भले ही, क्वालिटी इंडेक्स में ROE, डेट-टू-इक्विटी, EPS, अर्निंग ग्रोथ अनुमान जैसे पैमानों पर स्टॉक चुने जाते हैं, लेकिन 5 साल के आंकड़े देखें तो ये हमेशा फ़ायदे की रणनीति नहीं होती.
केवल 3 क्वालिटी इंडेक्स निफ़्टी100 क्वालिटी 30 इंडेक्स, निफ़्टी मिडकैप 150 क्वालिटी 50 इंडेक्स और निफ़्टी 200 क्वालिटी 30 ही आगे बताए गए दो पैमानों पर ख़रे उतरे, जो इस प्रकार हैं…
1. इंडेक्स जो कम से कम तीन साल पुराने हों. 2. इंडेक्स जो शेयरों के क्वालिटी स्कोर को अकेला पैरामीटर मानते हैं
यहां अनोखा ट्रेंड दिखता है. इन इंडेक्स के बाज़ार में लॉन्च से पहले, दैनिक आधार पर 3 साल के रोलिंग रिटर्न के मामले में उन्होंने अपने मूल इंडेक्स से 74 से 82% तक बेहतर प्रदर्शन किया.
हालांकि, जब ये इंडेक्स अस्तित्व में आए तो उनका प्रदर्शन बदतर हो गया था. अपने लॉन्च के बाद, ये तीन इंडेक्स अपने मूल इंडेक्स से 76 से 100 फ़ीसदी तक पीछे रहे हैं.
जब निवेशकों को इंडेक्स फ़ंड और ETF के ज़रिये इन क्वालिटी इंडेक्स में पैसा लगाने का मौक़ा मिला, तो उन्होंने हर बार तो नहीं, लेकिन कम से कम तीन-चौथाई बार संतोषजनक रिटर्न नहीं कमाया.
ये भी कहा जाता है कि बाज़ार में गिरावट के दौरान क्वालिटी स्टॉक्स में कम गिरावट होती है. हालांकि, बाज़ार में गिरावट के दौरान क्वालिटी इंडेक्स अपने मूल इंडेक्स जितना ही गिरे.
इसका एकमात्र अपवाद, निफ़्टी 200 क्वालिटी 30 इंडेक्स था, जो COVID संकट के दौरान अपने बेंचमार्क (निफ़्टी 200) की 38% फ़ीसदी की गिरावट की तुलना में 29 फ़ीसदी ही गिरा था.
हम फ़ंड की फ़िटनेस की जांच से पहले 3 साल इंतज़ार करने का सुझाव देते हैं और क्वालिटी इंडेक्स डेटा का टेस्ट यही बात साबित करता है. असल में, लॉन्च के बाद उनका प्रदर्शन धोखा देने वाला रहा.