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बड़े सरकारी निवेश की बदौलत इंफ़्रास्ट्रक्चर निवेशकों के लिए सबसे आकर्षक सेक्टर बनता जा रहा है. मि्साल के तौर पर, पिछले चार साल के दौरान इंफ़्रास्ट्रक्चर में भारत का कैपिटल एक्सपेंडिचर बजट तीन गुना बढ़ा है (FY24 के लिए ₹10 लाख करोड़). ये एक बड़ी रक़म है.
इस समय इस सेक्टर में अपार संभावनाएं हैं और कई कंपनिया इस सेक्टर में उतर रही हैं. लेकिन कड़ी प्रतिस्पर्धा होने की वजस से कुछ ही कंपनिया अच्छी ग्रोथ हासिल कर पाती हैं. छोटी कंपनियों की भीड़ को लेकर तो ये बात और ज़्यादा सच है.
इसमें कोई शक़ नहीं कि इस सेक्टर में किसी छिपे हुए मोती को तलाशना भूसे के ढेर में सुई तलाशने जैसा है. इसलिए, हमने मज़बूत अर्निंग ग्रोथ, बेहतर क्वालिटी और सही वैल्यूएशन वाली कंपनियां ढूंढने के लिए कुछ कड़े फ़िल्टर लगाए. हमने ऐसी कंपनियों की तलाश की जिनमें ये ख़ूबियां हों;
- 5 साल की रेवेन्यू और EPS ग्रोथ > 10 फ़ीसदी
- पिछले पांच साल का ROCE लगातार 20 फ़ीसदी से ज़्यादा
- डेट-टू-इक्विटी <0.5
- P/E-टू-मीडियन P/E <1.5
- कम-से-कम '4' की स्टॉक रेटिंग
हमारे इन फ़िल्टर ने हमें सिर्फ़ एक खिलाड़ी का पता दिया है: PSP प्रोजेक्ट्स.
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PSP Projects: 10 साल से ज़्यादा का सफ़र
PSP प्रोजेक्ट्स (PSP Projects) कंपनी 2008 में अस्तित्व में आई, और इसकी शुरुआत गुजरात में मात्र ₹2 लाख की पूंजी के साथ हुई थी. अब इसे इंडस्ट्रियल, इंस्टीट्यूशनल, गवर्नमेंट और रेज़िडेंशियल कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स में हज़ारों करोड़ के ऑर्डर मिल रहे हैं.
कंपनी ने पहली बड़ी उपलब्धि 2011 में हासिल की जब इसे मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के लिए ज़ाइडस ग्रुप (Zydus Group) से ₹130 करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट मिला. ये कॉन्ट्रैक्ट एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि इससे पहले इसका सबसे बड़ा प्रोजेक्ट मात्र ₹15 करोड़ का था. ज़ाइडस प्रोजेक्ट न सिर्फ़ समय से पहले पूरा किया गया, बल्कि ये क्वालिटी की उम्मीदों पर भी खरा उतरा. नतीजा, ज़ाइडस ने PSP प्रोजेक्ट्स को 29 और प्रोजेक्ट्स का काम दे दिया.
इसके अलावा, दुनिया की सबसे बड़ी ऑफ़िस बिल्डिंग--सूरत डायमंड बोर्स (SDB)--का ₹1,575 करोड़ का कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट इस स्मॉल-कैप कंपनी के लिए एक बड़ा बदलाव साबित हुआ.
SDB के कंस्ट्रक्शन को तीन सब-प्रोजेक्ट्स में बांटने, हरेक सब-प्रोजेक्ट के लिए प्रोडक्ट मैनेजर नियुक्त करने और PSP के फ़ाउंडर प्रहलादभाई पटेल द्वारा साप्ताहिक साइट विज़िट के प्रस्ताव ने क्लाइंट पर अच्छा असर डाला. इसके बाद कंपनी को इस प्रोजेक्ट के लिए बोली लगाने की मंजूरी दी गई, जिसे बाक़ी दिग्गजों से कड़ी टक्कर मिलने के बावज़ूद कंपनी ने जीत लिया. इस प्रोजेक्ट ने कंपनी के लिए ₹2,500 करोड़ तक के प्रजेक्ट्स में बोली लगाने का रास्ता भी खोल दिया.
तब से, इसे सरकार से भी बड़े-बड़े और जाने-माने ऑर्डर मिलते रहे हैं. 2022 में, इसने भारत के सबसे ऊंचे सरकारी ऑफ़िस, सूरत नगर निगम भवन के कंस्ट्रक्शन के लिए ₹1,344 करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया. पिछले कुछ साल में इसने सरकारी प्रोजेक्ट्स में अपना निवेश लगातार बढ़ाया है.
