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लिथियम या सेमीकंडक्टर की तरह ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड सुर्खियों में नहीं रहते हैं. लेकिन उनके बिना, स्टील उद्योग कुछ जंग ज़रूर खा जाएगा. वे आधुनिक स्टीलमेकिंग के लिए अहम हैं और इनका उपयोग क्लीनर इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (EAF) में किया जाता है, जो स्क्रैप स्टील को पिघलाने के लिए बिजली का इस्तेमाल करते हैं. वैश्विक स्तर पर (चीन के बाहर) ख़ास तौर पर ये केवल चार से पांच प्रमुख कंपनियों का बाज़ार है, जिनमें से एक भारत से है. नोएडा स्थित HEG दुनिया की सबसे बड़ी ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बनाने वाली कंपनियों में से एक है जो अपने कारोबार का लगभग 70 फ़ीसदी निर्यात से हासिल करती है.
कंपनी इंडस्ट्री में एक बड़े बदलाव पर दांव लगा रही है और उसका स्टील उत्पादन पारंपरिक ब्लास्ट फर्नेस से हटकर EAF की ओर बढ़ रहा है जो स्टीलमेकिंग की एक स्वच्छ और ज़्यादा टिकाऊ प्रक्रिया में ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल करती हैं.
सिद्धांत रूप में, इससे EAF और ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड दोनों की मांग बढ़नी चाहिए. लेकिन अब तक के रुझान निराशाजनक रहे हैं. वैश्विक ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बाज़ार में मंदी का दौर चल रहा है. महामारी के बाद से, EAF को अपनाने की गति सुस्त हो गई है. चीन में EAF का कम इस्तेमाल देखने को मिला, जिसके एक समय इस मामले में सबसे आगे रहने की उम्मीद थी. नतीजतन, देश ने वैश्विक बाज़ार में सरप्लस इलेक्ट्रोड भर दिए, जिससे कीमतें 3,000-4,000 डॉलर प्रति टन से घटकर सिर्फ 2,000 डॉलर रह गईं. वैश्विक स्टील उत्पादन में सुस्ती के चलते दबाव और बढ़ गया, जिससे इलेक्ट्रोड की मांग में ग्रोथ थम रही है.
ग्लोबल स्टील उत्पादन, चीन का EAF आधारित उत्पादन स्थिर बना हुआ है
चीन का EAF स्टील उत्पादन (मिलियन टन) | ग्लोबल स्टील उत्पादन (मिलियन टन) | |
---|---|---|
2022 | 97 | 1,888 |
2021 | 98 | 1,952 |
2020 | 98 | 1,878 |
2019 | 103 | 1,874 |
2018 | 99 | 1,808 |
2017 | 81 | 1,675 |
2016 | 51 | 1,606 |
2015 | 47 | 1,620 |
2014 | 48 | 1,670 |
2013 | 48 | 1,649 |
नोट: चीन के EAF उत्पादन के लिए 2023 और 2024 के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन वे मोटे तौर पर स्थिर रहे हैं जबकि ग्लोबल स्टील इस्पात उत्पादन में गिरावट आई है |
लेकिन जापान द्वारा चीनी इलेक्ट्रोड पर हाल में लगाए गए 95 फ़ीसदी एंटी-डंपिंग टैरिफ ने ये उम्मीदें बढ़ा दी हैं कि चीन से हो रही अतिरिक्त आपूर्ति रोकी जा सकती है, जिससे HEG के साथ-साथ इस सेक्टर की दूसरी कंपनी ग्रैफाइट इंडिया के शेयर में हाल ही में तेज़ी देखने को मिली है. लेकिन, निवेशकों को ये सवाल पूछने की ज़रूरत है कि क्या HEG वास्तव में ऐसे बाज़ार में आगे लगातार रिटर्न दिला सकती है जो अभी भी ज़्यादा आपूर्ति और कमज़ार मांग से जूझ रही है?
