Published: 26th Feb 2025
पैसिव इन्वेस्टिंग का मूल मक़सद – कम लागत में पूरे मार्केट रिटर्न को कैप्चर करना. – निफ्टी या सेंसेक्स जैसे इंडेक्स को ट्रैक करना. – कोई अतिरिक्त निर्णय नहीं, बस मार्केट के साथ बढ़ना.
– SEBI ने हर कैटेगरी में एक एक्टिव फ़ंड की सीमा तय की. – यह निवेशकों को भ्रम से बचाने के लिए था. – लेकिन ये सीमा पैसिव फ़ंड्स पर लागू नहीं होती!
– फ़ंड हाउस ख़ुद के इंडेक्स तैयार करवाते हैं. – फिर उन इंडेक्स को ट्रैक करने वाले 'पैसिव' फ़ंड लॉन्च करते हैं. – नतीजा? एक जैसे कई इंडेक्स और फ़ंड्स!
– अब आपको तय करना होगा: – ESG इंडेक्स या मोमेंटम इंडेक्स? – बैंकिंग इंडेक्स या हेल्थकेयर इंडेक्स? – ये पैसिव नहीं, बल्कि छुपी हुई एक्टिव इन्वेस्टिंग है!
– नैरो मैंडेट वाले फ़ंड्स में ज़रूरत से ज़्यादा निवेश. – एक्सपेंस रेशियो ज़्यादा, जबकि पैसिव फ़ंड्स सस्ते होने चाहिए. – ख़ुद फ़ैसले लेने का दबाव, जबकि फ़ंड मैनेजर के लिए पैसे दे रहे हैं.
– व्यापक मार्केट को ट्रैक करने वाले सस्ते फ़ंड्स चुनें. – एक या दो इंडेक्स फ़ंड्स काफ़ी हैं. – थीमैटिक फ़ंड्स में जाने से पहले सोचें कि क्या एक्टिव फ़ंड बेहतर होगा?
जब 'पैसिव' इतना एक्टिव दिखने लगे, तो समझ जाइए कि कुछ गड़बड़ है! सादगी और स्पष्टता ही सबसे अच्छा निवेश फ़ॉर्मूला है.
ये स्टोरी सिर्फ़ जानकारी के लिए है. किसी भी निवेश से पहले अपनी रिसर्च ज़रूर करें और फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र से सलाह लें.