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PSP Projects: कौन सी चीज़ें कंपनी के पक्ष में रही हैं?
- मज़बूत फ़ाइनेंस: कंपनी का लॉन्ग-टर्म फ़ाइनेंशियल्स ट्रैक रिकॉर्ड काफ़ी अच्छा है. पिछले 10 साल में इसका रेवेन्यू और नेट प्रॉफ़िट क्रमशः 25 और 30 फ़ीसदी CAGR की दर से बढ़ा है.
- भौगोलिक या जियोग्राफ़िक एक्सपैंशन: कंपनी अपना दायरा बढ़ाने के लिए गुजरात से बाहर क़ारोबार करने पर ध्यान दे रही है. 2016 के बाद से, इसने छह और राज्यों में अपना क़दम रखा है. इसने साल 2020 में उत्तर प्रदेश (UP) में अपना पहला प्रोजेक्ट पूरा किया, और FY2023 के आख़िर तक ये नौ और बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही थी.
- कुशलता पर ध्यान: एफिशिएंसी बनाए रखना कंपनी की प्राथमिकता रही है. 2011 में, इसने ERP (एंटरप्राइज़ रिसोर्स प्लानिंग) सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करना शुरू किया, जो उस समय ₹10 करोड़ से कम कमाई वाले इस छोटी कंस्ट्रक्शन कंपनी के लिए काफ़ी बड़ी बात थी. व्यापक मौज़ूदगी वाले बड़े खिलाड़ियों के उलट, कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में कंपनी की कॉन्सन्ट्रेटेड आर्डर बुक इसे अपने एसेट्स का बेहतर इस्तेमाल करने में मदद करती है.
- शॉर्ट-टर्म प्रोजेक्ट: PSP के प्रोजेक्ट आम तौर पर रोड या हाईवे प्रोजेक्ट की तरह लॉन्ग-टर्म नहीं होते हैं. इससे कैश कन्वर्ज़न जल्दी होता है; वर्किंग कैपिटल साइकिल छोटा होता है; और कंपनी को तुलनात्मक रूप से कम पूंजी की ज़रूरत पड़ती है.
PSP Projects: कौन सी चीज़ें पक्ष में नहीं रही हैं?
- रेवेन्यू कन्वर्जन में साथियों से पीछे: साल (FY) 2023 तक कंपनी का ऑर्डर बुक-टू-रेवेन्यू रेशियो 2.6 गुना था, जो कैपेसिट इंफ़्रा और अहलूवालिया कॉन्ट्रैक्ट्स जैसे साथियों के क्रमशः 2.9 और 5.3 गुना की तुलना में कम है. इसका कारण इसके द्वारा ज़्यादातर शार्ट-टर्म प्रोजेक्ट्स पर काम करना है, जो कि एडवांस में नहीं दिए जाते. छोटा ऑर्डर बुक-टू-रेवेन्यू रेशियो साथियों के मुक़ाबले कम रेवेन्यू कन्वर्जन का संकेत देता है. शायद यही कारण है कि तेज़ रेवेन्यू ग्रोथ और बेहतर रिटर्न ऑन कैपिटल एम्प्लॉयड (ROCE) के बावज़ूद स्टॉक साथियों की तुलना में (15.3 गुना P/E) सस्ता है.
- ख़राब कैश फ़्लो: पिछले तीन साल में, कंपनी का कैश फ़्लो एक और समस्या रही है. SDB प्रोजेक्ट से पेमेंट में देरी और UP के प्रोजेक्ट्स में ज़्यादा वर्किंग कैपिटल की ज़रूरत ने कैश कन्वर्जन को ख़राब किया है, जिससे इसे शॉर्ट-टर्म लोन लेना पड़ा है. नतीजा, पिछले दो साल में इसके ख़र्च में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है, जिससे प्रॉफ़िटेबिलिटी पर असर पड़ा है.
PSP Projects: हमारा नज़रिया
UP में कंपनी के प्रोजेक्ट्स पूरे होने वाले हैं. इसलिए, कैश फ़्लो और मार्जिन में सुधार की संभावना है, जिससे कंपनी को क़र्ज़ का बोझ कम करने में मदद मिल सकती है. इन शॉर्ट-टर्म दिक़्क़तों के बावज़ूद, हमारा मानना है कि स्थिर ऑर्डर फ़्लो से कंपनी को अपने पिछले ग्रोथ रेट को बरक़रार रखने में मदद मिलेगी.
हालांकि, ऊपर बताए गए जोख़िमों को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. ये लेख स्टॉक को लेकर कोई सुझाव नहीं है, निवेश से पहले जरुरी जांच-पड़ताल कर लें.
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