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क्यों मचा है इतना सोने का हल्ला?
सोने का रेट रॉकेट हो गया है रॉकेट! अगर आपके कानों में ऐसी हाई-वोल्टेज बातें नहीं टकराई हैं तो आप उन लोगों के बीच नहीं टहलते जो ख़ुद को इन्वेस्टर कहते हैं. और अगर सुनी है, तो मुबारक़ हो, आप इन्वेस्टर कही जाने वाली एक ज़िंदा और जागरूक कौम की दुनिया का हिस्सा हैं!
पिछले कुछ समय से दुनिया के अखाड़े में जो पहलवानियां चल रही हैं - कभी अमेरिका-चीन के बीच 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात' वाला टैरिफ़ ड्रामा, तो कभी किसी और कोने से आती युद्ध या तनाव की गर्म हवा - इन सबने मिलकर बेचारी इक्विटी (शेयर बाजार) का पसीना निकाल दिया है, पर सोने की चमक है कि बढ़ती ही जा रही है! आलम ये है कि सोने का भाव रिकॉर्ड बनाने पर तुला है (अप्रैल 2025 में तो कईयों ने इसे ₹90,000 प्रति 10 ग्राम के मनोवैज्ञानिक स्तर के पार भी देखा!).
और जैसे ही सोने की ऐसी 'ब्रेकिंग न्यूज़' आती है, गली-मोहल्ले से लेकर ऑफ़िस की कैंटीन तक, 'स्वघोषित निवेश पंडितों' की बाढ़ आ जाती है. नुक्कड़ के चाचा से लेकर ऑफ़िस के शर्मा जी तक, सब अचानक गोल्ड गुरु बन जाते हैं. कोई फुसफुसाता है, "गोल्डन चांस है, लगा दे पैसा!" तो कोई ज्ञान देता है, "अरे नहीं, अब तो बहुत चढ़ गया, गिरेगा पक्का!" इस शोर-शराबे में आम निवेशक (ये पहले पैराग्राफ़ के इन्वेस्टरों से अलग हैं), जो अपनी मेहनत की कमाई को महंगाई डायन से बचाकर थोड़ा बढ़ाना चाहता है, वो बेचारा कन्फ़्यूज़िया जाता है. क्या ये वाक़ई वो सुनहरा मौक़ा है जिसका सबको इंतज़ार था, या फिर ये ऊंची उड़ान भरने वाले बाज़ार का वो न्योता है जहां से नीचे देखने पर चक्कर आ जाए?
घबराइए नहीं! कुर्सी की पेटी बांध लीजिए. चलिए, आज हम सोने के इस 'चमकदार मायाजाल' की चीर-फाड़ करते हैं - इसके इतिहास की पुरानी डायरी खोलते हैं, निवेश के आजकल वाले 'कूल' तरीक़ों को समझते हैं, और हां, उस ज़रूरी लेकिन बोरिंग चीज़, यानी टैक्स के गणित को भी थोड़ा आसान बनाते हैं.
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इतिहास के झरोखे से: भारत में सोना क्यों है 'मुसीबत का परमानेंट साथी'?
इंडिया में सोना सिर्फ़ इन्वेस्टमेंट नहीं, इमोशन है बॉस! शादी-ब्याह हो या मुंडन, दिवाली हो या धनतेरस, सोना ख़रीदना शगुन होता है शगुन. और दादी-नानी की वो सीख कि "बुरे वक़्त के लिए थोड़ा सोना दबा के रखना चाहिए," वो तो जैसे हमारे DNA में ही कोड हो गई है. पर क्या ये पुरानी बातें आज के ज़माने में भी खरी उतरती हैं? क्या सोना वाक़ई वो 'दोस्त' है जो तब काम आता है जब बाक़ी सब (पढ़ें: शेयर बाज़ार) धोखा दे जाते हैं? चलिए, ज़रा इतिहास के पन्ने पलटें, वो भी आंकड़ों के साथ!
याद है 2008 का वो भयानक साल? जब दुनिया भर के शेयर बाज़ार ताश के पत्तों की तरह ढह रहे थे और अपना सेंसेक्स भी शिखर से लगभग आधा (50-60% नीचे) हो गया था? उस 'कयामत' के दौर में इक्विटी निवेशक जहां आंसू बहा रहे थे, वहीं सोना शान से खड़ा था. भारतीय रुपये में सोने की क़ीमतें उस दौरान भी मज़बूती से टिकी रहीं, बल्कि कुछ बढ़ीं भी! फिर आया 2020 का कोविड अटैक! फ़रवरी-मार्च में जब निफ़्टी क़रीब 35-40% गोता लगा गया, तब भी सोना किसी अनुभवी तैराक की तरह सतह पर बना रहा. ये मिसालें चीख-चीख कर कहती हैं कि सोना वाकई "विपत्ति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत" है - यानि मुश्किल वक़्त का सच्चा साथी.
