Published: 12th Sep 2024
By: Value Research Dhanak
माइक्रो-कैप कंपनियों के सीमित ट्रेडिंग वॉल्यूम के चलते क़ीमतों में उतार-चढ़ाव के बिना बड़ी मात्रा में ख़रीदना या बेचना मुश्क़िल होता है. लिक्विडिटी की कमी से क़ीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है, जो निवेश पर रिटर्न पर निगेटिव असर डाल सकता है.
एक एनालिसिस के मुताबिक़, माइक्रो-कैप इंडेक्स में आधे से ज़्यादा स्टॉक बीते पांच सालों में निचले स्तर पर चले गए, जिससे माइक्रो-कैप इंडेक्स के कुल रिटर्न पर निगेटिव असर पड़ा होगा.
माइक्रो-कैप इंडेक्स (फ़िलहाल सिर्फ़ एक इंडेक्स फ़ंड है) को ट्रैक करने वाले फ़ंड को ज़्यादा ट्रैकिंग एरर का सामना करना पड़ सकता है. इस सेक्टर में सीमित लिक्विडिटी के चलते, फ़ंड्स को अक्सर इंडेक्स के प्रदर्शन को बारीक़ी से फ़ॉलो करना मुश्क़िल होता है.
कंपनियां जितनी छोटी होंगी, उतनी ही ज़्यादा अस्थिर होंगी. इसे देखते हुए, लंबे समय में माइक्रो-कैप इंडेक्स के प्रदर्शन में बहुत ज़्यादा उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. आंकड़े भी यही बताते हैं.
कोई भी इंडेक्स निगेटिव रिटर्न यानी गिरावट से अछूता नहीं है, लेकिन माइक्रो-कैप इंडेक्स ने अपनी स्थापना के बाद से लगभग 10.2% (490 दिन) समय निगेटिव 5-ईयर रोलिंग रिटर्न दिया है, जो निफ़्टी 500 की तुलना में कहीं ज़्यादा बार है.
ब्रॉडर इंडेक्स की तुलना में माइक्रो कैप ज़्यादा रिटर्न दे सकते हैं, लेकिन वे बहुत जोखिम भरे भी हो सकते हैं. हालांकि, माइक्रो-कैप इंडेक्स को पोर्टफ़ोलियो में कितना एलोकेशन दिया जा सकता है, इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए आगे दिए गए स्टोरी लिंक पर जाएं.