Published on: 21st Mar 2025
हम बचपन से सुनते हैं—"रिस्क मत लो!" इसलिए जब निवेश की बात आती है, हम डर जाते हैं. लेकिन असली प्रॉब्लम हमारे दिमाग़ में छिपा एक डर होता है. जिसे समझना ज़रूरी है.
पुणे के 35 साल के रवि हर महीने ₹80,000 कमाते थे. वो FD में ₹20,000 डालते थे, लेकिन म्यूचुअल फ़ंड या शेयर मार्केट से दूर रहते थे. उन्हें लगता था—“पैसे खो गए तो?”
NISM की रिपोर्ट कहती है कि ज़्यादातर शहरी लोग आज भी FD और गोल्ड में पैसा लगाते हैं, क्योंकि उन्हें नुक़सान का डर सताता है. लोग पैसे खोने से डरते हैं, जितना मुनाफ़ा मिलने पर खुश होते हैं.
RBI रिपोर्ट के मुताबिक़, मिडिल क्लास ज़्यादा ख़र्च करने लगा है. ऑनलाइन शॉपिंग, खाना बाहर से मंगवाना, वीकेंड पर घूमना ये सब मिलकर सेविंग्स कम कर देते हैं.
रवि को SIP से डर इसलिए लगता था क्योंकि उन्हें सिर्फ़ FD का 6% रिटर्न ही सेफ़ लगता था. उनके लिए "सेफ़" का मतलब था, जो पहले से देखा हो. इसे कहते हैं Anchoring Bias.
एक फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र ने रवि को दिखाया कि निफ्टी 50 ने 10 साल में 12% सालाना रिटर्न दिया. और SIP से मार्केट के उतार-चढ़ाव का असर भी कम हो जाता है.
रवि के दोस्त संजय ने एक बार ₹50,000 गवाएं थे. लेकिन म्यूचुअल फ़ंड में टिके रहे और अब उनका पोर्टफ़ोलियो ₹15 लाख का है. असली सीख – नुक़सान से डरना नहीं, सीखना है.
रवि हर महीने ₹10,000 SIP में डालना शुरू किया. पहले साल में मार्केट गिरा और घाटा हुआ. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. 3 साल में पैसा ₹4.5 लाख हो गया.
रवि को समझ आया—जो डर उन्हें रोक रहा था, वो असली नहीं था. जैसे-जैसे समझ बढ़ी, डर कम हुआ. सोच बदली, तो फै़सले भी बदलने लगे.
अब रवि अपनी बेटी के लिए सेविंग्स के साथ निवेश भी करते हैं. उन्होंने सीखा—सिर्फ़ बचत से सपने पूरे नहीं होते, उसके लिए निवेश ज़रूरी है. तो क्या आप पहला क़दम उठाने के लिए तैयार हैं?