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गलतियां जो मार्केट से दूर ले जाएं

10 करोड़ Demat अकाउंट और 5 करोड़ SIP अकाउंट दिखाते हैं कि इक्विटी में भरोसा बढ़ रहा है

गलतियां जो मार्केट से दूर ले जाएं

हम सब अमीर होना चाहते हैं. यही हसरत लिए लाखों लोग मार्केट में निवेश शुरू करते हैं. लेकिन ये जोश और जज़्बा लंबे समय तक नहीं चल पाता. लाखों नए निवेशकों की यही कहानी होती है.

पिछले कुछ सालों के दौरान डीमैट अकाउंट और SIP अकाउंट की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. डीमैट अकाउंट की संख्या 10 करोड़ और SIP अकाउंट की संख्या 5 करोड़ के पार हो गई है. यानी ये तो साफ़ है कि बैंक FD और PPF जैसे पारंपरिक विकल्पों में निवेश करने वाले काफ़ी लोग मार्केट में निवेश के लिए आगे आ रहे हैं. यहां हम उन वजहों की पड़ताल करेंगे, जो नए निवेशकों को मार्केट से हमेशा के लिए दूर कर देती हैं.

किसी के कहने पर निवेश करना: किसी के कहने पर निवेश करना और नुक़सान होने पर मार्केट को हमेशा के लिए नमस्ते कह देना. ये एक आम ग़लती है. दिल्ली यूनीवर्सिटी में इकोनॉमिक्स पढ़ाने वाले एक प्रोफेसर ने भी ये गलती की थी. उन्होंने स्टॉक इन्वेस्टिंग से जुड़े अपने एक रिश्तेदार के कहने पर 90 के दशक में स्टॉक में निवेश किया और उनका सारा पैसा डूब गया. इसके बाद उन्होंने जीवन भर मार्केट की तरफ मुड़ कर नहीं देखा. प्रोफेसर साहब ने मार्केट में निवेश के बारे में बुनियादी बातों को समझे बिना सिर्फ़ अपने रिश्तेदार के कहने पर निवेश किया और अपनी जमा पूंजी गवां बैठे.

मार्केट का स्वभाव समझे बिना निवेश करना: अक्सर निवेशक बड़े मुनाफ़े के लालच में आकर म्यूचुअल फ़ंड या स्टॉक के ज़रिए निवेश शुरू कर देते हैं. लेकिन ये समझने की कोशिश नहीं करते कि मार्केट कैसे काम करता है, और इसके उतार-चढ़ाव के डायनमिक्स क्या हैं. जैसे हमारे एक जानकार ने SIP शुरू की और शुरुआती 6 महीने से लेकर 1 साल तक उनकी SIP का रिटर्न बैंक एफ़डी से भी कम रहा तो उन्होंने अपने निवेश को भुनाया, SIP अकाउंट बंद किया और चलते बने.

कम समय का नज़रिया: आमतौर पर नए निवेशक जब मार्केट में निवेश करते हैं, तो उनको मार्केट पर बहुत थोड़ा भरोसा होता है. वो ये सोच कर निवेश करते हैं कि अगर 1-2 साल तक चीज़ें अच्छी रहीं तो ठीक, वरना पैसा लेकर निकल जाएंगे. यानी वो मार्केट को परखते हैं. अगर इस अवधि में उनके निवेश में बड़ी गिरावट आ जाती है या रिटर्न उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते, तो वो मार्केट से बाहर हो जाते हैं. वो इस बात को नहीं समझते कि इक्विटी निवेश को लेकर 1-2 साल में कोई निष्कर्ष निकाल लेना ग़लत है. अगर आप म्यूचुअल फ़ंड के शुरुआती 1-साल के रिटर्न पर ग़ौर करेंगे, तो अक्सर आपको यही पैटर्न नज़र आएगा. वहीं 3-साल, 5-साल और 10-साल का रिटर्न शानदार दिखाई देगा.

आप नीचे ग्राफ़ में देख सकते हैं कि म्यूचुअल फ़ंड में निवेश लंबे समय का खेल है. यहां कम अवधि का नज़रिया रखने से आपको नुक़सान होगा.

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बड़े नुक़सान का डर: आप इस बात की कल्पना करें कि आपने कोराना महामारी से कुछ साल पहले ही मार्केट में निवेश शुरू किया है और मार्च 2020 में आपके निवेश की क़ीमत 30 प्रतिशत कम हो गई. ख़ास कर ऐसे माहौल में जब किसी को नहीं पता था कि कोरोना किस हद तक दुनिया को प्रभावित करने जा रहा है. ऐसे माहौल में नए निवेशक ही नहीं, अनुभवी निवेशक भी डर गए और बड़े पैमाने पर लोगों ने और ज़्यादा नुक़सान से बचने के लिए अपना निवेश बेच दिया. हालांकि एक दो महीने बाद ही मार्केट में वापस चढ़ना शुरु हो गया और बाद के समय में मार्केट में तेज़ी भी आई. ऐसे में उन लोगों को पछताना पड़ा जो निवेश बेच कर मार्केट से निकल गए थे. उन्होंने बड़ी गिरावट के बीच अपने निवेश को बेच कर अपने नुक़सान को पक्का कर लिया. अगर वो निवेश बनाए रखते, तो रिकवरी होने पर उनके नुक़सान की भरपाई हो जाती. नए निवेशकों के लिए ये सबक़ है कि बड़ी गिरावट से डर कर निवेश बेचने से उनको नुक़सान ही होगा. अगर आप पिछले तीन दशक में सेंसेक्स का ग्राफ़ देखेंगे, तो पाएंगे कि ये ऊपर ही जा रहा है. लेकिन इन तीन दशकों में मार्केट हज़ारों बार गंभीर गिरावट के दौर से गुज़रा है और हर बार वापसी भी की है.

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ये लेख पहली बार जनवरी 25, 2023 को पब्लिश हुआ.

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