इतालवी प्रोग्रामर अल्बर्टो ब्रैंडोलिनी का 2013 में गढ़ा ये सिद्धांत कहता है कि bullshit ख़त्म करने के लिए बड़ी कोशिश करने की ज़रूरत होती है, जबकि इसे फैलाना कोई मुश्किल काम नहीं होता.
कई टीवी बहसें देखने के बाद, मैं ब्रैंडोलिनी से पूरी तरह सहमत हूं. टीवी पर राजनीतिक बहसों में बकवास खुलकर सामने आती है. वहीं, सोशल मीडिया और इसके 'influencers' की बाढ़ के बीच ये सिद्धांत ज़्यादा प्रासंगिक हो गया है.
ये लोग अक्सर बिना ज़्यादा जवाबदेही के पर्सनल फ़ाइनांस की ग़लत सलाह देते हैं, जिससे कई लोग इन सलाहों पर ख़राब फ़ाइनेंशियल फ़ैसले लेते हैं. हालांकि, SEBI ने इसके ख़िलाफ़ गंभीर कार्रवाई शुरू कर दी है.
फिर भी, हम जैसे निवेशकों के लिए, केवल रेग्युलेशन ही सुरक्षा की गारंटी नहीं होता. ये सलाह किसी यू-ट्यूब फ़िनफ़्लुएंसर से आई हो या किसी बैंक के 'रिलेशनशिप' मैनेजर से, निवेशक को नुक़सान तो एक जैसा ही होता है.
हमें ख़राब सलाह पहचान और उसे नज़अंदाज़ करने का ख़ुद का तरीक़ा विकसित करना चाहिए. इससे ख़राब गाइडेंस को पहचानना और नज़रअंदाज़ करना सीख जाएंगे, तो हम ख़ुद को एक दमदार हुनर से लैस कर लेंगे.
अब बात आती है कि ख़ुद को ख़राब सलाह से बचाने का तरीक़ा क्या हो? इस बारे में धीरेंद्र कुमार के आर्टिकल में समझाया गया है. बायो में दिए गए लिंक पर जाकर इसे विस्तार से पढ़ सकते हैं.