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मुनाफ़े की खेती

मैं यहां खेती की सलाह दे रहा हूं, बेहतर निवेश करने में शायद ये आपकी मदद करे.

मुनाफ़े की खेतीAnand Kumar

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5:31

आज इस कॉलम में मैं आपको खेती की सलाह देने जा रहा हूं. आप सोचेंगे कि मुझमें खेती-किसानी की सलाह देने की कोई क़ाबिलियत नहीं है, मगर मैं यक़ीन दिलाता हूं कि मेरे कई पुरखे इन्वेस्टमेंट एनेलिस्ट से ज़्यादा किसान रहे हैं. और ये है वो सलाह, जिसे मैं संक्षेप में आपके सामने रख रहा हूं:

  • फसल पर चिल्लाएं नहीं—तेज़ी से नहीं उगने का दोष फसल को न दें.
  • फसल पकने से पहले उखाड़ें नहीं.
  • ऐसे पौधे चुनें जो मिट्टी और मौसम के मुताबिक़ हों.
  • पानी और खाद देते रहें. खरपतवार को उखाड़ते रहें.
  • कुछ मौसम अच्छे आएंगे और कुछ ख़राब—मौसम पर आपका कोई ज़ोर नहीं. आप बस उसके लिए तैयार रह सकते हैं.

खेती के बारे में बस इतना ही. क्योंकि ये सलाह बचत और निवेश करने वाले मेरे पाठकों के लिए बेकार होगी, इसलिए अब बात करते हैं निवेश की.

निवेशक अक्सर अपना निवेश ग़लत उम्मीदों के साथ शुरू करते हैं—मैं ये बात जानता हूं क्योंकि मैंने अक्सर यही किया है. जब हम कोई निवेश चुनते हैं—चाहे कोई स्टॉक हो या म्यूचुअल फ़ंड—तो वो काम विश्वास का होता है, कमिटमेंट का होता है. हमने निवेश चुना है, और इस तरह से, हम उसके लिए ज़िम्मेदार हैं. कोई भी इस उम्मीद में निवेश नहीं चुनता कि ये थोड़ा ही मुनाफ़ा दे या इससे मार्केट जितना ही फ़ायदा हो. हमेशा ही, ज़्यादा की उम्मीद होती है, और असलियत ये होती है कि अक्सर हमारे कई निवेश हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते. ऐसे में, स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है कि इसका दोष स्टॉक, फ़ंड मैनेजर, एडवाइज़र, या किसी न किसी पर मढ़ दिया जाए. ये इंसानी स्वभाव है. हालांकि, सच ये है कि हम निवेश चाहे किसी भी तरह का करें, पैसा हमारा होता है, और हम ही ज़िम्मेदार होते हैं. अगर हम ख़राब फ़ैसला लेते हैं, तो उसे स्वीकार करना ही बेहतर है, हमें इस बात को समझना चाहिए और आगे बढ़ जाना चाहिए.

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मगर ये पता कैसे करें कि क्या हमारा फ़ैसला सच में ख़राब था? अक्सर, हमें इस बात का पता नहीं चल पाता. निवेशक—और असल में पूरा मार्केट—उन्माद और अवसाद के चक्र से गुज़रता ही है. जैसे हम शुरुआत में निवेश को लेकर अति-उत्साह से भरे होते हैं, उसी तरह निवेश जब हमारी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता तो अति-निराशावादी भी हो जाते हैं. निराशा से भर जाना और अपने निवेश जल्दी बेच देना आसान है. अगर आपका निवेश अब भी आपकी शुरुआती सोच पर खरा है, तो उसे बनाए रखिए. मुश्किल ये है कि हम असल कारणों से इतर, उम्मीद के आधार पर निवेश की शुरुआत करते हैं, मगर ये मुश्किल हल की जानी चाहिए, न कि जल्दी से निवेश बेच देना चाहिए.

ऐसे निवेश चुनना जो हमारे लिए सही नहीं हैं, एक और आम सी बात है. असल में, अक्सर जिस तरह से निवेश का चुनाव शुरू होता है वो तरीक़ा ही काफ़ी अजीब है. जब एक बचतकर्ता ये जानना चाहता है कि निवेश कहां करें, तो उसके लिए सबसे बेकार मगर काफ़ी जाना-पहचाना सवाल होता है: "मैं किस निवेश का चुनाव करूं?" मगर, ये ग़लत है. सही पहला सवाल है, "मैं अपने निवेश से क्या चाहता हूं और, इसलिए, मुझे किस तरह का निवेश चुनना चाहिए?" अगर निवेश ग़लत तरीक़े का है, तब इस बात का क्या मतलब होगा कि उसमें कितना फ़ायदा है—क्योंकि इससे आपकी समस्या नहीं सुलझेगी.

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दरअसल, अच्छा निवेश चुनना काफ़ी नहीं है. कभी अच्छा निवेश बुरा हो जाता है, या कभी-कभी तो आपकी ज़रूरतें ही बदल जाती हैं. आपके पोर्टफ़ोलियो को समय-समय पर री-बैलेंस किए जाने की ज़रूरत होती है, और ऐसे निवेश, जो अच्छे नतीजे नहीं दे रहे उन्हें बदलना होता है ताकि आपका पोर्टफ़ोलियो मज़बूत, और आपकी ज़रूरतों के मुताबिक़ बना रहे.

और आख़िर में, आपके निवेश में सब कुछ एकदम सही हो सकता है, लेकिन फिर भी कोई बाहरी घटना मुश्किल खड़ी कर सकती है. क्या ये अजीब नहीं कि निवेशक ऐसी बातों की चिंता करते हैं जिनपर उनका कोई बस नहीं होता, और ठीक उसी समय, वो उन बातों को नज़रअंदाज़ कर रहे होते हैं जिन्हें वो दुरुस्त कर सकते हैं? क्या आप आर्थिक प्रगति पर असर डाल सकते हैं? युद्ध और संघर्षों पर? ऊर्जा की क़ीमतों पर? ब्याज दरों पर? नहीं, आप इन्हें लेकर कुछ नहीं कर सकते. क्या आप तय कर सकते हैं कि आप कौन सा निवेश करें और किस क़ीमत पर करें? बिल्कुल, ये आप कर सकते हैं!

ये कहीं बेहतर है कि आप हर चीज़ के लिए तैयार रहें, मगर ये उम्मीद मत करें कि चीज़ें आसान ही बनी रहेंगी. कभी समय अच्छा होगा, और कभी काफ़ी बुरा, मगर ज़्यादातर, ये बेहतर होता रहेगा. हमारा काम, हमारा निवेश है, न कि पर्यावरण.

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