ऐसा नहीं होगा.
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एक और स्थिति है जिसमें आपको निवेश ख़रीदने-बेचने की ज़रूरत हो सकती है, और वो है एसेट रीबैलेंसिंग के लिए. कभी न कभी ऐसा होगा कि आप अपने कुछ पैसे इक्विटी से फ़िक्स्ड इनकम में ट्रांसफ़र करना चाहेंगे. और इसका इलाज हाइब्रिड फ़ंड हैं. असल में, एक हाइब्रिड फ़ंड जिसका डेट-इक्विटी के बीच का बैलेंस आपके सोचे हुए एसेट एलोकेशन से मेल खाता है, वही आपका सबसे स्थिर निवेश हो सकता है. जब तक आपको पैसे के इस्तेमाल के लिए इसे भुनाने की ज़रूरत नहीं होगी, तब तक इसे बेचने की ज़रूरत भी नहीं होगी.
इसमें एक बात समझने की है और ये काफ़ी दिलचस्प है जिसे कम ही निवेशक समझते हैं, और वो है NPS टियर-2. NPS टियर-2 मूल रूप से सस्ते म्यूचुअल फ़ंड का एक संग्रह है जो NPS टियर-1 मेंबरों के लिए उपलब्ध होता है. टियर-1 के विपरीत, उन्हें किसी भी दूसरे फ़ंड की तरह ख़रीदा और बेचा जा सकता है. हालांकि, आप एक प्लान से दूसरे प्लान में जा सकते हैं - और इस तरह बिना कैपिटल गेन्स टैक्स दिए अपना एसेट एलोकेशन बदल सकते हैं. मेरा सुझाव है कि NPS टियर-1 वाले हर म्यूचुअल फ़ंड निवेशक को टियर-2 को बारीक़ी से समझना चाहिए और उसमें मौजूद फ़ंड्स को अपने म्यूचुअल फ़ंड के विकल्प के तौर पर देखना चाहिए.
वैसे, मेरी इस पूरी चर्चा में से चाहे कितनी ही बातें आप पर लागू हों, एक म्यूचुअल फ़ंड निवेशक के तौर पर आपको अपने निवेश के विकल्पों पर लगने वाले टैक्स की पूरी समझ होनी चाहिए. अब ये ऐसी चीज़ नहीं रह गई है जिसे आप अनदेखा कर सकते हैं.
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