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फ़ंड दो- तीन ही अच्‍छे

आपके निवेश को एक हद तक नुक़सान से बचाता है डायवर्सिफिकेशन

फ़ंड दो- तीन ही अच्‍छे

हम सबने स्‍कूल के दिनों में पढ़ा है कि 'अपने सभी अंडे एक टोकरी में मत रखो.' निवेश के लिहाज से इसका मतलब है कि अपनी सारी पूंजी या निवेश एक ही जगह पर न लगाएं. अगर आपने अपनी पूंजी एक ही जगह पर लगा दी तो खराब समय आने पर बड़ा नुकसान हो सकता है. बेहतर है कि अपना पैसा दो-तीन जगह लगाएं. किसी एक जगह पर आपको नुकसान होगा तो दूसरी जगह से इस नुकसान की भरपाई भी हो सकती है. एक साथ हर जगह नुकसान की आशंका बेहद कम होती है. निवेश की दुनिया में इसी को डावर्सिफिकेशन कहा जाता है.

एक लिमिट के बाद मजाक बन जाता है डायवर्सिफिकेशन
इसकी वजह से निवेशकों को ऐसा लगता है कि कई फंड में निवेश करना एक या दो फंड में निवेश करने से बेहतर है. इसी तरह से तीन फंड में निवेश करना दो फंड में निवेश करने से बेहतर है, और चार फंड में निवेश करना तीन फंड में निवेश करने से बेहतर है. क्‍या इसकी कोई अधिकतम सीमा है? क्‍या 10 फंड में निवेश करना 9 फंड में निवेश करने से बेहतर है? अगर 50 या इससे अधिक फंड निवेश किया जाए तो? दरअसल, एक सीमा के बाद डायवर्सिफिकेशन का कोई मतलब नहीं रह जाता है. इसके बाद इससे फ़ायदा होने के बजाए नुकसान होता है और यह मजाक बन जाता है.

क्‍या इससे रिटर्न घटता है ? ज़्यादातर निवेशक सोचते हैं कि डायवर्सिफिकेशन की लिमिट होना सही नहीं है. निवेशकों को लगता है कि डायवर्सिफिकेशन के लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा फंड में निवेश करना चाहिए. हालांकि सच यह है कि अगर आप एक सीमा से अधिक संख्‍या में फंड में निवेश करते हैं तो यह आपको अतिरिक्‍त डायवर्सिफिकेशन मुहैया नहीं कराता है. म्‍यूचुअल फंड अपने आप में निवेश नहीं हैं. उनके जरिए आप शेयरों में निवेश करते हैं. ज़रूरत से ज्‍यादा डायवर्सिफिकेशन का कोई मतलब नहीं होता है क्‍योंकि जब आप बहुत से फंड खरीदते हैं, तो अनजाने में एक जैसे शेयर विभिन्‍न फंड के माध्‍यम से खरीद लेते हैं.

एक हद तक नुकसान से बचाता है डायवर्सिफिकेशन
सवाल ये है कि हम अपने निवेश को बांटते क्‍यों हैं? डायवर्सिफिकेशन आपको एक तरह के निवेश के खराब प्रदर्शन से बचाता है. अगर पूरे बाजार की तुलना में एक कंपनी या सेक्‍टर खराब प्रदर्शन करता है और आपके कुल निवेश का एक छोटा हिस्‍सा इसमें है तो आपको ज्‍यादा नुकसान नहीं होता है. आप छोटी, बड़ी व मझोले आकार की कंपनियों में भी निवेश करके डावर्सिफिकेशन कर सकते हैं. कभी-कभी सिर्फ छोटी या बड़ी कंपनियां ही अच्‍छा या खराब प्रदर्शन करती हैं. अगर पूरा बाजार ही जोरदार गिरावट की चपेट में आ जाता है तो डायवर्सिफिकेशन से कोई मदद नहीं मिलती है.

ये भी पढ़ें- ख़राब फंड निवेश से कब बाहर निकलें?

ज्‍यादा फंड्स में निवेश से होता है नुकसान
आम तौर पर निवेशक इसलिए कई फंड में निवेश करते हैं क्‍योंकि किसी ने उनको ये फंड बेच दिए हैं और कमीशन कमाया है. निवेशक को यह पता नहीं होता है कि डायवर्सिफिकेशन क्‍या है और वह मानता है कि ज्‍यादा से ज्‍यादा फंड में निवेश करना अच्‍छा है. सवाल सिर्फ यह नहीं है कि ज़्यादा फंड में निवेश करने का कोई फ़ायदा होता है या नहीं. वास्‍तव में इससे नुकसान होता है. एक पोर्टफ़ोलियो में कई फंड होने से म्‍यूचुअल फंड में निवेश का पूरा फ़ायदा नहीं मिल पाता. म्‍यूचुअल फंड में निवेश की समीक्षा करना और आकलन करना कठिन हो जाता है. समय-समय पर, जैसे एक तिमाही में एक बार निवेशक को अपने पोर्टफोलियो में एक- एक फ़ंड का आकलन करके देखना चाहिए कि क्‍या उसको ये फंड उम्‍मीद के हिसाब से रिटर्न दे रहा है या नहीं.

अगर आपके पोर्टफ़ोलियो में म्‍यूचुअल फंड्स की संख्‍या काफी अधिक है तो ये काम काफी कठिन हो जाता है. अगर आपके पास 15 या 20 फंड हैं और इनमें से ज़्यादातर ऐसे फ़ंड हैं, जिसे किसी ने आपको बेचा है तो आपके लिए फंड के प्रदर्शन की समीक्षा करना संभव नहीं है. अगर आप अपने पोर्टफ़ोलियो का आकलन नहीं कर सकते और उसे संभाल नहीं सकते हैं तो आपके लिए अपना गोल हासिल करना बहुत मुश्किल है.

तीन-चार फंड तक ही सीमित रखें निवेश
आपको ज़्यादा से ज्‍यादा तीन या चार फंड में निवेश करना चाहिए. इससे अधिक फंड्स में निवेश करना समय की बर्बादी है. यदि निवेश की रक़म छोटी है तो फंड्स की संख्‍या और भी कम हो सकती है. अगर कोई व्‍यक्ति हर माह ₹5 या ₹6 हजार निवेश कर रहा तो उसके लिए एक या दो बैलेंस्‍ड फंड ठीक हैं. इससे ज्‍यादा फंड में निवेश करने का कोई मतलब नहीं है.

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ये लेख पहली बार अप्रैल 14, 2023 को पब्लिश हुआ.

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