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क्या तेल से परे ONGC का फ़्यूचर सुरक्षित हो सकता है?

दिग्गज तेल कंपनी अपने बिज़नस के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए रिन्युएबल एनर्जी, पेट्रोकेमिकल्स और गैस में डाइवर्सिफ़िकेशन ला रही है

ओएनजीसी का तेल से परे बड़ा दांव। क्या इसका विविधीकरण लाभदायक होगा?AI-generated image

दशकों से, ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) भारत की प्रमुख अपस्ट्रीम ऑयल उत्पादक कंपनी के तौर पर एक प्रॉफ़िट कमाने वाली मशीन रही है, जो देश की हाइड्रोकार्बन ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा पूरा करती है. लेकिन एनर्जी की दुनिया के साथ-साथ ONGC की रणनीति भी तेज़ी से बदल रही है. अपने दशकों पुराने तेल और गैस कारोबार के साथ, कंपनी चुपचाप एक ऐसी सुरक्षा व्यवस्था बना रही है जिसे वो अपरिहार्य भविष्य के रूप में देखती है. असल में, कंपनी के लिए ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में उसके तेल कारोबार का मुनाफ़ा कम हो सकता है.

क्यों ONGC का सिर्फ़ तेल पर निर्भर मॉडल अब सुरक्षित नहीं है

इस बात को ONGC के प्रबंधन ने स्वीकार करने में संकोच नहीं किया है. एक इंटरव्यू में, ONGC के डायरेक्टर (स्ट्रैटजी), अरुणांगशु सरकार ने स्वीकार किया:

"ONGC जैसी कंपनी के लिए तेल की कम क़ीमत वाली व्यवस्था में बने रहना मुश्किल होगा. नए बिज़नस ऐसे परिदृश्य के लिए सुरक्षा प्रदान करते हैं."

ये कॉर्पोरेट से जुड़ी महज कागजी बातें नहीं हैं. बल्कि, ये वैश्विक स्तर पर तेल की स्थिति में बदलाव की स्वीकृति है.

तेल की मांग के लिए ढांचागत जोखिम

ऑयल मार्केट में लंबे समय के तनाव के स्पष्ट संकेत दिखने लगे हैं. वैश्विक स्तर पर, तेल की 45 फ़ीसदी मांग सड़क परिवहन-डीजल और पेट्रोल से आती है (एक बहुराष्ट्रीय ऊर्जा और कमोडिटी ट्रेडिंग कंपनी विटोल के अनुसार). इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV), जैव ईंधन और वैकल्पिक मोबिलिटी सॉल्युशंस को तेज़ी से अपनाने के कारण, ये मांग 2027-2030 तक (ब्लूमबर्गएनईएफ और इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार) पीक पर पहुंचने का अनुमान है. रिफाइनर्स को कच्चा तेल बेचने वाली एक अपस्ट्रीम तेल कंपनी के लिए, ये एक टाइम बम जैसा है.

बढ़ती आपूर्ति, गिरती क़ीमतें

चिंता को बढ़ाने वाली बात वैश्विक तेल आपूर्ति की पर्याप्त मात्रा है. ख़ास तौर पर, अमेरिका और मध्य पूर्व में पिछले दो दशकों के दौरान हुई खोजों और उत्पादन में बढ़ोतरी का मतलब है कि तेल की कीमतों के अतीत में देखी गई ऊंचाई पर टिके रहने की संभावना नहीं है. यहां तक ​​कि जब भू-राजनीतिक घटनाओं के कारण क़ीमतों में अस्थायी रूप से उछाल आता है, तो भी उनके स्थिर रहने की संभावना नहीं होती है. ONGC प्रबंधन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ढांचागत रूप से तेल की ऊंची क़ीमतों का दौर अब गुज़रे जमाने की बात हो सकती है.

घरेलू स्तर पर मुश्किल हालात

घरेलू बाज़ार में भी ONGC की समस्याएं समान रूप से गंभीर हैं. इसका कच्चा तेल उत्पादन वर्षों से स्थिर है या घट रहा है. मुंबई ऑफशोर और दूसरी जगहों पर मैच्योर फील्ड्स से कम उत्पादन हो रहा है और उत्पादन को बनाए रखना महंगा पड़ रहा है. खोज और उत्पादन बढ़ाने के लिए निवेश जारी होने के बावजूद, ट्रेंड सपाट बने हुए हैं.

