Published: 27th Feb 2025
ETF यानी एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड, जो पैसिव फ़ंड्स होते हैं और आमतौर पर मैनेज किए जाने वाले फ़ंड्स के मुक़ाबले कम ख़र्चीले होते हैं. ये किसी इंडेक्स को ट्रैक करते हैं और उसी के मुताबिक़ परफ़ॉर्म करते हैं.
हर ETF किसी न किसी इंडेक्स को फ़ॉलो करता है. निफ़्टी या सेंसेक्स ETF, भारत की सबसे बड़ी कंपनियों के इंडेक्स को ट्रैक करते हैं. सेक्टोरल, नेक्स्ट 50, क्वालिटी और मोमेंटम ETF भी उपलब्ध हैं, लेकिन थीमैटिक फ़ंड्स से बचना बेहतर होता है.
ट्रैकिंग एरर से पता चलता है कि ETF का रिटर्न इंडेक्स से कितना अलग है. कम ट्रैकिंग एरर वाले ETF को चुनना फ़ायदेमंद होता है, क्योंकि इससे आपके रिटर्न इंडेक्स के क़रीब रहने की संभावना बढ़ती है.
ETF कम ख़र्चीले होते हैं, लेकिन हर फ़ंड का एक्सपेंस रेशियो अलग होता है. अगर दो ETF का रिटर्न एक जैसा हो, तो निवेशकों को सबसे सस्ता ETF चुनना चाहिए ताकि ज़्यादा फ़ायदा मिल सके.
ETF में निवेश करते समय लिक्विडिटी ज़रूरी होती है, ताकि आप आसानी से यूनिट्स ख़रीद और बेच सकें. ज़्यादा ट्रेडिंग वॉल्यूम वाले ETF को चुनना बेहतर होता है, क्योंकि कम ट्रेडिंग वाले ETF में निवेशकों को बेचने में दिक्कत आ सकती है.
ETF को स्टॉक एक्सचेंज पर ख़रीदा-बेचा जाता है, इसलिए इसे ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से ही ख़रीदें. ध्यान दें कि आपके प्लेटफ़ॉर्म पर ज़रूरी ETF मौजूद हो और उसकी बायिंग-सेलिंग आसान हो.
ETF में निवेश लॉन्ग-टर्म ग्रोथ के लिए किया जाता है. जल्दबाज़ी में फ़ैसले लेने से बचें और सही इंडेक्स व ख़र्च वाले ETF को चुनकर लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न कमाने की कोशिश करें.
ये स्टोरी सिर्फ़ जानकारी के लिए है. किसी भी निवेश से पहले अपनी रिसर्च ज़रूर करें और फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र से सलाह लें.