एक दिन, मुझे किसी बिटकॉइन एक्सचेंज का एक सेल्स फ़्लायर मिला. इसमें 2050 में बस पकड़ने के लिए दौड़ते युवक को दिखाया गया था. युवक सोच रहा था, "काश, पापा ने 2024 में बिटकॉइन लिया होता."
बिटकॉइन और दूसरी क्रिप्टोकरेंसी की वास्तविकता मार्केटिंग की असलियत से कहीं ज़्यादा जटिल है. ये पैम्फ़लेट इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करते हैं कि ये सेक्टर तमाम गड़बड़ियों से भरा हुआ है.
दूसरे फ़ाइनेंशियल प्रोडक्ट के उलट, इस पैम्फ़लेट पर कोई डिस्क्लेमर नहीं था. इस देश में कोई भी व्यक्ति पर्याप्त क़ानूनी जांच और डिस्क्लेमर के बिना किसी भी फ़ाइनेंशियल प्रोडक्ट का विज्ञापन नहीं कर सकता है.
आज हर कोई सोचता है कि क्रिप्टोकरेंसी एक वैध या क़ानूनी तौर पर स्वीकार्य एसेट क्लास है जिसमें कुछ रेग्युलेटरी बाधाएं हो सकती हैं, लेकिन ये दूर हो जाएंगी.
कोई भी सट्टेबाज़ी वाला एसेट, जो बेतरतीब ढंग से दोगुना और आधा हो सकता है, नए लोगों का शोषण करने वाला होता है. ये भूमिका अब बिटकॉइन निभा रहा है, जो निकट भविष्य में भी जारी रह सकता है.
निवेशक के तौर पर हमें जिन सवालों का जवाब देना है, वो ये हैं कि हम अपने पैसों के साथ क्या करेंगे? हम इस पागलपन से ख़ुद को कैसे बचाएंगे? कुछ लोग हैं जो इसे समझेंगे और कुछ नहीं समझेंगे.