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रेपो रेट में कटौती: डेट फ़ंड या फ़िक्स्ड डिपॉज़िट, आपके के लिए क्या है बेहतर?

RBI के नए रेपो रेट का असर: जानें FD और डेट फ़ंड में निवेश के फ़ायदे-नुक़सान

रेपो रेट में कटौती: डेट फंड या फिक्स्ड डिपॉजिट, आपके लिए क्या है बेहतर?

नए वित्तीय वर्ष में निवेश
1 अप्रैल, 2025 से शुरू हुए वित्तीय वर्ष 2025-26 में निवेशकों के सामने एक नई चुनौती है. 9 अप्रैल, 2025 को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने रेपो रेट 25 बेसिस पॉइंट घटाकर 6% कर दी. ये साल का दूसरा रेट कट है, जो अर्थव्यवस्था को गति देने और महंगाई को क़ाबू में रखने की कोशिश का हिस्सा है. लेकिन इसका असर फ़िक्स्ड इनकम निवेश विकल्पों—जैसे फ़िक्स्ड डिपॉज़िट (FD) और डेट फ़ंड—पर भी पड़ रहा है. ऐसे में सवाल उठता है: सुरक्षित और स्थिर रिटर्न चाहने वाले निवेशकों के लिए कौन सा विकल्प बेहतर है? आइए, दोनों की तुलना करें और आसान उदाहरणों से समझें कि आपके लिए क्या सही हो सकता है.

रेपो रेट का असर: FD और डेट फ़ंड पर नज़र

रेपो रेट वो ब्याज दर है, जिस पर RBI बैंकों को उधार देता है. जब ये दर घटती है, तो बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है. इसका असर ये होता है कि बैंक भी अपने ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर लोन और FD ऑफ़र करते हैं. दूसरी ओर, डेट फ़ंड, जो सरकारी बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड और अन्य डेट सिक्योरिटी में निवेश करते हैं, ब्याज दरों के घटने से फ़ायदा उठा सकते हैं. लेकिन दोनों के अपने फ़ायदे और जोखिम हैं.

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फ़िक्स्ड डिपॉज़िट (FD): क्या है ख़ास?

FD लंबे समय से निवेशकों का भरोसेमंद साथी रहा है. ये सुरक्षित है और रिटर्न की गारंटी देता है. लेकिन रेपो रेट में कटौती के बाद इसके रिटर्न पर असर पड़ सकता है.

FD के फ़ायदे

  1. सुरक्षा: FD में बाज़ार के उतार-चढ़ाव का कोई असर नहीं पड़ता. आपकी जमा राशि और ब्याज दोनों सुरक्षित रहते हैं.
  2. निश्चित रिटर्न: निवेश करते समय ब्याज दर तय हो जाती है. उदाहरण के लिए, अगर आप ₹5 लाख को 7% सालाना ब्याज पर 3 साल के लिए FD में डालते हैं, तो आपको परिपक्वता पर क़रीब ₹6.16 लाख मिलेंगे—ये पहले से पता होता है.
  3. लचीलापन: 7 दिन से 10 साल तक की अवधि चुन सकते हैं. छोटी ज़रूरतों के लिए भी कम राशि से शुरूआत संभव है.
  4. लोन की सुविधा: ज़रूरत पड़ने पर FD के 90% तक लोन मिल सकता है.
  5. आपातकालीन निकासी: समय से पहले पैसे निकाल सकते हैं, हालांकि कुछ जुर्माना देना पड़ सकता है.

FD के नुक़सान

  1. कम रिटर्न: रेपो रेट घटने से बैंकों ने नई FD पर ब्याज दरें कम कर दी हैं. मान लीजिए, पहले 8% मिल रहा था, अब यह 6.5% हो गया. ₹5 लाख पर 3 साल में आपको ₹1.16 लाख की जगह ₹1.03 लाख ही ब्याज मिलेगा.
  2. लॉक-इन: पैसे तय अवधि तक बंधे रहते हैं. निकालने पर नुक़सान होता है.
  3. टैक्स: ब्याज पर इनकम टैक्स लगता है. अगर आप 30% टैक्स स्लैब में हैं, तो 7% ब्याज का असल रिटर्न घटकर 4.9% रह जाता है.
  4. महंगाई का असर: अगर महंगाई 5% है और FD का ब्याज 6%, तो आपकी पूंजी का असली फ़ायदा सिर्फ़ 1% है.

FD की मौजूदा स्थिति
अप्रैल 2025 तक बड़े प्राइवेट बैंक 7-8% और स्मॉल फ़ाइनेंस बैंक 8.5-9% तक ब्याज दे रहे हैं. लेकिन रेपो रेट में और कटौती हुई, तो ये दरें और नीचे जा सकती हैं.

FD पर सबसे ज़्यादा रिटर्न देने वाले 5 बैंक

बैंक अधिकतम ब्याज दर (लगभग %)
बंधन बैंक 8.05% तक
RBL बैंक 8.00% तक
यस बैंक 8.00% तक
IDFC फर्स्ट बैंक 7.90% तक
इंडसइंड बैंक 7.99% तक

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डेट फ़ंड: एक नया विकल्प

डेट फ़ंड फ़िक्स्ड इनकम (निश्चित आय) वाली सिक्योरिटी में निवेश करते हैं और जोखिम कम रखते हुए स्थिर रिटर्न देने की कोशिश करते हैं. रेपो रेट घटने से इनका आकर्षण बढ़ सकता है.

