सबसे सरल Mutual Fund पोर्टफ़ोलियो कैसा होता है? क्या ये सिर्फ़ एक फ़ंड का हो सकता है? ये समस्या थ्योरेटिकल है, क्योंकि एक निवेशक के कई फ़ंड में निवेश की संभावना ज़्यादा होती हैं.
वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार के मुताबिक़, फ़ंड निवेशकों के लिए ज़्यादा फ़ंड्स में निवेश कोई बड़ी बात नहीं. मगर एक ही फ़ंड में निवेश चाहने वाले लोग गिने-चुने ही होंगे.
अगर सवाल है कि लोग असल में कितने फ़ंड में निवेश करते हैं? तो आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि ज़्यादातर भारतीय म्यूचुअल फ़ंड निवेशकों के पास 10 फ़ंड्स से ज़्यादा हैं.
भले ही, 50 से ज़्यादा फ़ंड होना दुर्लभ नहीं है. लेकिन, ज़्यादातर लोग जिनके पास 10 या इससे कम फ़ंड हैं वो नए निवेशक हैं. इसमें कोई शक़ नहीं कि समय के साथ इनके फ़ंड भी बढ़ते जाएंगे.
लोग, बहुत सारे फ़ंड में निवेश क्यों करते हैं? इसकी एक वज़ह डायवर्सिफ़िकेशन बताई जाती है, लेकिन अगर पूरा मार्केट ही गिरावट की ज़द में आ जाए, तो डाइवर्सीफ़िकेशन से ख़ास मदद नहीं करता.
सवाल ये नहीं कि कई फ़ंड में निवेश से कोई फ़ायदा है या नहीं. पर, असल में होता ये है कि पोर्टफ़ोलियो में कई फ़ंड होने पर निवेश को ट्रैक करना और आकलन करना मुश्किल हो जाता है.
फ़ंड इक्विटी में निवेश का आसान और सुरक्षित तरीक़ा हैं. इसलिए, इक्विटी फ़ंड बेहतर रहेंगे और फ़ंड टाइप के तौर पर टैक्स-सेविंग फ़ंड और उसके बाद हाइब्रिड फ़ंड में निवेश करना चाहिए.
लंबे समय के निवेश के लिए टैक्स-सेविंग फ़ंड पर इसलिए ज़ोर दिया जाता है क्योंकि इनमें तीन साल का लॉक-इन पीरियड होता है. लॉक-इन से अच्छा रिटर्न पाने में मदद मिलती है.
टैक्स बचाने की ज़रूरत पूरी होने पर आप एक हाइब्रिड फ़ंड में निवेश कर सकते हैं. निवेशकों को फ़िक्स्ड इनकम और इक्विटी में संतुलन रखना चाहिए और इसके लिए हाइब्रिड फ़ंड अच्छे रहते हैं.
धीरेंद्र कुमार की राय में फ़ंड्स की आदर्श संख्या 3 या 4 है. इससे ज्यादा फ़ंड का मतलब होगा, समय व मेहनत की बरबादी. पोर्टफ़ोलियो जितना सरल होगा, आप उसे उतने अच्छे से मैनेज कर पाएंगे।