असलियत: SIP में किए गए निवेश पर रिटर्न की कोई गारंटी नहीं होती है.
असलियत: SIP से रिस्क कम हो सकता है और बाज़ार की बड़ी गिरावट में सुरक्षा मिलती है. हालांकि, इस पर बाज़ार गिरने का असर होता है.
असलियत: चाहे, निवेश की रक़म हो, या निवेश की तारीख़, या दूसरी SIP में स्विच करना हो, ऐसे कई बदलाव आसानी से किए जा सकते हैं.
असलियत: हर हफ़्ते की जाने वाली SIP से चीज़ें सिर्फ़ जटिल होती हैं. इसलिए, हर महीने SIP निवेश करना ज़्यादा आसान तरीक़ा है.
असलियत: SIP की क़िश्त नहीं दे पाने पर कोई पेनल्टी नहीं लगती. हालांकि, बैंक ऑटो-डेबिट पेमेंट पूरा नहीं होने पर चार्ज वसूलते हैं.
असलियत: ये बात सही नहीं. हर तरह के फ़ंड में निवेश के लिए SIP अपना सकते हैं.
असलियत: SIP भले ही ₹500 जैसी छोटी रक़म से शुरू कर सकते हैं, लेकिन इसमें अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है.