AI-generated image
बीते कुछ सालों में एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड्स (ETFs) की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी है. ये पैसिव फ़ंड्स किसी इंडेक्स—जैसे कि सेंसेक्स या निफ़्टी—को ट्रैक करते हैं और इस वजह से कम लागत में आपको अलग-अलग एसेट्स में निवेश करने का मौक़ा देते हैं. यही कारण है कि ये उन निवेशकों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन गए हैं जो लंबी अवधि में वेल्थ बनाना चाहते हैं, लेकिन हर समय अपने निवेश को मैनेज नहीं करना चाहते.
हालांकि, जब बाज़ार में 230 से ज़्यादा ETF उपलब्ध हों, तो सही ETF चुनना वाक़ई मुश्किल काम हो है. ETF को आमतौर पर एक आसान निवेश विकल्प माना जाता है, लेकिन ग़लत ETF चुनने पर आपको कम रिटर्न या ज़रूरत से ज़्यादा ख़र्च जैसे नुक़सान उठाने पड़ सकते हैं. कुछ मामलों में तो फ़ंड से बाहर निकलना यानी अपने यूनिट्स बेच पाना भी मुश्किल हो सकता है.
कैटेगरी | फ़ंड्स की संख्या | असेट अंडर मैनेजमेंट (₹ करोड़ में) |
---|---|---|
इक्विटी: डाइवर्सिफाइड | 96 | ₹5,26,714 |
इक्विटी: सेक्टोरल और थीमैटिक | 72 | ₹74,551 |
इक्विटी: इंटरनेशनल | 6 | ₹13,898 |
डेट ETF | 32 | ₹93,705 |
कमोडिटी: गोल्ड और सिल्वर | 30 | ₹69,463 |
आंकड़े 28 फरवरी, 2025 तक के हैं. |
तो आइए, जानते हैं वो 5 फैक्टर्स जो ETF में निवेश करने से पहले ज़रूर देखने चाहिए.
ETF में निवेश करते समय किन बातों का ध्यान रखें?
1. ETF कौन-सा इंडेक्स ट्रैक करता है
ETF यानि एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड किसी इंडेक्स को ट्रैक करता है, जो स्टॉक्स, बॉन्ड्स या दूसरी एसेट्स का एक समूह होता है. मतलब, जब आप किसी ETF में निवेश करते हैं, तो आप उस इंडेक्स की सभी एसेट्स में अप्रत्यक्ष रूप (इनडाइरेक्ट तरीक़े) से निवेश कर रहे होते हैं. जैसे अगर कोई ETF NASDAQ 100 को ट्रैक करता है, तो वो नैस्डैक एक्सचेंज में लिस्टेड टॉप 100 नॉन-फ़ाइनेंशियल कंपनियों में निवेश करता है.
इंडेक्स को समझना ज़रूरी है क्योंकि इससे आपको पता चलता है कि असल में आपका पैसा कहां लग रहा है और क्या वो आपकी निवेश की मंज़िल से मेल खाता है या नहीं. इसे ऐसे समझिए जैसे आप गाने का कोई प्लेलिस्ट चुन रहे हों—ज़रूरी है कि उसका स्वाद आपके मूड के मुताबिक़ हो.
2. ट्रैकिंग एरर
ETF का काम होता है इंडेक्स की परफ़ॉर्मेंस को फ़ॉलो करना.
ट्रैकिंग एरर
इस बात का माप है कि ETF इस काम में कितना सटीक है.
कम ट्रैकिंग एरर मतलब ETF अपने इंडेक्स को बख़ूबी फ़ॉलो कर रहा है. वहीं ज़्यादा ट्रैकिंग एरर इस बात का इशारा है कि ETF इंडेक्स से भटक रहा है, जिससे आपके रिटर्न पर बुरा असर पड़ सकता है.
3. लिक्विडिटी यानी कितना आसान है ETF को बेचना
लिक्विडिटी का मतलब है कि आप ETF को कितनी आसानी से और बिना प्राइस को ज़्यादा बदले ख़रीद या बेच सकते हैं.
अगर किसी ETF की लिक्विडिटी ज़्यादा है, तो इसका मतलब है कि उसमें बहुत से ख़रीदार और विक्रेता हैं—आप जब चाहें, उचित दाम पर अपनी यूनिट्स बेच सकते हैं. ये किसी भीड़-भाड़ वाले बाज़ार जैसा है, जहां मोल-भाव आसान होता है. इसके उलट, कम लिक्विड ETF ऐसा है जैसे सुनसान बाज़ार—जहां बेचने के लिए ग्राहक ढूंढ़ना मुश्किल हो सकता है और आपको या तो दाम गिराना पड़ेगा या इंतज़ार करना पड़ेगा.
4. ETF के दाम और NAV में अंतर
हर ETF की एक
नेट एसेट वैल्यू (NAV)
होती है, यानि फ़ंड की कुल एसेट वैल्यू को यूनिट्स की संख्या से विभाजित करने पर जो आंकड़ा मिलता है.
आदर्श रूप में ETF का प्राइस इसके NAV के क़रीब होना चाहिए. लेकिन कई बार ETF का बाज़ार भाव उसके NAV से ऊपर (प्रीमियम) या नीचे (डिस्काउंट) होता है.
हालांकि एक छोटा सा अंतर सामान्य है, लेकिन अपने NAV से बहुत ज़्यादा क़ीमत वाला ETF एक चेतावनी संकेत हो सकता है. अगर ये अंतर बहुत ज़्यादा है, तो आपको अपनी यूनिट्स के लिए ज़रूरत से ज़्यादा दाम देना पड़ सकता है. इसलिए ज़रूरी है कि ETF का बाज़ार भाव उसके NAV के पास हो—ताकि आप अपने निवेश के लिए ज़्यादा न चुकाएं.
5. एक्सपेंस रेशियो यानी फ़ंड मैनेजमेंट फीस
हर ETF एक
एक्सपेंस रेशियो
के साथ आता है, जो फ़ंड को मैनेज करने की सालाना फ़ीस होती है.
कम एक्सपेंस रेशियो का मतलब है कि आपकी कमाई का ज़्यादा हिस्सा आपके पास ही रहेगा.
मसलन, अगर एक ETF 0.05% फ़ीस लेता है और दूसरा 0.10%, तो शुरू में फ़र्क़ छोटा लग सकता है—मगर लंबी अवधि में ये फ़ीस आपके रिटर्न को काफ़ी घटा सकती है.
तो ETF चुनते समय कोशिश करें कि कम से कम खर्च वाला फ़ंड लें—बशर्ते वो आपकी निवेश की ज़रूरतें पूरी करता हो.
आख़िरी बात
सही ETF चुनना एक ऐसा फ़ैसला है जो आपके निवेश के रिटर्न को लंबी अवधि में प्रभावित कर सकता है. अगर आपने वो 5 फ़ेक्टर ध्यान में रखे—इंडेक्स, ट्रैकिंग एरर, लिक्विडिटी, प्राइस-NAV गैप और एक्सपेंस रेशियो—तो आप ज़रूर एक समझदार चुनाव करेंगे.
याद रखिए, बाज़ार में 230 से ज़्यादा ETF हैं, लेकिन हर एक फ़ंड आपके गोल्स से मेल नहीं खाता. इसलिए, इन बारीक़ियों पर ग़ौर करके ही निवेश का रास्ता चुनिए.
ये भी पढ़ें: इंडेक्स फ़ंड बनाम ETF: क्या अंतर है?
ये लेख पहली बार अप्रैल 04, 2025 को पब्लिश हुआ.