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ये बजट की बात नहीं

आज यहां बात करेंगे कि ये बजट आपके निवेशों के रिटर्न के लिए क्या नहीं करता और असल में क्या करता है

ये बजट की बात नहींAnand Kumar

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5:19

व्यक्ति 1: बजट बेहद ख़राब है. लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स का मुनाफ़ा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है.

व्यक्ति 2: लेकिन देखिए, बुनियादी ढांचे का कितना ज़बरदस्त निर्माण हो रहा है और देखिए, कोविड और दूसरी कई चुनौतियों के बावजूद सरकार ने किस तरह से राजकोषीय संतुलन बनाए रखा है. दुनिया भर में कोई भी दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था ऐसा करने में क़ामयाब नहीं हुई है. विकास दर देखिए!

व्यक्ति 1: तो इसका मेरे टैक्स से क्या लेना-देना है? मैंने मार्केट से प्रॉफ़िट कमाया और अब उस प्रॉफ़िट पर 25 प्रतिशत ज़्यादा टैक्स लगेगा.

बजट को लेकर ये बातचीत हू-ब-हू किसी की नकल नहीं है, मगर सोशल मीडिया और हमारे आसपास चल रही बातों जैसी ही है. मैं इस बात से अचरज में हूं कि बहुत से लोग अर्थव्यवस्था में हो रही गतिविधियों और इक्विटी और म्यूचुअल फ़ंड निवेशों से कमाए अपने पैसों के बीच कोई संबंध नहीं देख पा रहे हैं.

इतना सीधे-सपाट अंदाज़ में ऐसा कहने के लिए मुझे खेद है, और यक़ीन है कि बहुत से लोग इसके लिए मुझे नापसंद करेंगे. लेकिन आपके और मेरे लिए मार्केट में पैसा बनाने में सबसे बड़ा योगदान निवेशक के तौर पर हमारी कथित प्रतिभा का नहीं, बल्कि उसका है जिसे मैं "भारत की टेलविंड" कहता हूं. हम इसलिए पैसा नहीं कमा पाए हैं क्योंकि हम महान (या अच्छे भी) निवेशक हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि भारतीय इक्विटी मार्केट दस साल में 3x - 4x ऊपर गया है. जैसा कि एक मज़ाकिया शख़्स ने X पर कहा, कैपिटल गेन्स टैक्स से बचने का एक पक्का तरीक़ा है महंगा ख़रीदो और सस्ता बेचो. ये सिर्फ़ एक मज़ाक नहीं है. अगर हमें इस हाई-ग्रोथ वाली अर्थव्यवस्था में रहने का सौभाग्य नहीं मिला होता, तो हमारे कई निवेशों के लिए 'महंगा ख़रीदो, सस्ता बेचो' अपने आप हो गया होता और फिर हमें कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर शिकायत करने का कोई मौक़ा नहीं मिलता. मैं आपके लिए तो नहीं कह सकता, लेकिन अपने लिए अच्छी तरह जानता हूं कि मैं बिना मुनाफ़े वाली, बिना टैक्स वाली अर्थव्यवस्था के बजाय ऊंची ग्रोथ और अच्छी तरह से चलने वाली अर्थव्यवस्था में रहने के लिए आभारी हूं.

मार्केट से जुड़े जो दूसरे टैक्स बढ़ा है, उसमें डेरिवेटिव ट्रेडिंग पर सिक्योरिटीज़ ट्रांज़ैक्शन का टैक्स शामिल है. अगर ये असल में डेरिवेटिव मार्केट में चल रहे बेलगाम जुए को रोक सकता है, तो ये एक अच्छी बात होगी. शायद इसका कुछ असर हो जाए, या शायद कई लोगों के लिए ये लत बहुत गहरी हो चुकी है. हाल ही में, मैंने टीवी पर किसी को कहते सुना कि STT (सिक्योरिटीज़ ट्रांज़ैक्शन टैक्स) और कैपिटल गेन टैक्स सिगरेट के पैकेट पर लिखी वैधानिक चेतावनी की तरह हैं. पक्के नशेड़ी जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं, वे जानते हैं कि बीमारियां उनके रास्ते में हैं, लेकिन उनमें से ज़्यादातर अपनी मदद नहीं कर सकते. डेरिवेटिव ट्रेडिंग के आदी लोगों के साथ भी यही सच है. बीमारी के साथ मेरी तुलना आकस्मिक नहीं है. अगर आप ऑनलाइन 'कंपल्सिव गैंबलिंग डिसऑर्डर' के बारे में सर्च करें, और वहां लिखे लक्षणों को देखें, तो आप समझ जाएंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं.

बेशक़, अगर सरकार असल में इस पर लगाम कसना चाहती है, तो उसे केवल मांग को कम करने की कोशिश करने के बजाय सप्लाई को सीमित करने पर ध्यान देना होगा. ऐसा नहीं हो सकता कि स्टॉक एक्सचेंज और ब्रोकर इसको बढ़ावा देते रहें और हम जुआरियों को हतोत्साहित करने के लिए STT पर अपनी उम्मीदें टिकाए रखें.

इस बजट ने निवेश के लिए एक नया और दिलचस्प रास्ता खोला है, वो है नई 'NPS वात्सल्य' योजना. बुनियादी तौर पर, ये एक शुरुआती NPS विकल्प है, जिसके तहत मां-बाप अपने नाबालिग बच्चों के लिए NPS अकाउंट खोल सकते हैं और जब बच्चे 18 साल के हो जाते हैं, तो अकाउंट रेग्युलर NPS में बदल जाता है. इस इंप्लॉयर के ज़्यादा योगदान की अनुमति मिलने से भी NPS को बढ़ावा मिला है. हालांकि इस तरह के बदलाव, बजट की हेडलाइनों के शोर में दब जाते हैं, लेकिन जीवन पर इसका असर कहीं बड़ा होगा.

कुल मिलाकर, जब धूल का गुबार छंट जाएगा, तो ये मामूली बदलावों वाला बजट कहलाएगा, और यही होना चाहिए. मैं अपने पाठकों से ये नहीं कहने जा रहा हूं कि इसमें कुछ ऐसा है जो बहुत फ़ायदेमंद होगा या कुछ ऐसा है जो आपको बर्बाद कर देगा. हमारे पास एक स्थिर और ऊंची ग्रोथ वाला माहौल है, जो निवेश के रिटर्न का असली ज़रिया बना रहेगा. ठीक वैसे ही जैसा अतीत में रहा है. रिटर्न यहीं से आ रहा है, और यहीं से आना जारी रहेगा.


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