ONGC के तेल उत्पादन में गिरावट

गिरावट का रुझान लगातार बना हुआ है

साल तेल का सालाना औसत उत्पादन (MMT)
FY05-10 25.5
FY11-15 23.2
FY16-20 20.5
FY21-24 19.0

इससे भी बदतर बात ये है कि जब तेल की क़ीमतें बढ़ती हैं, तो ONGC को इसका पूरा फ़ायदा नहीं मिल पाता. भारत सरकार द्वारा लगाया गया विंडफाल टैक्स इस कंपनी की कमाई को सीमित कर देता है, जिससे तेज़ी के दौर में इसके प्रॉफ़िट मार्जिन पर नियंत्रण बना रहता है.

एक नई रणनीति: सुरक्षा की तैयारी

इन ढांचागत चुनौतियों का सामना करते हुए, ONGC एक बड़े रणनीतिक बदलाव की कोशिश कर रही है और इस कदम से अगले दशक के दौरान इसे एक नई दिशा मिलेगी. कंपनी तीन प्रमुख क्षेत्रों में खुद को डाइवर्सिफ़ाई कर रही है:

1. नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार

ONGC ने एक महत्वाकांक्षी योजना के तहत, 2030 तक 10 गीगावाट रिन्युएबल एनर्जी क्षमता विकसित करने की घोषणा की है. इसके लिए, ये ₹1,00,000 करोड़ का भारी निवेश करने जा रही है.

कागज़ों पर ये निवेश आकर्षक लग सकता है, लेकिन वास्तव में ये उतना अच्छा भी नहीं है. उदाहरण के लिए, 10 गीगावाट क्षमता पर काम रही अडानी ग्रीन , लगभग ₹7,000-8,000 करोड़ का EBITDA कमाती है. दूसरी ओर, ONGC अपने तेल बिज़नस से लगभग ₹44,000 करोड़ का EBITDA कमाती है. इस मुख्य बिज़नस को बदलने के लिए, कंपनी को अपनी क्षमता पांच गुनी से ज़्यादा बढ़ानी होगी (ये मानते हुए कि एसेट टर्नओवर रेशियो समान है).

इसके अलावा, वैश्विक स्तर की दिग्गज एनर्जी कंपनियां इस क्षेत्र में सावधानी से कदम उठा रही हैं. अपने 'रीसेट प्लान' के तहत, BP (एक ब्रिटिश तेल और गैस कंपनी) ने अपने रिन्युएबल इन्वेस्टमेंट को वापस ले लिया है. ब्रिटेन की एक अन्य तेल और गैस कंपनी, शेल ने अपने ऑफ़शोर विंड एग्सपोज़र को कम कर दिया है. इसका कारण स्पष्ट रूप से रिन्युएबल प्रोजेक्ट्स ख़ासकर सोलर और विंड प्रोजेक्ट हैं, जिनमें ख़ासी पूंजी की ज़रूरत होती है और कम रिटर्न भी मिलता है.

लेकिन ONGC का रिन्युएबल एनर्जी पर जोर केवल फ़ाइनेंशियल रिटर्न का मामला नहीं है. ये उसके रणनीतिक अस्तित्व से भी जुड़ा है. ये निवेश 2038 तक नेट ज़ीरो के वादे का हिस्सा है, जो तेज़ी से बदलती दुनिया में एक नियामकीय और बाज़ार से जुड़ी ज़रूरत है. ये तेल-आधारित भविष्य के खिलाफ एक सुरक्षा है जो अब बहुत आकर्षक नहीं है.

2. बढ़ता पेट्रोकेमिकल बिज़नस: ईंधन से इतर दांव

जहां, ईंधन की मांग ढांचागत चुनौतियों का सामना कर रही है, वहीं, पेट्रोकेमिकल्स की मांग में कोई बदलाव नहीं हुआ है. कच्चे तेल से बने प्लास्टिक, पॉलिमर और केमिकल डेरिवेटिव्स आधुनिक जीवन में पैकेजिंग से लेकर बुनियादी ढांचे और फार्मास्यूटिकल्स तक के लिए ज़रूरी हैं. और, इनका कोई व्यवहार्य विकल्प उपलब्ध नहीं है.