और महंगाई? वो डायन जो चुपके-चुपके हमारी कमाई खा जाती है? पिछले 15-20 साल (मोटे तौर पर 2005-2025) का हिसाब देखें तो भारत में औसत महंगाई करीब 6-7% सालाना रही. सोने ने इसी दौरान रुपये में लगभग 10-12% का औसत सालाना रिटर्न दिया है. मतलब, लॉन्ग टर्म में इसने महंगाई को तो पछाड़ा है, पर हां, ये भी मानना पड़ेगा कि इक्विटी (अगर आप टिके रहे तो) इससे कहीं ज़्यादा तेज़ दौड़ी है.
तो किस्से का सार ये है कि सोना आपके पोर्टफ़ोलियो की नाव को तूफ़ानी लहरों (शेयर बाज़ार की गिरावट) में डूबने से बचाने वाला 'लाइफ़ जैकेट' बन सकता है. ये महंगाई के थपेड़ों से भी थोड़ी सुरक्षा देता है. लेकिन भइया-बहिन, इसका मतलब ये नहीं कि पूरी नाव ही सोने की बनवा लो! निवेश का सुनहरा नियम याद है न? "जितनी चादर, उतने पांव पसारो" ! समझदार कहते हैं कि आपके कुल निवेश का बस 5% से 15% हिस्सा ही सोने के लिए बहुत है. ये आपके पोर्टफ़ोलियो का 'वफ़ादार चौकीदार' है, 'धुआंधार बैट्समैन' नहीं!
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सोने में निवेश: गहनों वाली गली से आगे, स्मार्ट हाईवे पर!
"सोने में इन्वेस्ट करना है? अच्छा, कितने तोला गहना लेना है?" - ज़्यादातर लोगों की सोच यहीं अटक जाती है. और क्यों न अटके? सोने के गहने पहनने का, उन्हें लॉकर में सजाकर रखने का एक अलग ही स्वैग है! लेकिन निवेश की दुनिया में ये 'स्वैग' थोड़ा महंगा पड़ता है. सोचिए ज़रा:
- पहले तो जौहरी भाई साहब मेकिंग चार्ज के नाम पर 10% से 25% (या उससे भी ज्यादा!) वसूल लेते हैं.
- फिर सरकार कहती है, "लाओ भई, 3% GST दो."
- घर लाकर स्टोरेज की टेंशन - "हे भगवान, लॉकर की चाबी कहां रख दी?"
- और जब बेचने जाओ, तो वही जौहरी भाई साहब 'प्योरटी', 'आज का रेट', 'कटौती' का ऐसा गणित समझाते हैं कि सिर चकरा जाए! सही कहें, तो फ़िजिकल गोल्ड ख़रीदना मतलब थोड़ा 'शादी का लड्डू' जैसा मामला है - जो खाए वो पछताए (मेकिंग चार्ज और झंझट पर), जो न खाए वो ललचाए (क़ीमतें बढ़ते देखकर)! ये तरीक़ा "दिल को तो खूब भाता है, पर निवेशक के दिमाग़ की बत्ती कम जलाता है!"
ख़ुशख़बरी ये है कि अब सोने में निवेश के लिए आपको सुनार की दुकान के चक्कर काटने या लॉकर की चाबियां संभालने की ज़रूरत नहीं. टेक्नोलॉजी ने हमें दिए हैं कुछ धांसू और स्मार्ट तरीक़े:
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गोल्ड ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फ़ंड):
सोचिए, आप घर बैठे अपने मोबाइल से 'डिजिटल सोने का बिस्किट' ख़रीद रहे हैं! गोल्ड
ETF
यही है. आप इन्हें स्टॉक एक्सचेंज पर शेयर की तरह ख़रीद-बेच सकते हैं. मेकिंग चार्ज? ज़ीरो! स्टोरेज की टेंशन? खत्म! लागत? बहुत कम (सालाना ख़र्चा या एक्सपेंस रेश्यो सिर्फ 0.4% से 0.6% के आसपास). बस एक डीमैट अकाउंट चाहिए होगा, जो आजकल खोलना कौन सा मुश्किल काम है!
