Banking Stock कैसे चुनें? समझें 7 प्वाइंट्स में  

Published: 12th Aug 2024

By: Value Research Dhanak

हर पोर्टफ़ोलियो में होते हैं बैंक 

इक्विटी निवेशकों के निवेश पोर्टफ़ोलियो में किसी न किसी रूप में बैंक शामिल होते हैं. फ़ाइनेंशियल कंपनियों के लिए भारतीय बाज़ार में आगे बढ़ने के तमाम मौक़े हैं. इसीलिए, बैंकिंग और फ़ाइनेंशियल स्टॉक्स की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है.  

1- कैपिटल एडिक्वेसी रेशियो (CAR) 

ये बैंक की उपलब्ध पूंजी को बैंक द्वारा दिए गए क़र्ज़ों से डिवाइड करने का तरीक़ा है. इसका इस्तेमाल डिपॉज़िटर्स की सुरक्षा और फ़ाइनेंशिल सिस्टम की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है. CAR जितना ज़्यादा होगा, बैंक उतना ही बेहतर कैपिटलाइज होगा.  

2- नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट्स  

नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट्स (NPA) से पता चलता है कि बैंक की लोन बुक के कितने हिस्से के लिए चुकाए न जाने के ख़तरा बना हुआ है. यदि 90 दिनों तक ब्याज या मूल रक़म की क़िस्त प्राप्त नहीं होती है तो क़र्ज़ नॉन परफ़ॉर्मिंग हो जाता है.  

3- प्रोविजन कवरेज रेशियो 

बैंकिंग में, कुल कर्ज़े का कुछ हिस्सा ख़राब होना यानी उनका बैड लोन बनना तय होता है. इसलिए, बैंक अपनी ख़राब एसेट्स के एक तय प्रतिशत के बराबर रक़म को अलग रखकर ऐसे बैड लोन्स के लिए प्रोविज़न करते हैं.  

4- एसेट्स पर रिटर्न 

बैंकों के लिए, बॉरोअर्स को दिए गए क़र्ज़ एसेट्स हैं, जबकि डिपॉज़िटर्स का पैसा देनदारी है. एसेट्स पर रिटर्न से पता चलता है कि बैंक अपनी कुल एसेट्स के सापेक्ष कितना प्रॉफ़िटेबल है. इसकी कैलकुलेशन कुल एसेट्स से नेट प्रॉफ़िट्स को डिवाइड करके दी जाती है. 

5- CASA रेशियो 

CASA बैंकों द्वारा चालू और बचत खातों में रखे गए डिपॉज़िट का प्रतिशत है. बैंक ऐसे खातों पर कम ब्याज देते हैं. CASA रेशिया का ज़्यादा होना बैंक के लिए अच्छा है, क्योंकि इसका मतलब है कि बैंक कुल उधारी दर को कम करने में सक्षम है.  

6- नेट इंटरेस्ट मार्जिन 

नेट इंटरेस्ट मार्जिन बॉरोअर्स से मिली इंटरेस्ट इनकम और डिपॉज़िटर्स को चुकाए गए इंटरेस्ट के बीच का अंतर है, जो कुल डिपॉजिट के एवरेज में दिया जाता है. ये एक प्रॉफ़िटेबिलिटी रेशियो है और एक सामान्य कंपनी के ग्रॉस मार्जिन के समान है.  

7- कॉस्ट टू इनकम  

इससे पता चलता है कि बैंक कैसे चलाया जा रहा है. कॉस्ट टू इनकम को बैंक की ऑपरेटिंग इनकम (इंटरेस्ट इनकम और अदर इनकम) द्वारा ऑपरेटिंग एक्सपेंस को डिवाइड करके निकाला जाता है. कॉस्ट टू इनकम रेशियो जितना कम होगा, प्रॉफ़िटेबिलिटी उतनी ही बेहतर होगी. 

ज़्यादा जानकारी के लिए  

यहां हमने संक्षेप में बेहतर तरीक़े से समझाने की कोशिश की है. अगर आप ज़्यादा जानकारी और विस्तार से समझना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें.