फ़िक्स्ड डिपॉजिट कई जेनरेशन से कम जोख़िम वाले निवेशकों की पहली पसंद रहे हैं. लेकिन डेट फ़ंड के फ़ायदों को नज़रअंदाज करना भी मुश्किल है. कुल मिलाकर, दोनों काफ़ी हद तक समान हैं.
दोनों में रिटर्न, निवेश की सुरक्षा और लिक्विडिटी के लिहाज़ से अंतर है. Debt Fund की तुलना में फ़िक्स्ड डिपॉजिट सुरक्षा के लिहाज़ से बेहतर है.
बैंक FD सबसे सुरक्षित विकल्प है. इसमें डिफॉल्ट की आशंका न के बराबर है. वहीं, Debt Fund में डिफॉल्ट नहीं होने की कोई गारंटी नहीं है.
डेट फ़ंड के निवेशकों को डिफ़ॉल्ट का सामना करना पड़ सकता है. डेट फ़ंड जिन बॉन्ड में निवेश करते हैं, उन्हें जारी करने वाली कंपनी के लिए क्रेडिट से जुड़े रिस्क हो सकते हैं.
SEBI फ़ंड इंडस्ट्री के काम-काज पर नज़र रखता है. SEBI ने निवेश के रिस्क प्रोफाइल को कंट्रोल करने के लिए कुछ नियम बना रखे हैं.
डेट फ़ंड्स को इंटरेस्ट रेट के जोख़िम का सामना भी करता है. इंटरेस्ट रेट बढ़ने पर फ़ंड की वैल्यू कम हो जाती है और इंटरेस्ट रेट घटने पर फ़ंड की वैल्यू बढ़ जाती है.
1 अप्रैल 2023 के बाद से दोनों ही निवेश पर लगभग समान टैक्स लगता है. ये निवेशक पर लागू टैक्स स्लैब के हिसाब से होता है.
लिक्विडिटी की बात करें तो ओपेन एंडेड डेट फ़ंड की रक़म दो से तीन वर्किंग डे में अकाउंट में आ जाती है.
आप Debt Fund में बैंक FD से ज़्यादा रिटर्न पा सकते हैं. निवेशक क्रेडिट रिस्क और इंटरेस्ट रिस्क को जानते हुए डेट फ़ंड में निवेश करते हैं और बदले में अच्छा रिटर्न हासिल करते हैं.
ये लेख/ म्यूचुअल फ़ंड से जुड़ी जानकारी देने के लिए है. इसे निवेश की सलाह न समझें.