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गोल्ड म्यूचुअल फ़ंड:
अगर डीमैट अकाउंट का नाम सुनकर ही आपको चक्कर आते हैं या आप हर महीने थोड़ा-थोड़ा सोना (SIP के ज़रिए) ख़रीदना चाहते हैं, तो ये आपके लिए है. ये फ़ंड मैनेजर आपके लिए
गोल्ड ETF
ख़रीदते हैं, आपको बस पैसा लगाना है. हां, मैनेजर साहब अपनी मेहनत का थोड़ा एक्स्ट्रा चार्ज (एक्सपेंस रेश्यो ETF से थोड़ा ज्यादा, क़रीब 0.5% से 1%) लेते हैं.
- सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB): ये है असली 'सरकारी माल, गारंटी के साथ'! इसे ख़ुद RBI जारी करता था. इसमें मिलता था डबल धमाका! पहला - सोने की क़ीमतें बढ़ने पर आपका पैसा बढ़ता था. दूसरा - सरकार आपके लगाए पैसे पर हर साल 2.5% का ब्याज भी देती थी, चाहे सोने का भाव बढ़े या घटे! अगर आप इन बॉन्ड्स को पूरे 8 साल तक संभाल कर रखते, तो सोने की क़ीमत बढ़ने से होने वाले पूरे मुनाफ़े पर कोई टैक्स नहीं लगता था! मगर हम SGB को लेकर 'था' इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सरकार SGB की नई क़िश्तें जारी नहीं कर रही है. इस स्कीम की आख़िरी सीरीज़ फ़रवरी 2024 में आई थी.
ये फ़ैसला स्कीम से जुड़ी बढ़ती लागतों के चलते लिया गया है—ख़ासकर इसलिए क्योंकि सोने की क़ीमतों में तेज़ी से उछाल आया है, जिससे सरकार पर रिडेम्प्शन (भुगतान) का बोझ बहुत बढ़ गया है.
ये वीडियो भी देखें: सोना, फ़िक्स्ड-डिपॉज़िट या इक्विटी?
अब निवेशक नए विकल्पों की ओर
नई SGB सीरीज़ बंद हो जाने के बाद, निवेशक अब सोने में निवेश के दूसरे डिजिटल विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं. इनमें सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (Gold ETFs), जिनमें 2025 की शुरुआत में रिकॉर्ड स्तर पर निवेश देखने को मिला है. ये बदलाव इस बात का संकेत है कि अब लोग डिजिटल और लिक्विड (तरल) निवेश विकल्पों को ज़्यादा पसंद कर रहे हैं.
आइए, अब बात करते हैं कि अगर आप गोल्ड फ़ंड में निवेश करते तो आपको कितना रिटर्न मिलता और अगर इक्विटी फ़ंड में निवेश करते तो आपके पैसे किस तरह बढ़ते. वैसे ये सारी बात पिछले प्रदर्शन के आधार पर हो रही है, इसलिए आगे क्या होगा इसका मोटा-मोटा अंदाज़ा ही लग सकता है पक्के तौर पर पता नहीं चल सकता:
सोने में निवेश के स्मार्ट तरीक़ों की तुलना
निवेश | 5 साल | 10 साल |
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गोल्ड फ़ंड* | 14.31-14.65% | 12.32- 12.59% |
एग्रेसिव हाइब्रिड | 23.84-28.19% | 12.89-15.43% |
स्मॉल कैप फ़ंड | 36.14-48.54% | 17.32-20.44% |
मिड कैप फ़ंड | 33.37-35.89% | 16.93-17.26% |
लार्ज कैप फ़ंड | 26.84-33.51% | 12.74-14.18% |
नोटः *यहां गोल्ड म्यूचुअल फ़ंड और ETF के टॉप 5 फ़ंड के रिटर्न की रेंज है.एग्रेसिव हाइब्रिड, लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप फ़ंड के लिए यहां टॉप 5 फ़ंड के रिटर्न की रेंज दी गई है.डेटा वैल्यू रिसर्च से लिया गया है, जो 14 अप्रैल 2025 तक का है. |
अगर आप गोल्ड फ़ंड्स की लिस्ट देखना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें, और अग्रेसिव हाइब्रिड फ़ंड्स , स्मॉल कैप , मिड कैप , लार्ज कैप के लिए दिए गए इन लिंक पर जा कर सभी की परफ़ॉर्मेंस चेक कर सकते हैं. इसके अलावा हमारी बेस्ट फ़ंड्स की लिस्ट भी आपके लिए बडे़ काम की होगी. अच्छी बात ये है कि ये सारी रिसर्च आप फ़्री में कर सकते हैं.
