चुनावी नतीजों के आस-पास बाज़ार का उतार-चढ़ाव, समझदारी और धीरज जैसी निवेश के दो ज़रूरी बातों का सबक़ रहा
कुछ निवेशकों ने कम NAV पाने के लिए 4 जून को म्यूचुअल फ़ंड में निवेश की कोशिश की थी. ये वो दिन था जब सेंसेक्स 9% नीचे था. उस दिन कुछ साहसी लोगों ने इक्विटी फ़ंड में निवेश करके फ़ायदा उठाने की कोशिश की.
अगर आप तय कट-ऑफ़ टाइम से पहले निवेश करते हैं, तो आपको उस दिन के NAV पर यूनिट्स मिलनी चाहिए. लेकिन, इस मशीन में तमाम पुर्ज़े हैं. इसीलिए, निवेशक को उस दिन की NAV पर यूनिट्स नहीं मिल पातीं.
यही वजह रही कि तमाम लोगों ने दावा किया कि 4 जून को समय पर ट्रांज़ैक्शन के बावजूद, उन्हें घटी हुई NAV नहीं मिली. इसके बजाय, उन्हें 5 जून की NAV मिली, जो ज़्यादातर इक्विटी फ़ंड्स में 2-3% बढ़ी हुई थी.
कुछ पंटर म्यूचुअल फ़ंड में ट्रेड करने की अपनी कोशिश में सफल नहीं हुए, वहीं एक दूसरे ग्रुप ने बिना कोशिश किए ही सफलता पा ली, और इसी में फ़ंड निवेश का एक बहुत ही बड़ा सबक़ छिपा है.
असल में, SIP की प्रकृति है कि कुछ महीनों में, आपको उछाल मिलता है, और कुछ महीनों में, धक्का लगता है. यानी, आपको पहली स्थिति में कुछ कम यूनिट्स मिलती हैं और दूसरी स्थिति में कुछ ज़्यादा.
कुल मिलाकर, ये अच्छी तरह काम करता है क्योंकि बाज़ार लंबे समय तक बढ़ता है. एक अर्से में लगातार SIP करने से लागत का औसत हो जाना, निवेश का सही तरीक़ा है. बाज़ार को टाइम करना भरोसे की रणनीति नहीं है.
म्यूचुअल फ़ंड के ज़रिए बड़ी पूंजी खड़ी करने का सार, नियमित रहने और धीरज बनाए रखने के दो सिद्धांतों में छुपा है. कोई भी एक दिन इतना मायने नहीं रखता - लेकिन सभी दिनों का कुल जोड़ आपको अमीर बना देगा.