भारत की जुआ इंडस्ट्री

डेरिवेटिव ट्रेडिंग बड़ी तादाद में लोगों की बर्बादी का कारण बन रही है. इसे सिर्फ़ और सिर्फ़ एक जुआ कहने का वक़्त आ गया है.

डेरिवेटिव में 89% को नुक़सान

SEBI की 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, डेरिवेटिव ट्रेडिंग निवेशकों के लिए भारी घाटे वाला सौदा है. 89% निवेशकों ने इन गतिविधियों में पैसा गंवा दिया और केवल 11% ही फ़ायदे में रहे.

ऐरो

डेरिवेटिव ट्रेडिंग और फ़ाइनेंस की समझ

स्टडी ने रिटेल निवेशकों की डेरिवेटिव ट्रेडिंग तक पहुंच और जोख़िमों के बारे में गंभीर सवाल उठाए हैं. इस पर अंकुश लगाने की ज़रूरत पर रोशनी डाली है. वित्तीय साक्षरता की भूमिका के बारे में व्यापक बहस को भी जन्म दिया.

ऐरो

डेरिवेटिव में कौन कर रहा कमाई?

हालांकि, रिटेल निवेशकों की भागीदारी में बढ़ोतरी के बीच कई लोग डेरिवेटिव मार्केट में अच्छा पैसा कमा रहे हैं, जैसे कि ब्रोकर और स्टॉक एक्सचेंज. लोगों को इस ट्रेड में लुभाना एक बढ़िया बिज़नस है.

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इन नियमों से क्या होगा?

हाल ही में, कुछ नए नियम आए हैं जो इस बिज़नस के कुछ हिस्सों पर रोक लगा सकते हैं. SEBI के प्रस्तावित 'ट्रू टू लेबल' या नाम के अनुरूप नियम ब्रोकर्स की कमाई कम करेंगे. डेरिवेटिव ट्रेडिंग और भी महंगी हो जाएगी.

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जुआ मानने की वजह

ये उत्साह बढ़ाने की बात है क्योंकि ये एक लत या एडिक्शन है. जब कोई, किसी व्यक्ति के ट्रेड करने के लिए बड़ी रक़म उधार लेने और फिर उसे गंवा देने के बारे में सुनता है तो साफ़ हो जाता है कि इसे जुआ ही मानना चाहिए.

ऐरो

उम्मीद बाक़ी है

हालांकि, ये एक मनोवैज्ञानिक मुद्दा है. जुए की लत में फंसे लोग ख़ुद की मदद नहीं कर सकते. इसे दूसरे स्तर पर निपटाया जाना चाहिए और मुझे उम्मीद है कि ऐसा जल्द ही हो जाएगा.

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