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SIP का संबंध मनोविज्ञान से है, गणित से नहीं

SIP की असली ख़ूबी हर परिस्थिति में निवेश जारी रखने के लिए निवेशकों को प्रोत्साहित करने और ऐसा करके बेहतर रिटर्न पाने में छुपी है

SIP का संबंध मनोविज्ञान से है, गणित से नहीं

भारतीय म्यूचुअल फ़ंड्स में अब छह से सात तरह के SIP उपलब्ध हैं. आप 'वैल्यू-बेस्ड' SIP चुन सकते हैं; अलग-अलग समय-सीमा वाली SIP, जो बेहतर रिटर्न का दावा करती हैं; मासिक क़िश्तों को साप्ताहिक क़िश्तों में बांटने वाली SIP; अलग-अलग तारीख़ों वाली SIP जो बेहतर रिटर्न देने का दावा करती हैं; और ऐसी SIP जो आपके हर महीने के निवेश को और भी जटिल फ़ॉर्मूले के मुताबिक़ बदलती हैं.

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ये बहुत सारे विकल्प हैं, और कस्टमर की पसंद हमेशा अच्छी मानी जाती है, है न? ख़ैर, ऐसा बिल्कुल नहीं है. मैं इसे सीधे-सपाट तरीक़े से ही कहूंगा. SIP में बहुत सारे विकल्प होना निश्चित तौर पर एक ख़राब बात है. ये विकल्प लोगों को गुमराह करते हैं कि SIP का असली उद्देश्य क्या है और लोग अपने SIP निवेश में कैसे सफल हो सकते हैं.

इससे भी बुरा ये है कि वे इस सोच को बढ़ावा मिलता हैं कि बेहतर रिटर्न पाने का तरीक़ा कुछ नई खोजी गई तरकीब या विशेषता में छुपा है जो कुछ SIP में तो उपलब्ध है मगर दूसरी SIP में नहीं. ये एक फ़र्ज़ी ख़याल है. SIP की अहमियत इसकी सरलता में निहित है या दूसरे शब्दों में कहें, तो SIP का मतलब है सरलता. SIP कोई जादुई तीर नहीं है जो हमेशा, बिना किसी असफलता के, आपको एकमुश्त निवेश से बेहतर रिटर्न देगा. हालांकि, सामान्य तौर पर शेयरों के ऊपर की ओर बढ़ने के रुझान को देखते हुए, SIP मार्केट को टाइम करने (मार्केट की चाल को देख कर निवेश रोकना या करना) की कोशिश के मुक़ाबले बेहतर रिटर्न देती है.

निवेशक SIP के बारे में इतने चिंतित क्यों हैं कि वे इन तरकीबों से उन्हें लगातार बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं? एक स्तर पर, ये देखना अच्छा है कि बचत करने वाले अपने निवेश को गंभीरता से ले रहे हैं और बारीक़ी से जांच कर रहे हैं कि वे क्या कर रहे हैं और इसका क्या असर पड़ रहा है. हालांकि, बड़ी समस्या ये समझना है कि उतार-चढ़ाव वाले एसेट में लागत का औसत निकालने वाले तरीक़े से निवेश करने की सरल सी बात में कोई जादू है. SIP का मतलब है बाज़ार की परवाह किए बिना इक्विटी फ़ंड में नियमित रूप से एक तय रक़म निवेश करना. लंबे समय में, जब बाज़ार नीचे होता है तो आप ज़्यादा यूनिट ख़रीदते हैं और जब बाज़ार ऊपर होता है तो कम यूनिट ख़रीदते हैं. इस तरह, आपकी औसत ख़रीद क़ीमत कम होने की संभावना है. इसलिए, जब आपके निवेश को भुनाने का समय आता है, तो उसकी वैल्यू ज़्यादा होने की संभावना होती है. बात बस इतनी ही है. इसकी कोई गारंटी नहीं है, और निश्चित ही मनचाहा रिटर्न पाने का कोई पक्का सूत्र नहीं है. मान लीजिए, अगर शेयर बाज़ार सामान्य तौर पर लंबे समय के लिए ठहराव या गिरावट में चला जाता है, तो SIP से पैसे का नुक़सान होगा. ऐसे में आप एकमुश्त निवेश से कम कमा पाएंगे. लेकिन वास्तविक दुनिया में, चूंकि आप किसी ऐसी चीज़ में निवेश करते हैं जिसमें काफ़ी उतार-चढ़ाव तो रहता है लेकिन आमतौर पर इसका रुझान ऊपर की ओर ही होता है, इसलिए ज़्यादातर आप बेहतर नतीजे पाते हैं.

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हालांकि, SIP के ज़रिए निवेश करने का एक बड़ा कारण और है. SIP की असली वैल्यू इसके गणित में नहीं बल्कि मनोविज्ञान में छिपी है. SIP नियमित रूप से निवेश करने और इक्विटी से अच्छा रिटर्न पाने का सबसे सरल तरीक़ा है, बिना इस बात की चिंता किए कि कब निवेश करना है और कब नहीं करना है. जब बाज़ार में निराशा होती है, तो कई निवेशकों की सामान्य प्रवृत्ति निवेश करना बंद कर देने की होती है, या तो इसलिए कि वे डरे हुए होते हैं या इसलिए कि वे सबसे निचला स्तर पकड़ने की कोशिश कर रहे होते हैं. हालांकि, SIP निवेशक - सभी नहीं लेकिन ज़्यादातर - अपने SIP जारी रखते हैं. जल्द ही, जब बाज़ार ऊपर जाता है, तो ये उन्हें ख़राब बाज़ार के समय अपनी SIP को न रोकने की क़ीमत पता चलती है. इस तरह एक अच्छा घटनाचक्र शुरू होता है, जो नियमित निवेश की अहमियत समझने वाले निवेशकों की एक नई पीढ़ी तैयार करता है.

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