अपने म्यूचुअल फ़ंड की हैजिंक (सुरक्षा) किस प्रकार किया जाए? अगर मार्केट गिरता है तो निवेश करने पर ज़्यादा यूनिट मिल जाती हैं। लेकिन जब मार्केट बढ़ता है तो हम उसे सेल नहीं करते, रख लेते हैं। मेरा सवाल है कि लॉंग टर्म होराइज़न (लंबी अवधी के लिए) हैजिंग किस प्रकार किया जाए।
- मोहन कुमार
अपने म्यूचुअल फंड पोर्टफ़ोलियो को हैज (सुरक्षित) करना आसान नहीं है। लेकिन आमतौर पर बाज़ार में जब म्यूचुअल फ़ंड गिरता है, तो सबकुछ गिरता है। जैसे - इंडेक्स, सेंसेक्स, निफ़्टी, स्मॉल कैप इंडैक्स भी गिरता ही है। तो हैजिंग आप म्यूचुअल फ़ंड से बाहर कर लीजिए। म्यूचुअल फ़ंड में किसी तरह की हैजिंग का प्रावधान नहीं है।
मेरी सलाह होगी कि आप अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो इसे लेकर अपने लिए कोई ऐसा रूल बनाइए, जिसे लागू करना आपके लिए आसान हो। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि अगर आपका 50 प्रतिशत धन इक्विटी में लगा हो, और 50 प्रतिशत आपने डेट् में निवेश किया हो। और अगर इक्विटी में धन इतना बढ़े कि वो, 70 प्रतिशत हो जाए तो आप इक्विटी में से 20 प्रतिशत निकाल कर, डेट् फ़ंड में निवेश कर सकते हैं। इससे आप आंशिक तौर पर अपने निवेश की हैजिंग कर पाएंगे।
पिछले 30 साल में बाज़ार को देखते हुए, मुझे एक बात समझ में आई है कि बाज़ार का शॉर्ट-टर्म में अंदाज़ा लगाना असंभव ही है। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूं जिन्होंने पिछले 6 महीने से एक साल के बीच अपना धन निकाल लिया। इस इंतज़ार में कि जब बाज़ार गिरेगा तो उनको दोबारा खरीदने का मौका मिलेगा और ये मौका उन्हें नहीं मिला।
अंदाज़ा कभी सही साबित होगा, कभी गलत साबित होगा, लेकिन हो सकता है इस सबके बीच आप बाज़ार के बड़े मूवमेंट से वंचित रह जाएं। इसलिए मेरी सलाह होगी कि आप एसेट-एलोकेशन तय करें। चाहे वो 50-50 प्रतिशत इक्विटी और डेट् के बीच बंटा हो, या फिर 70 प्रतिशत इक्विटी और 30 प्रतिशत डेट् का संतुलन हो। इसे आप अपने मुताबिक तय करें, और अपने फ़ंड को दोबारा बैलेंस करने के लिए भी मुस्तैद रहें। इस बैलेंसिंग का भी आप नियम बना लीजिए, कि 10 या 15 प्रतिशत से ज़्यादा का बदलाव होगा तो आप दोबारा बैलेंस करेंगे। ताकि आप, बढ़त और गिरावट, दोनों से फ़ायदा उठा सकें। आखिर जब आपका धन डेट् फंड में होगा, तभी तो बाज़ार गिरने पर आप उसे इक्विटी में लगाएंगे। अगर सारा पैसा पहले ही इक्विटी में लगा हुआ है, तो बाज़ार गिरने के बाद आपके पास पैसा ही नहीं होगा लगाने के लिए। ये एक बहुत बढ़िया ऑटोमेटिड तरीका हो सकता है। एक बात और कि लंबे समय तक इक्विटी में पैसा लगाना बहुत ज़रूरी है।
मुझे लगता है, इस तरह से निवेशकों का थोड़ा मुनाफ़ा बढ़ सकता है। इसके अलावा बाज़ार गिरने का अफ़सोस भी थोड़ा कम होगा। क्योंकि अक्सर लोगों को लगता है कि उनका धन इतना बढ़ गया था, और फिर अचानक बहुत ही कम समय में बाज़ार इतना गिर गया। क्योंकि बाज़ार बढ़ता धीरे-धीरे है, और जब गिरता है तो बहुत तेज़ी से गिरता है। अचानक बाज़ार के बहुत ज़्यादा गिरने की वजह से लोगों को बहुत अफ़सोस होता है। तो इस तरह के बदलाव झेलने के लिए ऐसे नियम बड़े कारगर साबित होते हैं।
ये लेख पहली बार सितंबर 07, 2021 को पब्लिश हुआ.