मार्केट में गिरावट का दौर है। ऐसे में नेगेटिव खबरों की भरमार कोई चौंकाने वाली बात नहीं। दोहरे अंकों में महंगाई, कमजोर होता रुपया, विदेशी निवेशकों का मार्केट से पलायन और जीडीपी ग्रोथ के प्रोजेक्शन में कटौती एक ऐसा कॉकटेल है, जो टीवी या अखबारों को एक ख़ास तरह की सुर्खियां देता है। ये सुर्खियां, आम आदमी की पेशानी पर न सिर्फ बल डालती हैं बल्कि उनको आने वाले समय को लेकर डराती भी हैं।
एक इंडीविजुअल निवेशक के लिए इन सब बातों का क्या मतलब है? मार्केट कुछ हफ्तों में 10 से 15 % तक नीचे आ चुका है। और टीवी और अखबारों की सुर्खियों में मार्केट का कोहराम छाया हुआ है। 'निवेशकों के 5 लाख मार्केट से गायब’। इस तरह की सुर्खियां आपने भी देखी होंगी। यही नहीं, लोग विदेशी निवेशकों के पलायन और मार्केट में गिरावट को लेकर साजिश की बात भी कर रहे हैं। उनकी मानें, तो यह सब इंडीविजुअल निवेशकों को बरबाद करने के लिए हो रहा है। खैर, ये पहली बार नहीं है, जब मार्केट को लेकर साजिश की बात हो रही है, जब भी मार्केट बढ़त पर होता है या गिरावट का दौर आता है तो साजिश का एंगल सामने आ ही जाता है। ये अलग बात है, अब तक ये बातें हकीकत से बहुत दूर साबित हुई हैं। खैर बात करते हैं, मार्केट में गिरावट की और इंडीविजुअल निवेशकों को इसे कैसे लेना चाहिए?
तकनीकी तौर पर यह बात सही है,सेंसेक्स गिरने से निवेशकों के 5 लाख करोड़ मार्केट से गायब हो गए। लेकिन क्या सच में ऐसा है? आपको कोरोना की पहली लहर से ठीक पहले फरवरी 2020 में मार्केट में मचे कत्ले-आम को लेकर कुछ बातें तो याद ही होंगी। कुछ हफ्तो में ही मार्केट 30% तक नीचे गिर गया था। उस समय तो इससे भी ज्यादा खतरनाक हेडलाइन बन रहीं थी। मुझे तो उस समय की एक हेडलाइन अब भी याद है 'अंबानी के 9 लाख करोड़ स्वाहा’। 9 लाख करोड़ बहुत होते हैं। अंबानी को अगर सच में 9 लाख करोड़ का नुकसान हो गया होता है तो क्या वे इसे झेल पाते? आज दो साल बाद मुकेश अंबानी पहले से ज्यादा मजबूती से अपने बिजनेस को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी सेहत पर क्या कोई फर्क पड़ा?
फ़र्क अंबानी की सेहत पर तो नहीं पड़ा। हां, उन इंडीविजुअल निवेशकों की सेहत पर फर्क ज़रूर पड़ा, जिन्होंने इस नोशनल लॉस और मार्केट की चाल को नहीं समझा। उनको लगा कि अब तो यह मार्केट गिरता ही जाएगा और शायद कभी भी ऊपर न आए। ऐसे में, जो भी बची-खुची रकम है, उसी को लेकर मार्केट से निकल लो। ऐसे इंडीविजुअल निवेशकों ने इस नोशनल लॉस को परमानेंट लॉस बना लिया।
और बहुत जल्द ही समय के चक्र ने अपना चक्कर पूरा कर लिया। एक माह बाद ही जब अप्रैल और मई में मार्केट ने जोरदार तरीके से वापसी की तो ऐसे इंडीविजुअल निवेशकों के हिस्से में अफ़सोस के सिवा कुछ नहीं आया। वहीं, ऐसे ऐसे इंडीविजुअल निवेशक भी थे, जो नोशनल लॉस के इस खेल को अच्छी तरह से समझते थे। उन्होंने मार्केट से आ रही कत्ले-आम की खबरों को तवज्जो नहीं दी। और हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहे। यानी उन्होंने कुछ नहीं किया। और इस 'कुछ न करने का' उनको रिवॉर्ड भी मिला। रिकवरी के बाद जब मार्केट ने गेन किया तो उनको अच्छा मुनाफ़ा मिला।
एक इंडीविजुअल निवेशक के तौर पर आप एक बात याद रखें। कुछ भी बुरा हो जाए, कितना ही बुरा हो जाए। अगर लोग रहेंगे तो अपनी जरूरतों के लिए काम करेंगे, पैसे कमाएंगे और मार्केट में इन्वेस्ट करेंगे। यानी मार्केट में कारोबार चलता रहेगा। लेकिन मार्केट कभी एक सीधी रेखा में भी नहीं चलेगा। यह कभी ऊपर जाएगा तो कभी नीचे जाएगा। यही मार्केट का कैरेक्टर है। यहां पर विनर वही बनेगा, जो अच्छे स्टॉक्स पर दांव लगाएगा और लंबी रेस का घोड़ा होगा। यानी लंबे समय के लिए निवेश करेगा। लंबा समय मतलब 10 साल,15 साल 20 साल या इससे भी ज्यादा समय के लिए। निवेश की दुनिया में अब तक न तो इस बात पर कोई बहस रही है और न ही आगे कोई बहस होगी।
ये लेख पहली बार मई 19, 2022 को पब्लिश हुआ.