ज़्यादा पेंशन पाने को लेकर आपसे एक बात करनी है. लेकिन बात की शुरुआत एक घटना से करेंगे, वो 1983 का साल था, वही साल जब भारत ने पहली बार क्रिकेट की सबसे तगड़ी टीम, वेस्टइंडीज़ को पहली बार हराकर वर्ल्ड कप जीता था. इसके बाद आया 1987 का वर्ल्ड कप. इस बार भी ये वर्ल्ड कप इंग्लैंड में होना था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. मजबूरन वर्ल्ड कप को भारत और पाकिस्तान शिफ्ट कर दिया गया. क्या आप जानते हैं कि उस समय वर्ल्ड कप इंग्लैंड में क्यों नहीं हो पाया था? इसकी वजह थी कि इंग्लैंड के पेंशन देने वाली कंपनियां फ़ाइनेंशियल मुश्किलों का सामना कर रही थीं. और इसमें वर्ल्ड कप का प्रायोजक, प्रूडेंशियल भी शामिल था.
इंग्लैंड में उस समय पेंशन इंडस्ट्री संघर्ष कर रही थी. पेंशन पाने वालों का औसत जीवन लंबा हो रहा था और पेंशन फ़ंड के निवेश पर अनुमान से कम रिटर्न मिल रहा था. लेकिन तब पेंशन की रक़म तय हुआ करती थी और पेंशनर्स को तब तक पेंशन देनी होती थी जब तक वो जीवित रहते. बाद में ये घाटे को पूरा करने की ज़िम्मेदारी सरकार को लेनी पड़ी. लेकिन सरकार ने एक खेल कर दिया. सरकार ने पेंशन की अधिकतम सीमा तय कर दी. इसका मतलब था कि एक तय रक़म से ज़्यादा पेंशन किसी को नहीं मिलेगी. ऐसे में ज़्यादा पेंशन के हक़दार लोगों को नुक़सान उठाना पड़ा.
अमेरिका की सरकार ने पेंशनर्स को दिया झटका
अब आते हैं अमेरिका पर. 2008 के वित्तीय संकट के बाद जनरल मोटर्स दिवालिया होने के कगार पर आ गई. तमाम दूसरी बातों के साथ इसकी एक बड़ी वजह ये थी कि कंपनी को अपने पूर्व कर्मचारियों को ऊंची पेंशन देनी थी. बाद में अमेरिकी सरकार ने कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया और पेंशन की देनदारी अपने ऊपर ले ली. पर यहां भी यही खेल हुआ. सरकार ने अधिकतम पेंशन की रक़म तय कर दी और हायर पेंशन के हक़दार पेंशनर्स को नुक़सान उठाना पड़ा.
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ऐसी पेंशन स्क़ीमें फ़ेल होती हैं
ये घटनाएं बताती हैं कि लापरवाही से चलाई जा रही पेंशन स्क़ीमें आखिरकार फ़ेल हो जाती हैं. और जब सरकार स्कीमों को अपने हाथ में लेती है, तो उन लोगों के हितों की रक्षा करने पर फ़ोकस करती है, जिनको पेंशन की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. ऐसे में ज़्यादा पेंशन पाने वालों को अक्सर नुक़सान उठाना पड़ता है.
यही वज़ह है कि इन दिनों कर्मचारी ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि क्या उनको इम्पलॉइज़ प्रॉविडेंट फ़ंड का हिस्सा, पेंशन फ़ंड में डालना चाहिए जिससे भविष्य में उनको ज्यादा पेंशन मिल सके.
रिटायरमेंट के बाद EPS स्कीम में पेंशन सिर्फ उन्हीं कर्मचारियों को मिल सकती है जिन्होंने स्कीम में 10 साल पूरे किए हैं. जो कर्मचारी स्कीम में 10 साल पूरा नहीं कर पाते वे अपना EPS कंट्रीब्यूशन निकाल सकते हैं. पैसे निकालने की सुविधा होने के बावजूद बहुत से कर्मचारी EPS फंड का पैसा नहीं निकालते. ये अनक्लेम्ड अमाउंट बहुत बड़ा है और इस बात की काफ़ी संभावना है कि इस रक़म को कभी क्लेम न किया जाए. इस सरप्लस रक़म पर मिलने वाला ब्याज कई ऐसे वादों को पूरा करने में मदद करता है, जिनको पूरा करना आर्थिक तौर पर वहनीय है, जैसे न्यूनतम ₹1,000 पेंशन का वादा.
सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसले ने EPF सब्सक्राइर्स को ये सुविधा दी है कि अधिकतम सैलरी ₹15,000 की बाधा के बिना अधिक पेंशन हासिल कर सकते हैं. हालांकि इस सुविधा का फ़ायदा उठाने के लिए सब्सक्राइबर्स को EPF अकाउंट से एक बड़ी रक़म EPS में ट्रांसफर करनी होगी. ये एक बड़ा मसला है और इस पर काफ़ी बात हो रही है कि ऐसा करना फ़ायदेमंद होगा या नहीं.
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EPFO की 2022 की एनुअल रिपोर्ट के अनुसार पेंशन फ़ंड लगभग ₹23 हजार करोड़ के घाटे में है. रिटायरमेंट के समय पेंशन की अधिकतम सीमा खत्म होने के बाद और भारतीयों की औसत उम्र बढ़ने के साथ ये घाटा और बढ़ने की उम्मीद है.
रिटायरमेंट का पैसा म्यूचुअल फ़ंड में लगाना फ़ायदेमंद
कुल मिलाकर बात ये है कि भविष्य में अपने EPF कॉर्पस से अधिक पेंशन की उम्मीद करने वाले कर्मचारी सरकार पर दांव लगा रहे हैं कि सरकार आगे आएगी और घाटे को पूरा करेगी. हालांकि, इतिहास बताता है कि जब सरकार हस्तक्षेप करती है तो ज्यादा पेंशन हासिल करने के हकदार कर्मचारियों को नुक़सान उठाना पड़़ता है. ऊंची सैलरी वाले कर्मचारी अगर रिटायरमेंट पर EPF की टैक्स फ्री रक़म अगर अपनी ज़रूरत और जोख़िम उठाने की क्षमता के हिसाब से म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करें तो आप फ़ायदे में रहेंगे, बजाए इसके कि आप अपनी गाढ़ी कमाई की रक़म भविष्य की पेंशन के लिए दांव पर लगाएं, जिसका अपना भविष्य अधर में है.
धनक करेगा आपकी मदद
यहां धनक आपकी मदद कर सकता है. धनक आपको न सिर्फ ये बताएगा कि आप रिटायरमेंट के लिए कैसे बचत और निवेश करें बल्कि रिटायरमेंट के बाद की ज़रूरतों को आप कहां निवेश करके पूरा कर सकते हैं और सूकून की जिंदगी बिता सकते हैं.
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ये लेख पहली बार मई 19, 2023 को पब्लिश हुआ.