अमेरिका हो या यूरोप। पाकिस्तान हो या बांग्लादेश। महंगाई से पूरी दुनिया परेशान है। और ब्रिटेन में तो लोग एक टाइम का खाना ही स्किप कर रहे हैं। यानी महंगाई जेब पर ही नहीं पेट पर भी असर दिखा रही है। महंगाई की मार से भारत भी अछूता नहीं है।
रिजर्व बैंक अब तक रेपो रेट में लगभग 2 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है। रेपो रेट वह दर है,जिस पर रिजर्व बैंक बैंकों को कर्ज देता है। मई 2022 में रेपो रेट 4.0 प्रतिशत थी और अब ये बढ़ कर 5.90 प्रतिशत हो चुकी है। ब्याज दरें बढ़ने का ये दौर अभी थमने वाला नहीं है। माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक मॉनिटरी पॉलिसी की अगली समीक्षा बैठक में रेपो रेट में और इजाफा करने का फैसला ले सकता है। हम जानते हैं कि ब्याज दरें बढ़ने से कर्ज महंगा हो जाता है लेकिन ये आपके निवेश को भी प्रभावित करता है।
ऐसे में ब्याज दरें बढ़ने से क्या निवेशकों को चिंतित होना चाहिए? ऐसे समय में निवेश को लेकर आपकी रणनीति क्या होनी चाहिए? यहां हम इस बात को डिकोड कर रहे हैं कि अलग-अलग असेट क्लास के प्रदर्शन पर ब्याज दरें बढ़ने का कैसा असर होता है। अगर आपका निवेश डेट फ़ंड में है तो इसका आप पर क्या असर होगा? आपका निवेश इक्विटी फ़ंड में है तो कैसा असर होगा और अगर आप नए निवेशक हैं और ऐसे माहौल में आप म्यूचुअल फ़ंड या सीधे स्टॉक्स में निवेश करने जा रहे हैं तो आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
डेट फ़ंड पर असर
डेट फ़ंड बॉन्ड में निवेश करते हैं। और ब्याज दरें बढ़ने का सीधा असर बॉन्ड की कीमतों पर पड़ता है। जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो मार्केट में पहले से मौजूद बॉन्ड की कीमतें गिरती हैं। इसकी वजह ये होती है कि ब्याज दरें बढ़ने के बाद मार्केट में जो नए बॉन्ड आते हैं वे पुराने बॉन्ड की तुलना में ज्यादा ब्याज ऑफर करते हैं। ऐसे में नए बॉन्ड की मांग बढ़ जाती है और पहले से मौजूद बॉन्ड की मांग गिर जाती है। वैसे तो ब्याज दरें बढ़ने का असर हर तरह के डेट इंस्ट्रूमेंट पर पड़ता है लेकिन मध्यम से लंबी अवधि के बॉन्ड पर कम अवधि के बॉन्ड की तुलना में असर ज्यादा गहरा होता है। इसकी वज़ह ये है कि कम अवधि के बॉन्ड की कीमतों में उतार-चढ़ाव बहुत कम होता है।
कम अवधि के लिए निवेश करने वाले डेट इंस्ट्रूमेंट ऐसे परिदृश्य में अच्छा प्रदर्शन करते हैं जब ब्याज दरें बढ़ रही हों वहीं मध्यम से लंबी अवधि वाले डेट फ़ंड को कीमतों में करेक्शन का सामना करना पड़ता है। dhanak.com
इक्विटी पर बढ़ता है दबाव
इक्विटी के लिए ब्याज दरों का बढ़ना अच्छी खबर नहीं होती है। ब्याज दरें बढ़ने से कंपनियों के लिए पूंजी की लागत बढ़ जाती है। कर्ज महंगा हो जाता है। और आम तौर पर महंगाई बढ़ने के साथ ही ब्याज दरें बढ़ती हैं। ऐसे में ब्याज दरें बढ़ने का असर मांग पर भी पड़ता है और मांग गिर जाती है। तो एक निवेशक के तौर पर आपके लिए अहम ये है कि आप इक्विटी में लंबे समय के लिए निवेश करें। यहां लंबे समय का मतलब है कि कम से 7 से 10 साल के लिए। और अगर आप अगले चार पांच साल में रिटायर होने वाले हैं तो 50-60 फीसदी से अधिक रकम इक्विटी में न रखें। बाकी रकम आपको लिक्विड फ़ंड या शॉर्ट ड्यूरेशन फ़ंड में रखनी चाहिए। इस तरह की री-बैलेंसिंग से आप इक्विटी मार्केट के उतार-चढ़ाव का सामना बेहतर तरीके से कर पाएंगे। अगर किसी ने अभी कुछ साल पहले ही इक्विटी में निवेश करना शुरू किया और लंबे समय के लिए निवेश कर रहा है तो ऐसे निवेशकों को ब्याज दरें बढ़ने को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए।
क्या करें नए निवेशक
अगर आप नए निवेशक हैं। तो आपका प्लान बहुत सिंपल होना चाहिए। एकमुश्त बड़ी रकम निवेश न करें। इसके बजाए SIP के जरिए नियमित तौर पर रक़म निवेश करें। लंबी अवधि के लिए इक्विटी में निवेश करें। और इक्विटी फ़ंड में निवेश करते हुए डायवर्सीफिकेशन का ध्यान रखें। अगर आप कम अवधि के किसी गोल के लिए निवेश करना चाहते हैं तो शॉर्ट ड्यूरेशन फ़ंड बेहतर विकल्प है।
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ये लेख पहली बार नवंबर 14, 2022 को पब्लिश हुआ.