Published: 12th Aug 2024
By: Value Research Dhanak
इक्विटी निवेशकों के निवेश पोर्टफ़ोलियो में किसी न किसी रूप में बैंक शामिल होते हैं. फ़ाइनेंशियल कंपनियों के लिए भारतीय बाज़ार में आगे बढ़ने के तमाम मौक़े हैं. इसीलिए, बैंकिंग और फ़ाइनेंशियल स्टॉक्स की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है.
ये बैंक की उपलब्ध पूंजी को बैंक द्वारा दिए गए क़र्ज़ों से डिवाइड करने का तरीक़ा है. इसका इस्तेमाल डिपॉज़िटर्स की सुरक्षा और फ़ाइनेंशिल सिस्टम की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है. CAR जितना ज़्यादा होगा, बैंक उतना ही बेहतर कैपिटलाइज होगा.
नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट्स (NPA) से पता चलता है कि बैंक की लोन बुक के कितने हिस्से के लिए चुकाए न जाने के ख़तरा बना हुआ है. यदि 90 दिनों तक ब्याज या मूल रक़म की क़िस्त प्राप्त नहीं होती है तो क़र्ज़ नॉन परफ़ॉर्मिंग हो जाता है.
बैंकिंग में, कुल कर्ज़े का कुछ हिस्सा ख़राब होना यानी उनका बैड लोन बनना तय होता है. इसलिए, बैंक अपनी ख़राब एसेट्स के एक तय प्रतिशत के बराबर रक़म को अलग रखकर ऐसे बैड लोन्स के लिए प्रोविज़न करते हैं.
बैंकों के लिए, बॉरोअर्स को दिए गए क़र्ज़ एसेट्स हैं, जबकि डिपॉज़िटर्स का पैसा देनदारी है. एसेट्स पर रिटर्न से पता चलता है कि बैंक अपनी कुल एसेट्स के सापेक्ष कितना प्रॉफ़िटेबल है. इसकी कैलकुलेशन कुल एसेट्स से नेट प्रॉफ़िट्स को डिवाइड करके दी जाती है.
CASA बैंकों द्वारा चालू और बचत खातों में रखे गए डिपॉज़िट का प्रतिशत है. बैंक ऐसे खातों पर कम ब्याज देते हैं. CASA रेशिया का ज़्यादा होना बैंक के लिए अच्छा है, क्योंकि इसका मतलब है कि बैंक कुल उधारी दर को कम करने में सक्षम है.
नेट इंटरेस्ट मार्जिन बॉरोअर्स से मिली इंटरेस्ट इनकम और डिपॉज़िटर्स को चुकाए गए इंटरेस्ट के बीच का अंतर है, जो कुल डिपॉजिट के एवरेज में दिया जाता है. ये एक प्रॉफ़िटेबिलिटी रेशियो है और एक सामान्य कंपनी के ग्रॉस मार्जिन के समान है.
इससे पता चलता है कि बैंक कैसे चलाया जा रहा है. कॉस्ट टू इनकम को बैंक की ऑपरेटिंग इनकम (इंटरेस्ट इनकम और अदर इनकम) द्वारा ऑपरेटिंग एक्सपेंस को डिवाइड करके निकाला जाता है. कॉस्ट टू इनकम रेशियो जितना कम होगा, प्रॉफ़िटेबिलिटी उतनी ही बेहतर होगी.
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