Published: 12th Sep 2024
By: Value Research Dhanak
भारत में, क़रीब 79% भारतीय इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड के Regular Plan में निवेश करते हैं, जिसका मतलब है कि वे अपना पैसा एडवाइज़र्स और डिस्ट्रीब्यूटर्स के ज़रिये फ़ंड में डालते हैं. इस तरह, पांच में से केवल एक ही व्यक्ति ख़ुद 'डायरेक्ट' इक्विटी फ़ंड में निवेश करता है.
लेकिन क्या डिस्ट्रीब्यूटर्स और एडवाइज़र्स के ज़रिये निवेश करना एक अच्छा आइडिया है, इसका कोई सीधा जवाब नहीं है. ये एक अच्छा आइडिया है अगर आपके साथ 3 वजह जुड़ी हुई हैं.
1). आप Mutual Fund में नए हैं. 2). आप नहीं जानते कि म्यूचुअल फ़ंड कैसे काम करते हैं. 3). आप ख़ुद म्यूचुअल फ़ंड नहीं चुन सकते. 4). आपके पास यह जानने का समय और स्किल नहीं है कि म्यूचुअल फ़ंड कैसे काम करते हैं
1). आप जानते हैं कि किस Mutual Fund में निवेश करना है. 2). आप ज़्यादा खर्च करने से बचना चाहते हैं. (रेगुलर फ़ंड्स में आमतौर पर Direct Plan के मुक़ाबले Expense Ratio 1 प्रतिशत ज़्यादा होता है).
मान लीजिए कि आपने पराग पारिख फ़्लेक्सी कैप फ़ंड में 10 साल तक SIP के ज़रिये हर महीने ₹50,000 का निवेश किया, तो डायरेक्ट प्लान में ₹1.89 करोड़ और रेगुलर प्लान में ₹1.79 करोड़ का कॉर्पस तैयार होता. (ये डेटा 11 सितंबर, 2024 तक का है.)
इस प्रकार, किसी एडवाइज़र या डिस्ट्रीब्यूटर के ज़रिये 'रेगुलर' फ़ंड में निवेश करने पर आपको 10 साल में ₹10 लाख यानी हर साल लगभग ₹83 हजार का नुक़सान होता.
अब सवाल उठता है कि कहां और किस फ़ंड में निवेश करना सही है. असल में निवेश का सही तरीक़ा क्या है. इसका जवाब आपको अगली स्लाइड में दिए गए स्टोरी लिंक में मिल सकता है.