प्रतिस्पर्धियों के पीछे हटने के बावजूद विस्तार
बाजार में मंदी का HEG की उम्मीदों पर कोई असर नहीं पड़ा है. ऐसे समय में जब दूसरी वैश्विक प्रतिस्पर्धी कंपनियां पीछे हट रही हैं, HEG ने अपने परिचालन में भारी निवेश करते हुए आगे बढ़ना जारी रखा है. फ़ाइनेंशियल ईयर 2014 से फ़ाइनेंशियल ईयर 2024 तक HEG ने अपने परिचालन के विस्तार में क़रीब ₹2,100 करोड़ का निवेश किया, जबकि इस दौरान ग्रेफाइट इंडिया अपने एसेट्स बेच रही थी. अन्य वैश्विक प्रतिस्पर्धी कंपनियों के भी प्लांट्स बंद होते देखे हैं, क्योंकि बाज़ार की ख़राब स्थितियों ने परिचालन को अव्यवहारिक बना दिया है.
नतीजतन, सुस्त मांग के कारण वैश्विक ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड क्षमता (चीन को छोड़कर) में गिरावट आई है, जो 2014 की 9 लाख टन से घटकर आज 7 लाख टन रह गई है. यूटिलाइजेशन रेट 2017 में 87 फ़ीसदी से घटकर 2024 में मात्र 65-70 फ़ीसदी रह गई है, जो व्यापक संकट का संकेत है.
ग्लोबल क्षमता में कमी आने पर HEG ने अपनी खुद की क्षमता बढ़ाई
2014 | 2024 | |
---|---|---|
ग्लोबल क्षमता (000 टन) | 900 | 700 |
HEG की क्षमता (000 टन) | 80 | 100 |
फिर भी, इंडस्ट्री के विपरीत, HEG का विस्तार इस उम्मीद पर टिका है कि दूसरों द्वारा धीरे-धीरे आपूर्ति में की जा रही कमी कंपनी के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है. लेकिन, कैसे? ये सकारात्मक है कि EAF की मांग में मौजूदा सुस्ती के विपरीत लंबी अवधि में अच्छी ग्रोथ देखने को मिलेगी, जो वर्तमान में स्टील के वैश्विक उत्पादन का 28 से 30 फ़ीसदी है. असल में, फ़ायदा इसलिए भी होने की उम्मीद है क्योंकि प्रतिद्वंद्वी कंपनियों अपने घाटे वाले परिचालनों के कारण आपूर्ति में कटौती कर रही हैं.
जो बात उम्मीदों को बढ़ाती है, वो ये है कि विस्तार के साथ, HEG के पास अब दुनिया का सबसे बड़ा सिंगल-लोकेशन वाला ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड प्लांट है, जबकि इसके प्रतिस्पर्धियों के परिचालन बिखरे हुए हैं. इसका आकार इसे प्रतिस्पर्धात्मक रूप से बढ़त देता है, लागत दक्षता बढ़ाता है और प्रतिस्पर्धियों की तुलना में बेहतर प्रॉफ़िट मार्जिन देता है.
टॉप कंपनियां कैसे ढेर हो जाती हैं
शीर्ष कंपनियों की स्थिति कैसी रही है
क्षमता (000 टन) | 2024 में EBITDA मार्जिन (%) | |
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ग्राफ्टेक | 178 | -2.1 |
टोकाई कार्बन* | 72 | 10.6 |
ग्रेफाइट इंडिया** | 80 | 7.8 |
HEG** | 100 | 11.2 |
*टोकाई कार्बन का डेटा उसके ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड सेगमेंट पर आधारित है **ग्रेफाइट इंडिया और HEG का डेटा दिसंबर 2024 को समाप्त होने वाले 12 महीनों पर आधारित है |
अपने विस्तार के अनुरूप, HEG ने हाल ही में ग्राफ्टेक में 8.23 फ़ीसदी हिस्सेदारी भी हासिल की, जो अमेरिका की एक पूरी तरह से एकीकृत ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बनाने वाली कंपनी है. इस रणनीतिक निवेश से HEG के लिए ज़्यादा कच्चे माल की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है और लंबे समय में तालमेल बढ़ सकता है. हालांकि, ये ध्यान रखना अहम है कि ग्राफ्टेक वर्तमान में मुख्य रूप से कमज़ोर ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बाज़ार के कारण घाटे में चल रही है और इस दांव की सफलता तय होने में अभी समय लगेगा.
