क्या आप जानते हैं कि 12 महीने से ज़्यादा लंबे इक्विटी निवेश से हुए मुनाफ़े पर 10 फ़ीसदी टैक्स लगता है? हालांकि, ₹1 लाख तक के मुनाफ़े पर ये टैक्स नहीं लगता.
इसका मतलब है कि अगर आपने ₹5 लाख का निवेश किया है और मुनाफ़ा ₹1 लाख या उससे कम है, तो आप बिना टैक्स चुकाए अपना निवेश वापस निकाल सकते हैं. पर ऐसा तभी मुमकिन है, जब आपका निवेश कम से कम एक साल पुराना हो.
टैक्स हार्वेस्टिंग क्या है?
ऊपर दिया गया उदाहरण एक तरह की टैक्स हार्वेस्टिंग है.
अगर आपका मुनाफ़ा ₹1 लाख के दायरे के अंदर है, तो आप निवेश बेचकर बिना टैक्स दिए मुनाफ़ा कमा सकते हैं और इसी रक़म को दोबारा निवेश कर सकते हैं. इस रणनीति से आप टैक्स देने से बच सकते हैं.
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ऐसा करना फ़ायदेमंद है?
ज़रूरी नहीं. क्योंकि आप हर साल टैक्स के रूप में एक छोटी रक़म (₹1 लाख के मुनाफ़े पर ₹10,000) ही बचा रहे हैं.
हर साल बेचने और दोबारा निवेश का ये झंझट, शायद उतना फ़ायदेमंद साबित न हो. ख़ासकर लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए. असल में, बड़े निवेशकों के लिए इस तरह की बचत बहुत छोटी होती है.
हमने एक लेख के ज़रिए इस रणनीति का ज़्यादा गहराई से विश्लेषण किया है. (लेख यहां पढ़ें). आंकड़ों की जांच-पड़ताल से हमें पता चला कि एक निवेशक जो हर साल टैक्स हार्वेस्टिंग करता है, उसने टैक्स हार्वेस्टिंग न करने वाले निवेशक की तुलना में टैक्स देने के बाद, सिर्फ़ 0.29 प्रतिशत ज़्यादा रिटर्न कमाया.
ये भी ध्यान रखें
निवेश की रक़म हमारे बैंक अकाउंट में ट्रांसफ़र होने में T+2 दिन (2 क़ारोबारी दिन; विड्राल रिक्वेस्ट वाले दिन को गिने बिना) लगते हैं. पर अगर उस दौरान म्यूचुअल फ़ंड्स की NAV में बड़ा उछाल आ जाए, तो...? आप उस मौक़े से चूक जायेंगे.
कुल मिलाकर, टैक्स हार्वेस्टिंग उतनी फ़ायदेमंद नहीं है, ख़ासकर बड़ी रक़म निवेश करने वालों के लिए.
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