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जर्मनी की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी सीमेंस ए.जी. (Siemens AG) की भारतीय सब्सिडियरी सीमेंस अपने एनर्जी बिज़नस को सीमेंस एनर्जी इंडिया नाम की एक नई कंपनी में डिमर्ज करने का प्लान कर रही है. तेल और गैस, रेलवे और निर्माण जैसे क्षेत्रों को पावर ट्रांसमिशन सॉल्यूशन उपलब्ध कराने वाले इस बिज़नस को स्टॉक एक्सचेंज पर अलग से लिस्ट कराया जाएगा.
शेयरहोल्डिंग और लिस्टिंग डिटेल
प्रस्तावित व्यवस्था के तहत, सीमेंस के मूल शेयरहोल्डिंग स्ट्रक्चर को बनाए रखा जाएगा. सीमेंस के शेयरहोल्डर्स को वर्तमान में उनके पास मौजूद हरेक शेयर के लिए सीमेंस एनर्जी का एक शेयर मिलेगा. डीमर्जर के बाद, प्रमोटरों के पास इसकी 75 फ़ीसदी हिस्सेदारी रहेगी, जबकि पब्लिक शेयरहोल्डर्स के पास बाक़ी 25 फ़ीसदी हिस्सेदारी होगी. रेग्युलेटरी मंजूरियों साथ ये प्रक्रिया 2025 तक पूरी होने की उम्मीद है.
डिमर्जर के पीछे का तर्क
ये क़दम जर्मनी में सीमेंस ए.जी. द्वारा पहले से लागू रणनीति दिखाता है, जिसने 2020-2023 के बीच क़रीब 7,179 मिलियन यूरो का शुद्ध घाटा होने के बाद अपना ग्लोबल एनर्जी बिज़नस बंद कर दिया था.
भले ही, इसका भारतीय एनर्जी बिज़नस प्रॉफ़िट में है और साल (FY) 2023 के रेवेन्यू में इसका योगदान क़रीब 34 फ़ीसदी रहा है, लेकिन इसका साल (FY) 19-23 के बीच इसका रेवेन्यू केवल 4 फ़ीसदी सालाना बढ़ा है. ऐसा तब हुआ, जब कंपनी ने साल (FY) 2018-23 के बीच इस सेगमेंट पर अपने कुल कैपिटल एक्सपेंडिचर का औसतन 25 फ़ीसदी (अनावंटित रक़म को छोड़कर) ख़र्च किया.
फ़ैसले लेना होगा आसान
रेवेन्यू में 13 फ़ीसदी सालाना की बढ़ोतरी के साथ, पिछले दो साल में इस सेगमेंट में सुधार हुआ है. हालांकि, मैनेजमेंट का मानना है कि इंडस्ट्रियल बिज़नस की तुलना में एनर्जी बिज़नस से जुड़े मार्केट ड्राइवर और कैपिटल एलोकेशन से जुड़ी ज़रूरतें पूरी तरह अलग हैं. अच्छी बात ये है कि इस स्ट्रक्चर के लिहाज़ से अलग होने से फ़ैसेल लेने की दक्षता (efficiency) में सुधार होगा. ये बात ख़ासकर कैपिटल एलोकेशन के संदर्भ में ज़्यादा सही है.
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