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मुख्य बिज़नस के लिए जोखिम
अपनी आक्रामक रणनीति के बावजूद, HEG इस क्षेत्र के जोखिमों से अछूती नहीं है. वैश्विक स्तर पर स्टील की मांग कमज़ोर बनी हुई है और 2021 से 2024 तक कुल उत्पादन में 3.6 फ़ीसदी की गिरावट आई है, जिससे शॉर्ट टर्म की तेज़ी सीमित हो गई है. पूरी इंडस्ट्री में प्लांट्स के बंद होने और क्षमता में कमी से बुनियादी मुद्दे उजागर होते हैं जिससे प्राइस में सुधार सुस्त हो सकता है.
इसके अलावा, एक अन्य ग्लोबल लीडर जापान की टोकाई कार्बन ने न केवल चीन बल्कि भारत से भी अत्यधिक आपूर्ति के बारे में चिंता ज़ाहिर की है जो क़ीमतों पर और दबाव बढ़ सकता है. कुल मिलाकर, अगर इलेक्ट्रोड की क़ीमतों में वापसी नहीं होती है, तो पिछले दशक में HEG को भारी निवेश से सार्थक रिटर्न हासिल करने में जूझना पड़ सकता है.
आगे EV के लिए ग्रेफाइट एनोड से ग्रोथ को मिलेगा बूस्ट
अपने दांव को सुरक्षित रखने के लिए, HEG अब तेज़ी से बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाज़ार को लक्षित कर रही है. कंपनी ने EV के लिए एक प्रमुख कम्पोनेंट लिथियम-आयन बैटरी के लिए सालाना 20,000 टन क्षमता वाला ग्रेफाइट एनोड प्लांट बनाने के लिए ₹1,000 करोड़ का निवेश किया है. भारत अपनी EV बैटरी सप्लाई चेन के लिए स्थानीय स्तर पर क्षमता विकसित करने पर जोर दे रहा है, इसलिए HEG इस बढ़ते बाज़ार का फ़ायदा उठा सकती है.
ये कदम विशेष रूप से समझदारी भरा है. HEG के पास पहले से ही कृत्रिम ग्रेफाइट का उत्पादन करने के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा है, जो एनोड उत्पादन के लिहाज़ से अहम है. इसलिए, इससे कॉस्ट के मामले में दक्षता बनी रह सकती है, जिसका मुकाबला इस सेक्टर में उतरने वाली नई कंपनियां नहीं कर सकतीं. मिसाल के तौर पर, प्रतिस्पर्धी कंपनी एप्सिलॉन इंडिया पर विचार कीजिए, जो समान क्षमता वाला प्लांट लगा रही है, लेकिन इसकी कॉस्ट लगभग दोगुनी है.
लेकिन कॉम्पीटिशन ख़ासा ज़्यादा है. ग्रेफाइट इंडिया भी एनोड बाज़ार में प्रवेश कर सकती है. चूंकि कंपनी नीडल कोक उत्पादन में और ज़्यादा एकीकृत है, जो कृत्रिम ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड के लिए प्राथमिक कच्चा माल है. इसके मज़बूत एकीकरण को देखते हुए, ये एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. वहीं, चीनी सप्लायर वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र पर हावी हैं. अगर HEG को इस तेज़ी से बढ़ते क्षेत्र में सफल होना है तो उसे तेज़ी से विस्तार करना होगा, वैश्विक मानकों को पूरा करना होगा और क़ीमत के मामले में प्रतिस्पर्धी बने रहना होगा.
एक नपा-तुला रिस्क
HEG डेट-फ़्री और कैश-रिच कंपनी है, जिससे यह अपने मुख्य ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बिज़नस और एनोड जैसे नए वेंचर्स दोनों में साहसिक निवेश करने में सक्षम है. अगर ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बाज़ार में सुधार होता है और एनोड में लगाया गया दांव सफल होता है, तो इससे रणनीतिक डायवर्सिफ़िकेशन का फ़ायदा मिल सकता है.
लंबे समय के निवेशकों के लिए, HEG की रक्षात्मक बैलेंस शीट को मज़बूती मिलती है और भविष्य में अनिश्चित ग्रोथ का मिश्रण सुनिश्चित होता है. ये देखते हुए कि ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बिज़नस ढांचागत बाधाओं का सामना कर रहा है और एनोड वेंचर अभी भी अपने शुरुआती दौर में है, कंपनी की रणनीति को वांछित परिणाम हासिल करने के लिए बहुत कुछ सही करना होगा.
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ये लेख पहली बार मार्च 31, 2025 को पब्लिश हुआ.