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क्या ट्रेंट अब ट्रेंड से बाहर है?

ट्रेंट भारत की महान रिटेल सफ़लता की दास्तां में से एक है. लेकिन जब उम्मीदें हकीक़त से आगे निकल जाएं, तो यहां तक कि सबसे स्टाइलिश स्टॉक्स भी असफ़ल हो सकते हैं.

क्या ट्रेंट ₹1.6 लाख करोड़ के फै़शन ट्रेंड से बाहर हो गया है?AI-generated image

फै़शन की बदलती दुनिया में, बहुत कम ब्रांड लंबे समय तक ट्रेंड में बने रहते हैं. पर टाटा ग्रुप का के रिटेल शोस्टॉपर ट्रेंट ने पिछले एक दशक में बेबाक़ी से पना दबदबा बनाए रखा है. स्टोर्स की बाढ़, बढ़ती सेल्स, और निवेशक इसकी ओर आकर्षित हो रहे थे. सब कुछ परफे़क्ट लग रहा था...

फिर आई सैलाब की बौछार

जब तिमाही रेवेन्यू में 28 फ़ीसदी की सालाना ग्रोथ हुई, तो उम्मीद की जा रही थी कि लोगों का ध्यान ट्रेंट की ओर होगा. लेकिन बाज़ार ने मुंह फेर लिया. एक दिन में एक दिन में 15 फ़ीसदी की गिरावट आई. यानि, कुछ गड़बड़ हो है.

क्या ट्रेंट की ग्रोथ सही जगहों पर सही दिशा में हो रही है?

डेटा पर तो ट्रेंट के आंकड़े अब भी दमक रहे हैं. ज़ूडियो - बजट फै़शन चेन जिसने चुपचाप हर मॉल, हाई स्ट्रीट और सड़क के किनारे के कोने पर कब्ज़ा कर लिया है - वेस्टसाइड केके साथ मिलकर विस्तार में अपना योगदान दे रही है. ट्रेंट ने अब भारत में 1,000 स्टोर का माइलस्टोन पार कर लिया है.

लेकिन अगर गहराई से देखा जाए, तो चमक फीकी पड़ने लगती है.

उपभोक्ता वफ़ादारी का सबसे सटीक पैमाना, समान-स्टोर बिक्री वृद्धि (SSSG) धीमे हो गया है. महामारी के बाद ख़र्च करने की होड़ कम हो रही है. FY24 के प्रदर्शन से पता चलता है कि ट्रेंट की हालिया ग्रोथ ग्राहक उत्साह से ज़्यादा स्टोर खुलने की वजह से है.

गिरते ट्रेंट का सफ़र

बेस इफ़ेक्ट लागू होने से ट्रेंट के क्वार्टरली रेवेन्यू में तेज़ी से कमी आई है:

Q1 FY25 Q2 FY25 Q3 FY25 Q4 FY25
रेवेन्यू ग्रोथ (YoY %) 56.2 39.4 34.3 28.2

जब स्टोर्स की संख्या में तेज़ी पर है लेकिन ग्राहकों भीड़ में उतनी तेज़ नहीं, तो एक और बुनियादी सवाल उठता है. अगर खोलने से ही काम चल रहा है, तो जब विस्तार रुक जाएगा या धीमा पड़ जाएगा तो क्या होगा?

समान स्टोर काउंट, पर अलग-अलग वैल्यूएशन

यहीं से मामला और भी दिलचस्प हो जाता है.

छोटे रिटेलर्स जैसे V-Mart , V2 Retail , और Baazar Style के स्टोर्स की संख्या ट्रेंट के बराबर चलाते हैं. उनका मिलाजुला मार्केट कैप ₹16,000 करोड़ है. वहीं, हालिया सुधार के बाद भी ट्रेंट का मार्केट कैप ₹1.6 लाख करोड़ है. ये दस गुना प्रीमियम है.

