एक इन्वेस्टर के तौर पर, दुनिया भर की घटनाओं से ज़्यादा चिंतित मत हो जाइए
20-सितंबर-2022 •धीरेंद्र कुमार
कई दशक पहले जब मैं किशोर था, तब मैं अपने परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए अपने पुश्तैनी गांव गया। हम अपने साथ एक पोर्टेबल टीवी ले गए, जिसे ख़रीदने में मेरे पिता ने कुछ मुश्किलों का सामना भी किया था। इस टीवी के साथ एक लंबा बांस भी था जिस पर एंटीना लगा करता था।
टीवी घर के बाहर लगाया जाता। और जल्द ही हमारा घर, हर शाम, बहुत सारे लोगों के इकठ्ठे होने का अड्डा हो गया। ये 80 का दशक था और टीवी पर हम केवल दूरदर्शन देख सकते थे। वो भी दिन में नहीं देखा जा सकता था क्योंकि हर रात 10 या 11 बजे (मैं सही वक़्त भूल गया हूं), अनाउंसर पूरी औपचारिकता से रात में दर्शकों से विदा लेते, और टीवी का सिग्नल बंद हो जाता।
कुछ भी हो, शाम तक, जमा हुए ज़्यादातर दर्शक पहले ही अपने-अपने घर जा चुके होते थे क्योंकि उन दिनों, जल्दी सो जाना और जल्दी उठना रोज़मर्रा का नियम हुआ करता था, कम-से-कम ग्रामीण भारत में तो ऐसा ही था। हालांकि, एक काफ़ी बुज़ुर्ग व्यक्ति थे जो रोज़ वहां आते और चाहे सभी लोग चले जाएं पर वो, ट्रांसमिशन पूरा ख़त्म होने तक टीवी के सामने अकेले डटे रहते। एक दिन हमने पूछा कि वो ऐसा क्यों करते हैं। पहले तो वो शर्माए, फिर बताया कि टीवी पर आने वाली महिला उन्हें ही नमस्ते कहती है। दरअसल वो समझते थे कि चाहे वो अकेले ही क्यों न हों, टीवी पर आने वाली महिला नमस्ते ज़रूर कहती है इसलिए हो-न-हो वो उन्हें ही नमस्ते कहती है। और क्योंकि उनके लिए अकेले होने पर भी नमस्ते कहना इस बात का सुबूत है, कि नमस्ते ख़ासतौर पर उनके लिए है।
मीडिया के असर के लिहाज़ से-और अब सोशल मीडिया के भी-चीज़ें उस सरल-सहज दौर से काफ़ी आगे निकल आई हैं। पिछले कई सालों में, मैंने बचत करने वालों और निवेशकों पर बड़े तौर पर न्यूज़ और मीडिया के ज़हरीले असर के बारे में कई बार लिखा है। पिछले दो सालों के दौरान कुछ घटनाओं ने हर चीज़ बिगाड़ दी है, जैसे - चीनी वायरस, यूक्रेन युद्ध, ताइवान संकट, और यूरोप का आर्थिक संकट जिसे उन्होंने ख़ुद न्योता दिया है। पैनडेमिक के दौरान मैंने, अंडरकवर इकॉनोमिस्ट के लेखक टिम हार्फ़र्ड की एक ज़बर्दस्त क़िताब दोबारा पढ़ी। क़िताब का नाम है ‘Adapt: Why Success Always Starts with Failure’, इस क़िताब को पढ़ते हुए मुझे एहसास हुआ कि बहुत ज़्यादा न्यूज़ की समस्या, असल में ग़लत फ़ीडबैक लूप की समस्या है।
हो सकता है ये कुछ अजीब लगा हो? पर आप मुझे एक बार सुनें। बात चाहे आपके इन्वेस्टमेंट की हो, गाड़ी चलाने की, या किसी बीमारी को रोकने के लिए सही पॉलिसी के फ़ैसलों की, किसी भी प्रक्रिया में सफलता तब मिलती है जब कोशिशों के इनपुट की फ़ाइन-ट्यूनिंग की जाती है। आपकी पहली कोशिश बिरले ही सही होती है। जैसा हार्फ़र्ड अपनी क़िताब के सब-टाइटल में कहते हैं, सफलता हमेशा फ़ेलियर से शुरु होती है। आमतौर पर, आपको किसी अनुमान से भी शुरुआत करनी पड़ती है। फिर, आपको देखना होता है कि इसका क्या असर हो रहा है, और असर को देख कर आप अपनी स्ट्रैटजी में बदलाव करते हैं। हो सकता है ये मॉडिफ़िकेशन या बदलाव अच्छा हो, या शायद ना भी हो। दोनों ही स्थितियों में, इसी को दोहराना होता है। ये होता है फ़ीडबैक लूप, ठीक वैसा, जैसा इंजीनियर हर तरह के सिस्टम में इस्तेमाल करते हैं।
फ़ीडबैक लूप एकदम सही होना चाहिए, ये बात हर इंजीनियर बख़ूबी समझता है। अगर ये बहुत तेज़ होंगे या बहुत मज़बूत होंगे तो इनसे बेकार के एक्शन होंगे जिनका कोई आधार नहीं होगा। अगर ये बहुत धीमे और क़मज़ोर हुए तो बेअसर होंगे या देर से होंगे। कोविड पॉलिसी बनाए जाने के दौरान तेज़ी से होने वाले फ़ीडबैक लूप काफ़ी देखने को मिले। इस आर्टिकल के लिहाज़ से इसे और बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है कि यही बात इन्वेस्टर्स के पोर्टफ़ोलियो मैनेज करने में भी नज़र आती है।
जब वो मीडिया और सोशल मीडिया से प्रभावित होते हैं, तो फ़ीडबैक लूप तेज़, और तेज़ होते जाते हैं। हमेशा ये संदेश दिया जाता है कि शॉर्ट-टर्म की घटनाएं हर इन्वेस्टर के लिए अहम हैं, और अगर आप इन्वेस्टर हैं, तो आपको मिनट-दर-मिनट घटनाओं की ख़बर होनी चाहिए है और मिनटों के नोटिस पर रिएक्शन के लिए तैयार रहना चाहिए। मगर ये सच नहीं है।
कई लोग मुझे इन्वेस्टमेंट की सलाह के लिए ई-मेल लिखते हैं और इन्वेस्टमेंट की अपनी मुश्किलों के हल पूछते हैं, और मैंने हमेशा देखा है कि ज़्यादातर मुश्किलें तब शुरू होती हैं, जब कोई कुछ करता है या फिर, महीनों और सालों तक कुछ नहीं करता। इसी तरह, इन मुश्किलों को फ़िक्स करने का मतलब है ऐसे एक्शन लेना जो महीनों या सालों तक क़ायम रह सकें।
तो, आज रात टीवी, ट्विटर या व्हाट्सएप पर ऐसा कुछ नहीं है जो आपकी मदद करे।
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