कुछ न करके कैसे जीते निवेशक? | टैरिफ़ वॉर और मार्केट मनोविज्ञान की समझ

Published on: 15th Apr 2025

कुछ न करके जीतना 

टैरिफ़ वॉर से मची मार्केट की उठा-पटक कैसे निवेशक के मनोविज्ञान को समझने का एक ज़बरदस्त तरीक़ा हो सकती है.

कभी न बदलने वाली एक बात 

वैश्विक घटनाएं हर बार भारतीय बाज़ार में घबराहट पैदा करती हैं, चाहे जो भी हो. टैरिफ़ वॉर हो या अन्य संघर्ष, यही पैटर्न बार-बार रिपीट होता है.

निवेशकों की प्रतिक्रिया 

जैसे ही बाजार गिरता है, हम निवेशक घबराहट में आ जाते हैं. क्या अब सब कुछ बेच दिया जाए या गिरावट को ख़रीदा जाए? ये हमारे दिमाग़ का एक स्वाभाविक जवाब है.

वो पल, जब हम पीछे हटें 

क्या भारत की अर्थव्यवस्था अचानक नकारात्मक हो गई है? क्या किसी नए बदलाव ने हमारे जीवन को प्रभावित किया है? ज़रा सोचिए, बाजार की ये प्रतिक्रिया सिर्फ़ अनिश्चितता है, कोई असल संकट नहीं.

क्या निवेशक का मनोविज्ञान है सही? 

क्या ‘सब कुछ बेच देने’ जैसी सोच सही है? नहीं. हां, कुछ सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पूरे बाजार को छोड़ दिया जाए.

इतिहास की सीख 

भारत ने युद्ध, आर्थिक संकट, और अन्य विपत्तियाँ झेली हैं. फिर भी, दीर्घकालिक निवेशकों ने शानदार प्रदर्शन किया है. समय के साथ ये तनाव घटता है, और विकास स्थिर रहता है.

अब मैं क्या करूं?

ज़्यादातर निवेशकों के लिए, सबसे अच्छा तरीक़ा कुछ नहीं करना है. SIP जारी रखें, और बाज़ार की गिरावट से मुनाफ़ा उठाने के बजाय अपनी लॉन्ग टर्म स्ट्रैटेजी पर फ़ोकस करें.

दिमाग़ी ताकत और धैर्य 

टैरिफ़ पर चर्चा, राष्ट्रपति के ट्वीट्स, या एक्सपर्ट्स की भविष्यवाणियां—इनके आधार पर निवेश की दिशा बदलना एक ग़लत क़दम होगा. धैर्य रखें, ये अस्थायी है. सही दिशा यही है कि कुछ न करे.