साइज़ मायने रखता है, पर मार्जिन कहानी बयां करती हैं

ट्रेंट स्केल और प्रॉफ़िटेबिलिटी के मामले में आगे है, पर चुनौती देने वाले क़रीब आ रहे हैं

स्टोर की संख्या TTM EBITDA मार्जिन (%)
ट्रेंट 1,113 15.8
वी मार्ट 497 11.1
V2 रिटेल 189 13.4
बाज़ार स्टाइल 214 14.2

हां, ट्रेंट कोई आम रिटेलर नहीं है. इसकी बिक्री बेहतर है. इसकी ब्रांडिंग और हैज़्यादा निखर गई है और इसका एक्ज़ीक्यूशन कमाल का है. लेकिन क्या ये दस गुना बेहतर है?

बाज़ार सिर्फ़ वर्तमान की क़ीमत नहीं लगाते. बल्कि भविष्य के नज़रिये से क़ीमत नहीं लगाते हैं. इससे सवाल उठता है, ट्रेंट से कितने बेहतरीन मुनाफ़े की उम्मीद की जा सकती है?

ट्रेंट के चुनौती देने वाले मज़बूत होते जा रहे हैं

ऐसा नहीं है कि प्रतिस्पर्धा सोई हुई है

V2 रिटेल ने हाल की तिमाही में 69 फ़ीसदी रेवेन्यू ग्रोथ दर्ज की. बाज़ार स्टाइल 55 फ़ीसदी के साथ बहुत पीछे नहीं है. दोनों के लिए समान स्टोर की बिक्री 20-24 फ़ीसदी की रेंज में थी. ऐसे आंकड़े जिन पर ट्रेंट को कुछ समय पहले गर्व होता था.

बेशक, वो कम मार्जिन पर काम करते हैं और उनकी ब्रांड इक्विटी ट्रेंट से मेल नहीं खाती. लेकिन रिटेल सेक्टर में स्केल और ऑपरेटिंग डिसिप्लिन खेल को तेज़ी से बराबर कर देते हैं. ऑपरेटिंग लेवरेज एक ज़्यादा ताक़तवर चीज़ है. एक बार जब फ़िक्स्ड कॉस्ट कवर हो जाती हैं, तो अतिरिक्त हर रुपये की अहमियत बढ़ जाती है.

इसके अलावा, ग्राहक हमेशा आकर्षक ब्रांडिंग की परवाह नहीं करता है. ख़ासकर Tier‑2 शहरों में, जब सही क़ीमत और ताज़ा स्टॉक अक्सर हाई-स्ट्रीट की चमक को मात देते हैं.

क्या ट्रेंट की कहानी उम्मीद या सावधानी की दास्तां है?

अगर प्रतिस्पर्धी ब्रांड्स के मुकाबले वैल्यूएशन गैप चिंता का कारण नहीं बनता, तो व्यापक तुलना की जा सकती है.

भारत में लिस्टिड पूरी 352 टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने FY24 में ₹1.8 लाख करोड़ का रेवेन्यू कमाया. उनका कुल मार्केट वैल्यू ₹2.4 लाख करोड़ है. जबकि ट्रेंट, जो इस रेवेन्यू का सिर्फ़ एक दसवां हिस्सा कमाता है, फिर भी दो‑तिहाई वैल्यू के क़रीब है.

बेशक़, एक रिटेल बिज़नस है, टेक्सटाइल एक्सपोर्टर नहीं. ये शर्ट बेचता है, सूती धागा नहीं. पर इस तरह के आंकड़े इंडस्ट्री के अंतर से ज़्यादा, बाज़ार की धारणा की ओर इशारा करते हैं. और ये पहली बार नहीं है.

याद कीजिए, जब 1999 में Wipro और Infosys की वैल्यू पूरे सीमेंट और मेटेल सेक्टर से तीन गुना ज़्यादा थी? या जब 2007 में DLF ने थोड़े समय के लिए फ़ार्मा सेक्टर को पीछे छोड़ दिया था? या हाल ही में, Hindustan Unilever का मार्केट कैप टॉप 10 फ़र्मा कंपनियों से भी ज़्यादा का था?

