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तीन ज़िंदगियां और तीन मौतें

जिम सिमंस एक महान निवेशक थे, मगर अपनी तरह के अनोखे

तीन ज़िंदगियां और तीन मौतें

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चार्ली मंगर, डैनियल काह्नमैन और जिम सिमंस. पिछले कुछ महीनों में तीन ऐसे लोगों की मौत हुई है जिनका जीवन और काम बहुत से लोगों के साथ-साथ निवेशकों के लिए भी दिलचस्प रहा. इन तीनों में, अक्सर ही मंगर और काह्नमैन बरसों से मेरे लेखन का हिस्सा बनते रहे रहे हैं. मगर, जिम सिमंस का ज़िक्र मैंने शायद ही कभी किया हो, फिर भले ही कुछ मायनों में उनका जीवन सबसे दिलचस्प रहा.

सिमंस, जिनका पिछले सप्ताह 86 साल की उम्र में निधन हुआ, एक असाधारण प्रतिभा थे. अपने जीवन के पहले हिस्से में, वो एक अकादमिक गणितज्ञ थे, या, सटीक तौर पर कहें तो, एक ज्यामितिज्ञ (geometer) थे. जब वो 40 साल के थे, तब उन्होंने फ़ैसला लिया कि इक्विटी मार्केट को पूरी तरह से स्टेटेस्टिकल या सांख्यकीय तकनीक से समझा जा सकता है और उसकी भविष्यवाणी की जा सकती है. उन्होंने एक इन्वेस्टमेंट फ़र्म की स्थापना की और गणित, और गणित से जुड़े कई क्षेत्रों से लोगों को काम पर रखा. क़रीब एक दशक तक संघर्ष करने के बाद, 1987 के आसपास, जिन तकनीकों पर उन्होंने काम किया था, वो इस हद तक विकसित हो गईं कि सफल होने लगीं.

1988 से 2018 तक, उनकी निवेश फ़र्म द्वारा संचालित मेडेलियन फ़ंड का कुल सालाना रिटर्न 66 प्रतिशत था. और भारी फ़ीस के बावजूद, औसत सालाना रिटर्न 39 प्रतिशत बैठता था. इस पूरे अर्से में, इकलौता नेगेटिव साल 1989 रहा, जब फ़ंड को सिर्फ़ 3 प्रतिशत का घाटा हुआ. ये नंबर पूरी तरह से सर चकरा देने वाले लगते हैं, और हैं भी. मैं जानता हूं मेरे ज़्यादातर पाठक क्या सोच रहे होंगे. इतने बरस में ये रिटर्न तो कंपाउंड हो कर खरबों डॉलर का हो जाना चाहिए था. बात सही है, अगर कंपाउंडिंग होती, तो ऐसा हो गया होता, लेकिन यहीं पर फ़ंड की सबसे दिलचस्प बात आती है: फ़ंड में एसेट्स इकट्ठे करने की इजाज़त नहीं थी. जिम सिमंस ने मेडेलियन फ़ंड का साइज़ 10 बिलियन डॉलर तक सीमित कर दिया था, जिसका मतलब था कि एक सीमा के बाद, हर साल निवेशकों को ज़्यादातर रिटर्न का भुगतान किया जाता था. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि मेडेलियन जिन स्टेटेस्टिकल तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे थे, वो केवल एक निश्चित स्केल तक ही काम कर सकती थीं. साइज़ को सीमित करने के लिए, फ़ंड को 1995 में नए निवेशकों के लिए बंद कर दिया गया और फिर कभी इसे नहीं खोला गया. असल में, 2005 तक, सभी बाहरी निवेशकों को फ़र्म ने ख़रीद लिया था, और उसके बाद से, फ़ंड में केवल कर्मचारियों और पूर्व कर्मचारियों का ही निवेश रहा है.

हर नज़रिए से, ये कहानी निवेश की दुनिया की सबसे अजीबोग़रीब कहानियों में से है. यही वजह है कि एक निवेश लेखक और शिक्षक के तौर पर मैंने जिम सिमंस के बारे में कभी नहीं लिखा. जिम सिमंस और उनकी टीम की सफलता हमारे निवेश के जीवन में, आपके और मेरे लिए, कोई वास्तविक सबक़ नहीं देती. बफ़े, मंगर, या दूसरे कई सफल निवेशकों से उलट, ऐसा कुछ भी नहीं करती जिसे हम अपना सकें.

जिम सिमंस की कहानी असाधारण समझ और ग़ैर-परंपरागत तरीक़ों की है, जो उन्हें निवेश की दुनिया में एक अलग ही मक़ाम देती है. जबकि बफ़े या, मंगर, और काह्नमैन ने अपनी समझ और ज्ञान की पेशकश इस तरह की जिसे एक औसत निवेशक अपना सकता था, मगर सिमंस का नज़रिया तो पूरी तरह से एक अलग ही तरह का जंतु था. एडवांस गणितीय मॉडल और स्टेटेस्टिकल अनालेसिस पर उनकी निर्भरता न केवल इनोवेटिव थी बल्कि निवेश का ये अद्भुत कौशल ख़ासतौर से उनकी फ़र्म तक ही सीमित था. यही कारण है कि उनकी अभूतपूर्व सफलता के बावजूद, उनके तरीक़े आम निवेशकों के लिए काफ़ी हद तक दूर ही रहे. बेशक़, हर किसी को उनके अपनाए हुए कुछ बुनियादी सिद्धांतों का पता होना चाहिए, जैसे निवेश को कई क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य में देखना, साथ ही निवेश का एक सिस्टम तैयार करना. इसलिए जो कोई भी फ़ाइनेंस की दुनिया के अजनबी रास्तों के बारे में जानना चाहता है, उसके लिए 'द मैन हू सॉल्व्ड द मार्केट्स' क़िताब ख़रीदना और पढ़ना काफ़ी दिलचस्प होगा. हालांकि, हाल की तमाम चर्चाओं के बावजूद, अपने निवेश में उनकी किसी प्रासंगिकता को नज़रअंदाज ही करना चाहिए.

एक मामले को छोड़कर - सिमंस का परोपकार या दूसरों का भला करने का स्वभाव. कुछ दूसरे जाने-माने अरबपतियों का जुनून है कि 'मैं दुनिया को दुनिया से बचाउंगा', इसके उलट, सिमंस ने अपनी संपत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा साइंस और गणित की रिसर्च में लगा दिया. अकादमिक क्षेत्र में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा. उन्होंने थ्योरी और प्रैक्टिकल के बीच की खाई पाटने वाली रिसर्च को दिल खोल कर पैसा दिया. सिमंस के परोपकार की विरासत, ज्ञान और नएपन की ताक़त में उनके विश्वास का सबूत है, और उनकी अपनी ज़िंदगी भी ठीक ऐसी ही रही.


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