डायरेक्ट प्लान में कमीशन और मार्केटिंग से जुड़ा ख़र्च कम होता है. इस सेविंग को स्कीम में निवेश किया जाता है, जिससे लंबे समय में ज़्यादा रिटर्न मिलता है जो इसकी सबसे बड़ी ख़ूबी है.
वहीं, Mutual Fund के रेग्युलर प्लान का Expense Ratio आमतौर पर डायरेक्ट प्लान से 1% ज़्यादा होता है. ये आंकड़ा छोटा लगता है, लेकिन समय के साथ ये बड़ा नुक़सान पहुंचा सकता है.
डायरेक्ट प्लान की ख़ामी ये है कि इसमें निवेश से जुड़े फैसले आपको ख़ुद ही लेने पड़ते हैं. साथ ही, निवेश से जुड़ी सभी औपचारिकताएं भी ख़ुद ही करनी पड़ती हैं.
डायरेक्ट प्लान में निवेश करने पर एक म्यूचुअल फ़ंड एडवाइज़र तक पहुंच नहीं मिलती. यानी, आप मदद के लिए म्यूचुअल फ़ंड एडवाइज़र से बात नहीं कर सकते.
साफ़ है कि उन्हीं निवेशकों को डायरेक्ट प्लान में निवेश करना चाहिए, जिन्हें म्यूचुअल फ़ंड्स और निवेश से जुड़ी पर्याप्त जानकारी हैं.