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अनिल अंबानी ग्रुप की नाकामी में निवेश के सबक

अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप का पतन क्यों हुआ और इससे क्या सबक लिए जा सकते हैं?

अनिल अंबानी ग्रुप की नाकामी में निवेश के सबक

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रिलायंस एक बड़ा नाम है. जब यह दो हिस्सों में बंटा था, तो सभी को नए ग्रुप के सफल होने की उम्मीद थी. हालांकि, रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप (Reliance ADAG) ने सभी की उम्मीदों को तोड़ दिया और उनके एम्पायर का पतन हो गया. आइए, इस लेख में इसकी वजहों पर गौर करते हैं. देखते हैं कि उनके सफर से हम निवेश के कौन-से सबक ले सकते हैं.

साफ है कि अगर प्रबंधन ठीक न हो तो सबसे अच्छी और सबसे बड़ी कंपनियां भी खत्म हो सकती हैं. लीडर्स को प्रभावी और कुशल होना होता है. उनके फैसले उपयुक्त होने चाहिए और उन्हें पुख्ता तैयारी के साथ लागू किया जाना चाहिए.

इनोवेशन
टेक्नोलॉजी में किसी भी बिज़नस को इनोवेटिव यानी नई खोज करते रहने की जरूरत है. जब 4जी नेटवर्क आया तो रिलायंस कम्युनिकेशंस किसी भी रूप में एयरटेल और रिलायंस जियो की बराबरी नहीं कर सकी. वे अस्थिर माने जाने वाले CDMA (कोड डिवीजन मल्टीपल एक्सेस) प्लेटफॉर्म को बदलने में भी नाकाम रहे थे.

कॉम्पिटीशन के बावजूद, जहां उन्होंने कर्ज लिया और बिज़नस को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहे, वहीं घाटा, कर्ज भी बढ़ता गया. आखिरकार 2017 में रिलायंस कम्युनिकेशंस को अपना वायरलेस ऑपरेशन बंद करना पड़ गया. दूसरे शब्दों में कहें तो इनोवेशन और ग्रोथ के मोर्चे पर रिलायंस कम्युनिकेशंस नाकाम रही.

कर्ज का जाल
ग्रोथ के लिए अच्छी तरह से योजना बनाए बिना अंधाधुंध तरीके से कदम उठाने का नुकसान भी हो सकता है. भले ही कर्ज से रिटर्न को कई गुना बढ़ाने में मदद मिल सकती है, लेकिन बेहद ज़्यादा कर्ज से एक बड़ी मुसीबत पैदा होती है. अगर समझदारी के साथ निवेश के फैसले नहीं लिए जाते, तो कंपनी का फेल होना तय है.

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कारगर नहीं रहा खर्च
कर्ज की तरह ही, कैपेक्स यानी पूंजीगत खर्च का भी जिम्मेदारी और कुशलता के साथ प्रबंधन की जरूरत होती है. कंपनी ने पीपावाव डिफेंस और ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी (वर्तमान में रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग) के रूप में 2,427 करोड़ रुपये में भारत के डिफेंस सेक्टर का सबसे बड़ा अधिग्रहण किया. अब कंपनी भारत में शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री में सबसे बड़ी इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर है.

भले ही उसे बाजार में खासी बढ़त हासिल थी, लेकिन ग्रुप को इससे फ़ायदा नहीं मिला. अधिग्रहण के बाद, रेवेन्यू लगातार घटता गया और कर्ज बढ़ता चला गया.

तो क्या हैं सबक?
रिलायंस एडीएजी के सफर के सबक कुछ हद तक साफ नजर आते हैं, लेकिन कभी कभार इस पर नजर नहीं पड़ती है.

पहली बात सीखने की यह है कि भले ही डायवर्सिफिकेशन बहुत अच्छी बात है, लेकिन इस पर ज़्यादा जोर देने से रिस्क पैदा हो सकता है. साथ ही, डायवर्सिफिकेशन तभी अच्छा है जब कंपनी उस बिज़नस को अच्छी तरह समझती हो जिसमें वो उतर रही हो.

इसी प्रकार, ग्रोथ में डेट और कैपेक्स खासे अहम हैं. इनसे बिज़नस को अच्छी ग्रोथ मिल सकती है. हालांकि, उनका कुशलता और जिम्मेदारी के साथ प्रबंधन करने की जरूरत है, जिससे भविष्य में कर्ज के जाल में फंसने से बचा जा सके.

देखें वीडियो- नए टैक्स सिस्टम में आप अपने इन्वेस्टमेंट कैसे प्लान करें?

ये लेख पहली बार अप्रैल 11, 2023 को पब्लिश हुआ.

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