Go First Insolvency: लगभग चार साल पहले वर्ष 2019 में गो फ़र्स्ट एयरलाइन IPO लाने की तैयारी कर रही थी और अब उसे दिवालिया होने के लिए आवेदन करना पड़ गया है. कंपनियों के दिवालिया होने से क्रेडिटर्स को ही नहीं, बल्कि इन्वेस्टर्स को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है. हालांकि, गो फ़र्स्ट की घटना में इन्वेस्टर्स के लिए भी कई सबक हैं जिनसे वो अपने पैसे के सुरक्षित निवेश से जुड़ी कुछ बातें सीख सकते हैं.
क्यों दिवालिया होती हैं कंपनियां?
दिवालिया होने की कई वजह हो सकती हैं -
- कंपनी अपनी देनदारियों का समय से भुगतान करने में बार-बार नाकाम होने लगे, या उसकी बैलेंस शीट में एसेट्स की तुलना में देनदारियां ज़्यादा हो जाएं.
- रेवेन्यू की तुलना में कंपनी का ख़र्च लगातार ज़्यादा बना रहे या एक्सपेंशन पर किए गए निवेश की तुलना में रेवेन्यू न बढ़े. ऐसी स्थिति में कंपनी के सामने वर्किंग कैपिटल का संकट पैदा होने लगता है.
- कई बार कंपनियां क्लाइंट्स की ज़रूरतों के आधार पर ख़ुद में बदलाव नहीं करतीं और एक ही ढर्रे पर काम करती रहती हैं.
- इसका मतलब है कि कंपनी अपने कर्ज़ चुकाने की स्थिति में नहीं है. ज़्यादा कर्ज़, कमज़ोर कैश-फ्लो के चलते मैनेजमेंट अब कंपनी का ऑपरेशन जारी रखने की स्थिति में नहीं है.
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स्टॉक्स या आपके निवेश का क्या होगा?
- अब हम मुख्य सवाल पर आते हैं. कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति में छोटे इन्वेस्टर्स यानी उसके स्टॉक्स खरीदने वालों का क्या होगा. यानी उनके पैसे वापस कैसे मिलेंगे? और मिलेंगे भी या नहीं?
- एक इन्वेस्टर के लिहाज़ से सबसे पहले आपके इन्वेस्टमेंट की वैल्यू घट जाएगी.
- इसकी वजह यह है कि स्टॉक मार्केट दिवालिया कंपनियों पर कोई रहम नहीं दिखाता. दिवालिया की खबरों, इसके ऐलान या कंपनी जब इसके लिए आवेदन करती है तो उसके बाद कंपनी के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिलती है.
- ऐसी स्थिति में, आपके पास दो विकल्प होते हैं. पहला, और गिरावट से बचने के लिए तुरंत शेयर बेचकर निकल जाएं.
- या फिर, इस उम्मीद में निवेश बनाए रखें कि कंपनी अस्थायी दिवालिया की प्रक्रिया से उबर जाएगी और ट्रैक पर आ जाएगा. हालांकि, धनक की राय में अपने निवेश को लेकर इस तरह के नज़रिए में रिस्क बहुत ज़्यादा है.
- आमतौर पर, दिवालिया होने के बाद कंपनी अपने कुल एसेट्स बेचकर क्रेडिटर्स का लोन चुका देती है. वास्तव में इस पैसे पर पहला हक क्रेडिटर्स या बैंकों का होता है.
- सभी क्रेडिटर्स, कर्मचारियों की देनदारियां चुकाने के बाद जब पैसा बचता है, तब स्टॉक इन्वेस्टर्स का नंबर आएगा. तब तक, स्टॉक्स की वैल्यू ख़ासी गिर चुकी होगी और बची-खुची रकम में से इन्वेस्टर्स के हाथ में मामूली रकम ही आएगी.