डेट फ़ंड के फ़ायदे

  1. स्थिर रिटर्न: ये इक्विटी फ़ंड की तरह जोखिम भरे नहीं होते. पिछले साल कुछ डेट फ़ंड ने 11% तक रिटर्न दिया.
  2. पूंजी सुरक्षा: लिक्विड और शॉर्ट-टर्म डेट फ़ंड कम जोखिम वाले होते हैं.
  3. तरलता: लिक्विड फ़ंड से 1-2 दिन में पैसे निकाल सकते हैं, बिना जुर्माने के.
  4. ब्याज दर का फ़ायदा: रेपो रेट घटने से बॉन्ड की क़ीमतें बढ़ती हैं. मान लीजिए, आप ₹5 लाख लॉन्ग-टर्म डेट फ़ंड में डालते हैं. अगर बॉन्ड की कीमत 2% बढ़ती है और ब्याज से 6% रिटर्न मिलता है, तो कुल रिटर्न 8% हो सकता है.
  5. डाइवर्सिफ़िकेशन: पोर्टफ़ोलियो में इक्विटी के साथ बैलेंस बनाते हैं.

डेट फ़ंड के नुक़सान

  1. ब्याज दर जोखिम: अगर रेपो रेट बढ़ता है, तो बॉन्ड की क़ीमतें गिर सकती हैं और रिटर्न कम हो सकता है.
  2. क्रेडिट जोखिम: अगर बॉन्ड जारी करने वाली कंपनी डिफ़ॉल्ट करती है, तो नुक़सान संभव है.
  3. कम रिटर्न: इक्विटी की तुलना में रिटर्न सीमित रहता है.
  4. टैक्स: शॉर्ट-टर्म गेन पर आपकी टैक्स स्लैब के हिसाब से कर लगता है. लॉन्ग-टर्म गेन पर 20% टैक्स (इंडेक्सेशन के बाद).
  5. जटिलता: FD की तुलना में इसे समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.

डेट फ़ंड की मौजूदा स्थिति:
रेपो रेट में कटौती से लॉन्ग-टर्म डेट फ़ंड को फ़ायदा मिल रहा है. पिछले 1 साल में कुछ फ़ंड ने 9-11% रिटर्न दिया, जो FD से ज्यादा है.

Debt Fund: प्रमुख कैटेगरीज़ का एवरेज रिटर्न

लॉन्ग ड्यूरेशन 3.56 11.05 8.38
मीडियम ड्यूरेशन 2.99 9.33 7.21
शॉर्ट ड्यूरेशन 2.64 8.55 6.60
लिक्विड 1.76 7.05 6.61
ओवरनाइट 1.54 6.51 6.21
कॉर्पोरेट बॉन्ड 2.79 8.92 6.74
नोटः डेटा 10 अप्रैल, 2025 का है
स्रोतः वैल्यू रिसर्च

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एक मिसाल: रमेश और सुनीता की कहानी

रमेश और सुनीता, दोनों के पास ₹5 लाख हैं. रमेश FD में पैसा लगाता है (7% ब्याज, 3 साल), जबकि सुनीता डेट फ़ंड चुनती है (औसत 8% रिटर्न अनुमानित).

  • रमेश (FD): 3 साल बाद उसे ₹6.16 लाख मिलते हैं. टैक्स (30% स्लैब) के बाद नेट रिटर्न क़रीब ₹5.91 लाख. महंगाई (5%) घटाएं, तो असल मुनाफ़ा ₹36,000.
  • सुनीता (डेट फ़ंड): 3 साल में 8% औसत रिटर्न से ₹6.40 लाख. टैक्स के बाद क़रीब ₹6.08 लाख. महंगाई घटाएं, तो असल लाभ ₹68,000.

अगर रेपो रेट और घटता है, तो FD का रिटर्न कम हो सकता है, लेकिन डेट फ़ंड को बॉन्ड क़ीमतों से फ़ायदा मिल सकता है.

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

महेंद्र कुमार जाजू (मिरे असेट) कहते हैं, "रेपो रेट में और कटौती की उम्मीद है. इससे लॉन्ग-टर्म डेट फ़ंड को फ़ायदा होगा, क्योंकि बॉन्ड की क़ीमतें बढ़ेंगी." वहीं, संदीप बागला (ट्रस्ट म्यूचुअल फ़ंड) सुझाव देते हैं, "अभी शॉर्ट-टर्म डेट फ़ंड बेहतर हैं, क्योंकि वैश्विक ब्याज दरें प्रभाव डाल सकती हैं."

कौन सा चुनें?

  • FD चुनें अगर: आप जोखिम से बचना चाहते हैं, निश्चित रिटर्न चाहिए, और लंबे समय तक पैसा लॉक करना ठीक है.
  • डेट फ़ंड चुनें अगर: आप थोड़ा जोखिम ले सकते हैं, लिक्विडिटी (तरलता) चाहिए, और ब्याज दरों के घटने का फ़ायदा उठाना चाहते हैं.

अंतिम सलाह

रेपो रेट में कटौती ने निवेश के समीकरण बदल दिए हैं. FD अब भी सुरक्षित है, लेकिन रिटर्न घट सकता है. डेट फ़ंड मौजूदा माहौल में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं, बशर्ते आप जोखिम समझें. अपने लक्ष्य, जोखिम लेने की क्षमता और समयसीमा के आधार पर फ़ैसला लें. अभी क़दम उठाएं, ताकि FY 2025-26 आपके लिए पैसों को लेकर एक बड़ी सफलता का साल बन सके!

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ये लेख पहली बार अप्रैल 11, 2025 को पब्लिश हुआ.

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