टैक्स का गणित: कहां कटेगी जेब?
हां तो, कमाया है तो सरकार को हिस्सा तो देना पड़ेगा! निवेश से होने वाले मुनाफे पर टैक्स एक कड़वी सच्चाई है, जैसे करेले का जूस! फ़िजिकल गोल्ड, ETF और फ़ंड्स के मामले में नियम सीधा है: 3 साल से ज़्यादा रखा तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स लगेगा (महंगाई एडजस्ट करने के बाद 20%). 3 साल से पहले बेचा तो शॉर्ट टर्म गेन माना जाएगा और वो आपकी सालाना इनकम में जुड़कर आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से निपटा दिया जाएगा.
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लाख टके का सवाल: 'महंगा रोये एक बार' या 'मौक़े पे चौका'? अभी ख़रीदें?
तो घूम-फिर कर हम आ गए उसी यक्ष प्रश्न पर - क्या सोने की इन ऊंची क़ीमतों पर पैसा लगाना ठीक है? क़ीमतें आसमान पर हैं, ये सच है. दुनिया में टेंशन का माहौल है, ये भी सच है. पर गुरु, निवेश का एक कड़वा सच ये भी है - "हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती" !
सिर्फ़ इसलिए कि सोने का भाव चढ़ रहा है, उसमें आंख बंद करके कूद जाना (जिसे FOMO या 'छूट न जाए' वाला डर कहते हैं) अक्सर महंगा सौदा साबित होता है. वैल्यू रिसर्च में हम सालों से यही बात दोहरा रहे हैं कि बाज़ार को टाइम करने की कोशिश करना मतलब अंधेरे में तीर चलाना है - लग गया तो तुक्का, नहीं तो पैसा डूबा! निवेश का फ़ैसला हवा का रुख़ देखकर नहीं, बल्कि अपनी तिजोरी का साइज़, अपने सपने (बच्चों की पढ़ाई, रिटायरमेंट का आराम) और अपनी 'रिस्क झेलने की हिम्मत' देखकर करना चाहिए.
अगर आपकी फ़ाइनेंशियल प्लानिंग कहती है कि आपके पोर्टफ़ोलियो में सोने के लिए 5-15% की जगह होनी चाहिए, तो आप इस पर विचार कर सकते हैं. लेकिन 'एक ही बार में सब ख़रीद लो' वाली सोच से बचें. बेहतर है कि गोल्ड ETF या फ़ंड में SIP शुरू करें या जब SGB की अगली क़िश्त खुले तो उसमें अपनी क्षमतानुसार निवेश करें. ये तरीक़ा शायद थोड़ा 'बोरिंग' लगे, पर यक़ीन मानिए, लंबे समय में अक्सर यही 'सेफ़' रहता है.
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निष्कर्ष: अंत भला तो सब भला (और दिमाग ठंडा तो सब चंगा!)
तो मेरे निवेशक मित्रों, निचोड़ ये है कि सोना आपके निवेश के बगीचे का एक उपयोगी पौधा हो सकता है - जो कभी छांव देता है (सुरक्षा), तो कभी आपके पोर्टफ़ोलियो को रंगत (डाइवर्सिफ़िकेशन) देता है. लेकिन इसे अलादीन का चिराग समझने की भूल न करें जो रातोंरात आपकी क़िस्मत बदल देगा!
निवेश करने से पहले सोचें, समझें, अपनी ज़रूरत पहचानें और फिर सही हथियार चुनें. लंबा खेलना है और टैक्स बचाना है? ETF हाज़िर है. SIP करनी है? गोल्ड फ़ंड मौजूद है.
और हां, सबसे ज़रूरी बात - निवेश का फ़ैसला व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज्ञान या टीवी वाले एक्सपर्ट की चीख-पुकार सुनकर नहीं, बल्कि ठंडे दिमाग से, पूरी जानकारी लेकर, अपनी समझ से करें. तभी आपका पैसा सुरक्षित रहेगा, आपको रात में चैन की नींद आएगी और आप भी कह सकेंगे कि "अंत भला तो सब भला" !
Disclaimer: ये लेख केवल मनोरंजन और जानकारी के लिए है. कृपया इसे फ़ाइनेंशियल सलाह न समझें. निवेश के जोखिम होते हैं, इसलिए कोई भी फ़ैसला लेने से पहले सर्टिफ़ाइड फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र से सलाह ज़रूर लें. पैसा आपका है, फ़ैसला भी आपका होना चाहिए!
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ये लेख पहली बार अप्रैल 15, 2025 को पब्लिश हुआ.