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Jet Airways की मिसाल से समझते हैं
इसे एक समय भारत की दिग्गज एयरलाइंस में शुमार रही जेट एयरवेज के दिवालिया (jet airways bankruptcy) के उदाहरण से समझिए. यह कंपनी अप्रैल 2019 में दिवालिया हो गई थी. यही वजह रही कि इस साल अप्रैल और अक्टूबर के बीच शेयर की कीमत ₹250 से घटकर लगभग ₹15 रह गई. हालांकि, ऑपरेशन शुरू होने की संभावनाओं से जुड़ी खबरों के चलते फिलहाल शेयर ₹60 के आसपास बना हुआ है.
ऐसे जोखिम वाली कंपनियों में निवेश से कैसे बचें?
- ध्यान रखिए कि ऐसे हालात रातों-रात पैदा नहीं होते. अगर आप सतर्क रहें तो कंपनी के संकट में होने के संकेत पहले ही मिलने लगते हैं.
- अगर आप किसी कंपनी के दिवालिया होने की आशंकाओं को जानकर अपने निवेश को गंवाने के जोख़िम को कम करना चाहते हैं, तो धनक पर लिस्टिड कंपनियों का पूरा ब्यौरा मौजूद है और ये आपके लिए काफ़ी मददगार हो सकता है.
धनक से जानिए, दिवालिया होने की आशंकाएं...
सबसे पहले dhanak.com पर ऊपर की तरफ दिख रही दूसरी लाइन में सबसे दायीं तरफ सर्च के साइन पर क्लिक करें. फिर वहां उस कंपनी का नाम लिखें, जिसके दिवालिया होने की आशंकाएं आप जानना चाहते हैं.
- मान लीजिए, आपने वहां स्पाइस जेट का नाम लिखा, तो आपके सामने स्पाइस जेट के शेयर का ब्योरा सामने आ जाएगा.
- थोड़ा नीचे जाने पर आपको नीचे दिखाई गई डिटेल नजर आएगी. यानी ऑल्टमैन ज़ेड स्कोर पर -7.52 अंक मिले हैं. यहां स्पष्ट लिखा है कि स्पाइसजेट के कर्ज चुकाने की क्षमता कम हो सकती है.
- इसी तरह आप दूसरी कंपनियों का आकलन कर सकते हैं. और निवेश के फ़ैसले लेते समय इसका फ़ायदा उठा सकते हैं.
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भारत में क्या है कानून?
Insolvency and Bankruptcy Code (IBC): भारत जैसी तेज़ी से बढ़ती इकोनॉमी में एक मज़बूत क्रेडिट-फ़्लो और नई कैपिटल का जेनरेट होना ज़रूरी है. हालांकि, किसी कंपनी या बिज़नस के दिवालिया होने की स्थिति में, वो अपने लोन का डिफ़ॉल्ट करने लगती हैं. ऐसी हालत में कर्ज़, बैड लोन में न बदल जाए, इसके लिए बैंकों या क्रेडिटर्स को डिफ़ॉल्टर से जितना संभव हो लोन वसूल कर लेना चाहिए. ये काम जितनी जल्दी किया जाए बेहतर होता है.
इस प्रक्रिया में कंपनी नए प्रबंधन के साथ नई शुरुआत करने का मौका मिल सकता है या चरणबद्ध तरीके से कंपनी को बेचा जा सकता है. इस तरीके से सिस्टम में नई पूंजी आती है और एसेट्स की वैल्यू के नुकसान को कम-से-कम किया जा सकता है.
दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए भारत सरकार ने 2016 में इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) बनाया था. इससे देश की संकट में फंसी कंपनियों और कर्ज़ के समाधान की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव हुआ था. IBC के जरिये लिक्विडेशन और रिजॉल्यूशन दो तरीके से समाधान होता है. लिक्विडेशन का मतलब एसेट्स की बिक्री और रिजॉल्यूशन के तहत रिस्ट्रक्चरिंग या नई ओनरशिप के प्लान पर काम किया जाता है.
देखिए ये वीडियो- स्टॉक vs इक्विटी vs इंडेक्स: कहां करें निवेश?
ये लेख पहली बार मई 08, 2023 को पब्लिश हुआ.