अपनी ज़रूरतों के मुताबिक़ सही फ़ंड का चुनाव काफ़ी मुश्किल है. एक बात और ध्यान देने वाली है कि निवेश के लिए फ़ंड चुनते समय सिर्फ़ रिटर्न या मुनाफ़े को ही एकमात्र पैमाना नहीं माना जा सकता.
क्योंकि, निवेश का लक्ष्य ही तय करता है कि आपके लिए सही एसेट एलोकेशन (asset allocation) और सही फ़ंड (fund type) क्या होगा.
अगर निवेश का लक्ष्य लंबे समय में बड़ा पैसा जमा करना है, तो आपको इक्विटी फ़ंड चुनना चाहिए. लेकिन, अगर आपके लिए रेग्युलर इनकम ज़्यादा अहम है, तो डेट-फ़ंड पर ग़ौर किया जा सकता है.
ख़ुद से सवाल करें कि क्या मैं अपने पोर्टफ़ोलियो की वैल्यू में ज़्यादा उतार-चढ़ाव के लिए तैयार हूं या फिर मुझे कम जोख़िम वाला इन्वेस्टमेंट ही चाहिए?
रिटर्न की संभावना जितनी ज़्यादा होती है रिस्क भी उतना ही होता है. ऐसे में, जितना रिस्क आप उठाना चाहते हैं, और निवेश से जितना रिटर्न पाने की उम्मीद रखते हैं, इन दोनों बातों के बीच आपको संतुलन बनाना होगा.
आपको अपने निवेश के समय और लिक्विडिटी की मुश्किलों को समझना होगा. यानी, आप कितने समय तक अपना इन्वेस्टमेंट बनाए रखना चाहेंगे?
ध्यान रखें कि कम समय के दौरान ये काफ़ी उतार-चढ़ाव वाला सकता है. कम अवधि के उतार-चढ़ाव का असर कम करने के लिए आप अपने इन्वेस्टमेंट का समय कम-से-कम पांच साल रखें.
ऐसा फ़ंड चुनें जो आपकी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हो. अगर आप ऊपर बताई बातों को ध्यान में रखते हैं, तो आसानी से सही म्यूचुअल फ़ंड चुन सकते हैं.
ये लेख/ पोस्ट म्यूचुअल फ़ंड्स में ध्यान रखने वाली बातों की जानकारी देने के लिए है.