इसे पहचानते हुए, ONGC अपने पेट्रोकेमिकल बिज़नस का विस्तार कर रही है. इसने हाल ही में ONGC पेट्रो एडिशन लिमिटेड (OPaL) में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 95 फ़ीसदी से ज़्यादा कर ली है, जिसमें ₹18,365 करोड़ का निवेश किया गया है. इसकी लंबे समय की योजना में रिफाइनिंग क्षमता को पेट्रोकेमिकल उत्पादन के साथ एकीकृत करना शामिल है, जो दुनिया की दिग्गज एनर्जी कंपनियों द्वारा अपनाई गई रणनीति के समान है.

सऊदी अरामको ने 2030 तक अपनी पेट्रोकेमिकल क्षमता को दोगुना करने की योजना बनाई है. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ वर्तमान में अपने ऑयल-टू-केमिकल्स (O2C) बिज़नस का लगभग 36 फ़ीसदी रेवेन्यू पेट्रोकेमिकल्स से कमाती है और उसने इस हिस्से को 70 फ़ीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है. IOCL और BPCL जैसी भारत की पब्लिक सेक्टर की कंपनियां भी अपने पेट्रोकेमिकल बिज़नस को बढ़ा रही हैं.

वर्तमान में, ONGC के रिफाइनिंग उत्पादन में पेट्रोकेमिकल्स का शेयर 10 फ़ीसदी से भी कम है. कंपनी ईंधन बाज़ारों की अस्थिरता से खुद को बचाने के लिए अगले कुछ वर्षों में इसे काफ़ी हद तक बढ़ाने का इरादा रखती है.

3. गैस मोनेटाइजेशन और रिगैसिफिकेशन की योजनाएं

ONGC भारत के तेजी से बढ़ते सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन (CGD) क्षेत्र पर भी नज़र रख रही है और LNG रिगैसिफिकेशन में प्रवेश की संभावनाएं तलाश रही है. भले ही, अभी तक किसी औपचारिक परियोजना की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन कंपनी ने निम्नलिखित योजनाओं के संकेत दिए हैं:

  • फंसे हुए और दूरदराज के गैस फील्ड्स से पैसे जुटाना.
  • छोटे LNG टर्मिनल स्थापित करने की संभावना तलाशना.
  • CGD वैल्यू चेन्स में भाग लेना.

भारत की गैस की बढ़ती गैस मांग से ऊर्जा में गैस की हिस्सेदारी बढ़ाने की सरकारी नीति द्वारा सहायता प्राप्त-ONGC के लिए लंबे समय में अपने गैस भंडार को भुनाने और कमाई में विविधता लाने का अवसर प्रस्तुत करती है.

ONGC के रिन्युएबल एनर्जी को बढ़ावा देने में गैस भी एक रणनीतिक भूमिका निभाएगी. कंपनी 'राउंड-द-क्लॉक' (RTC) सोलर पावर प्रोजेक्ट्स को लक्षित कर रही है, जिसके लिए विश्वसनीयता में सुधार को ध्यान में रखते हुए गैस-आधारित बिजली को एकीकृत करने की ज़रूरत है. सूरज की सीमित रोशनी के कारण स्टैंडअलोन सोलर प्लांट्स केवल 20-25 फ़ीसदी प्लांट लोड फ़ैक्टर पर काम करते हैं. गैस क्षमता को मिलाकर, ONGC का लक्ष्य इस्तेमाल को बढ़ाना और रिन्युएबल एनर्जी को डिस्पैच करने योग्य बनाना है-जो बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए एक अहम फ़ैक्टर है.

क्या डाइवर्सिफ़िकेशन से खेल बदल जाएगा?

लंबे समय के निवेशकों के लिए, अहम सवाल ये है: क्या ये डाइवर्सिफ़िकेशन के दांव ONGC के तेल उत्पादन से होने वाले भारी कैश फ़्लो की जगह ले सकते हैं?