इन बातों से ये सबक़ मिलता है कहानियां अक्सर वास्तविक आंकड़ों से आगे निकल जाती हैं. ये बाज़ार के बाज़ीग़र नहीं, बल्कि चेतावनी के संकेत थे.

ग्रोसरी और ग्रोथ की चुनौतियां

अपने ऊंचे वैल्यूएशन को सही ठहराने के लिए, ट्रेंट को फै़शन से कहीं ज़्यादा की ज़रूरत है. Star Baazar का ग्रोसरी रिटेल में क़दम रखना.

रणनीतिक तौर पर, ये समझ में आता है. ग्रोसरी प्रॉडक्ट ग्राहकों की आवाजाही और वफ़ादारी को बढ़ाता है. वो भारतीय रीटेल सेक्टर पवित्र ग्रिल हैं. पर समस्या ये है कि DMart इस सेक्टर में पहले से ही राज कर रहा है. Reliance भी इसे चाहता है. Blinkit, Zepto और Swiggy Instamart भी शहरी बाज़ार पर चढ़ाई कर रहे हैं.

वहीं, Star Baazar भी भी घाटे में है और सब-स्केल है. इससे भी बुरी बात ये है कि ये अभी साबित नहीं कर पाया कि इसकी पूंजी की लागत कमा सकता है - जिसे वॉरेन बफे़ किसी भी विस्तार योजना के लिए न्यूनतम आवश्यकता कह सकते हैं.

यहीं पर, जब ज़्यादा स्टोर खोलने का ख़र्च हर स्टोर से रिटर्न में से कवर नहीं कर पाते, तो ये एक स्ट्रैटेजी के बजाए ट्रेडमिल बन जाता है.

इतना अच्छा दिखने की असल क़ीमत क्या है?

ट्रेंट की अपील में कोई कमी नहीं है. स्टोर स्मार्टली डिज़ाइन किए गए हैं, प्राइवेट लेबल्स ट्रेंडी हैं, और ज़ूडियो ने भारतीय मार्जिन में फ़ास्ट फ़ैशन के साथ लगभग असंभव काम कर दिखाया है:

लेकिन निवेशक अब सिर्फ़ एक अच्छा बिज़नेस नहीं ख़रीद रहे हैं. बल्कि वो इस विचार को ख़रीद रहे कि ये मशीन हमेशा चलती रहेगी, मार्जिन क़ायम रहेंगे, नई केटेगरीज़ झकास साब़ित होंगी, और एग्ज़ीक्यूशन हमेशा टॉप-नॉच रहेगा.

इस पर्फे़क्शन के लिए काफ़ी ज़्यादा भुगतान करना पड़ता है.

आख़िरी बात!

तो, क्या निवेशकों को वफ़ादार बने रहना चाहिए या ये एक रिटेल फै़ंटेसी है जिसे एक सच्चाई की ज़रूरत है?

शायद दोनों ही!

ट्रेंट बाज़ार की सबसे शानदार कंपनियों में से एक है. पर जब क़ीमत ऐसे बाज़ार को मानती है जिसमें कोई झटका नहीं है, प्रतिस्पर्धा कभी नहीं पकड़ती है और एग्ज़ीक्यूशन कभी नहीं लड़खड़ाता है तो शायद आपको थोड़ी जांच करनी लेनी चाहिए.

आख़िरकार, फै़शन तो हमेशा बदलता रहता है. चाहे स्टॉक्स की दुनिया ही क्यों न हो.

ये भी पढ़ें: क्या तेल से परे ONGC का फ़्यूचर सुरक्षित हो सकता है?

ये लेख पहली बार अप्रैल 14, 2025 को पब्लिश हुआ.

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