उत्तर बहुत छोटा है.

अल्पावधि से मध्यम अवधि में, उत्तर स्पष्ट रूप से नहीं है. रिन्युएबल्स, पेट्रोकेमिकल्स और रीगैसिफिकेशन ज़्यादा पूंजी वाले, कम-रिटर्न और भीड़-भाड़ वाले बिज़नस हैं. ONGC के ऑयल बिज़नस को जहां भारत में एकाधिकार जैसी स्थिति और ऊंचे ग्लोबल मार्जिन हासिल थे, उसके विपरीत इन नए क्षेत्रों में भारी प्रतिस्पर्धा और विनियमित रिटर्न मिलता है.

ये बताता है कि बाज़ार अभी भी ONGC को कम P/E मल्टीपल पर क्यों अहमियत देता है. असल में, इससे निवेशकों का संदेह जाहिर होता है कि ये एनर्जी से जुड़े बदलाव से फ़ायदा कमाने की इसकी क्षमता के बारे में है.

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लंबे समय का खेल

हालांकि, लंबे समय के निवेशकों को ONGC की बदलती कार्यशैली की रणनीतिक अहमियत को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए.

सरकारी कॉर्पोरेट क्षेत्र में प्रबंधन द्वारा तेल की अधिकता और ढांचागत मांग के जोखिमों को स्वीकार करना दुर्लभ है. कुछ भारतीय PSU इन जोखिमों को स्वीकार करने में इतने स्पष्ट या सक्रिय हैं.

अहम बात ये है कि ONGC अपने ऑयल बिज़नस को पूरी तरह से नहीं छोड़ रही है. BP के साथ इसके हालिया तकनीकी गठजोड़ और नए तेल-गैस ब्लॉकों में निरंतर निवेश इसके मुख्य उत्पादन को बनाए रखने या यहां तक कि बढ़ाने की स्पष्ट रणनीति के संकेत देते हैं. हालांकि, कंपनी मानती है कि इस बिज़नस की ढांचागत सीमाएं हैं और अगले 100 वर्षों तक अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए ये डाइवर्सिफ़िकेशन पर दांव लगा रही है.

अगर ONGC अपनी डाइवर्सिफ़िकेशन की रणनीति को कुशलतापूर्वक लागू करती है:

  • ये अगले दशक में अपनी कमाई को नया आकार दे सकती है.
  • ये आखिरकार पूरी तरह अपस्ट्रीम उत्पादक से एक एकीकृत, डाइवर्सिफ़ाइड एनर्जी कंपनी में बदल सकती है.
  • ये वैश्विक तेल बाजारों और सरकार द्वारा लगाए गए प्राइस कैप के बेतहाशा उतार-चढ़ाव से खुद को बचा सकती है.

ये कहा जा सकता है कि ये एक लंबा और जोखिम भरा बदलाव है. निष्पादन की चुनौतियां, रिटर्न में कमी और नीतिगत जोखिम निकट भविष्य में स्टॉक पर भारी पड़ते रहेंगे.

निवेशकों के लिए सबक़

धैर्यवान, लंबे समय के निवेशकों के लिए, ONGC के डाइवर्सिफ़िकेशन के सफ़र पर बारीकी से नज़र रखना उचित है. अगर कंपनी तेल और गैस से परे विश्वसनीय, फ़ायदे वाला बिज़नस बनाने में सफल होती है, तो ये नई वैल्यू को अनलॉक कर सकती है और ऊंचे मल्टीपल हासिल कर सकती है.

लेकिन इसका फ़ायदा तत्काल या मध्यम अवधि में भी नहीं मिलेगा. जहां निवेश बहुत बड़ा हो सकता है, फिर भी वे मुख्य बिज़नस को बदलने या गिरावट की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. केवल जब इसके निवेश का शुरुआती चरण फ़ायदा देना शुरू करता है, तभी हम ये आकलन कर सकते हैं कि ONGC की रणनीति काम करती है या नहीं. अभी के लिए, ONGC एक तेल कंपनी के अलावा कुछ नहीं होगी.

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ये लेख पहली बार अप्रैल 07, 2025 को पब्लिश हुआ.

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