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ब्याज दरों में कटौती का साइकल पहले ही शुरू हो चुका है, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी पिछली पॉलिसी मीटिंग में रेपो दर को 6.5 से घटाकर 6.25 फ़ीसदी कर दिया है. ये लगभग पांच वर्षों में दरों में पहली बार कटौती है. अगली मोनेटरी पॉलिसी 7 से 9 अप्रैल के दौरान होनी है, इसलिए संभावना है कि रेपो दरों में और कटौती की जाए.
इस बैठक के दौरान एक और कटौती होगी या नहीं, अभी ये तय नहीं है, लेकिन ये स्पष्ट है कि अब हम ब्याज दरों में गिरावट के साइकल के शुरुआती चरणों में हैं. ऐसे समय में, निवेशकों के लिए एक अहम प्रश्न उठता है: इस माहौल के लिए किस प्रकार का डेट (फ़िक्स्ड इनकम) म्यूचुअल फ़ंड सबसे उपयुक्त है?
डेट फ़ंड के लिए ब्याज दरें क्यों मायने रखती हैं
ये समझने के लिए कि कौन सी फ़िक्स्ड इनकम कैटेगरी सबसे अच्छी है, सबसे पहले ये समझना ज़रूरी है कि ब्याज दरें डेट फ़ंड के रिटर्न को कैसे प्रभावित करती हैं.
डेट म्यूचुअल फ़ंड ऐसे बॉन्ड में निवेश करते हैं जो एक निश्चित अवधि के लिए एक तय ब्याज (जिसे कूपन कहा जाता है) देते हैं. जब ब्याज दरें गिरती हैं, तो नए जारी किए गए बॉन्ड कम ब्याज देना शुरू कर देते हैं. इससे पहले से ऊंची दर दे रहे मौजूदा बॉन्ड ज़्यादा वैल्युएबल हो जाते हैं. नतीजतन, उनकी क़ीमतें बढ़ जाती हैं.
चूंकि म्यूचुअल फ़ंड इन बॉन्ड को होल्ड करते हैं, इसलिए क़ीमत बढ़ने से फ़ंड की नेट एसेट वैल्यू (NAV) बढ़ जाती है, जिससे निवेशकों को कैपिटल गेन होता है.
हालांकि, सभी बॉन्ड एक जैसा व्यवहार नहीं करते हैं. लंबी मैच्योरिटी अवधि वाले बॉन्ड शॉर्ट टर्म बॉन्ड की तुलना में ब्याज दरों में बदलाव पर ज़्यादा तेज़ी से प्रतिक्रिया करते हैं. इसका मतलब है:
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जब दरें गिरती हैं → लंबी अवधि वाले बॉन्ड की क़ीमतें और बढ़ती हैं → लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड ज़्यादा रिटर्न देते हैं
- जब दरें बढ़ती हैं → लंबी अवधि के बॉन्ड की क़ीमतें और गिरती हैं → लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड्स को ज़्यादा नुक़सान होता है
इसके विपरीत, शॉर्ट-ड्यूरेशन फ़ंड इन उतार-चढ़ावों से तुलनात्मक रूप से अछूते रहते हैं. जब दरें गिरती हैं तो वे कम फ़ायदा देते हैं, लेकिन बढ़ती दरों के परिदृश्यों के दौरान निवेशकों को सहारा भी देते हैं.
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इतिहास हमें क्या बताता है
ये देखने के लिए कि ऐसा वास्तव में कैसे होता है, आइए देखें कि दर-कटौती के बड़े साइकल्स के दौरान लॉन्ग और शॉर्ट ड्यूरेशन फ़ंड्स ने कैसा प्रदर्शन किया है.
आम तौर पर लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड ब्याज दरों में गिरावट के साइकल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं
दर में कटौती की तारीख़ | रेपो दर में कटौती | फ़ंड के प्रकार | इसके बाद 6 महीने का रिटर्न | इसके बाद 1 साल के रिटर्न |
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7 फ़रवरी 2019 | 0.25% | लॉन्ग ड्यूरेशन | 12.3% | 15.3% |
शॉर्ट ड्यूरेशन | 2.2% | 6.1% | ||
4 मार्च 2015 | 0.25% | लॉन्ग ड्यूरेशन | 1.0% | 13.5% |
शॉर्ट ड्यूरेशन | 3.7% | 12.6% | ||
30 जुलाई 2008 | 0.50% | लॉन्ग ड्यूरेशन | 18.9% | 19.6% |
शॉर्ट ड्यूरेशन | 6.7% | 9.5% | ||
नोटः लंबे समय तक केवल एक ही लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड अस्तित्व में था तथा इसके डेटा का इस्तेमाल ऐतिहासिक प्रदर्शन के लिए प्रॉक्सी के रूप में किया जाता रहा है. |
स्पष्ट रूप से, जब ब्याज दरें गिरने लगती हैं, तो लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड आम तौर पर चमकते हैं. तुलनात्मक रूप से कम अवधि में फ़ायदा काफ़ी हो सकता है, ख़ासकर जब दर में अचानक कटौती से मार्केट सरप्राइज होता है.
आपको आंख मूंदकर रिटर्न के पीछे क्यों नहीं भागना चाहिए
भले ही, पिछले रिटर्न आकर्षक लगते हैं, लेकिन वे एक चेतावनी के साथ आते हैं और वो है अस्थिरता.

पिछले 15 वर्षों में, एक साल के रोलिंग रिटर्न के आधार पर, लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड्स में -3.3 फ़ीसदी और 21.5 फ़ीसदी के बीच उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. दूसरी ओर, शॉर्ट ड्यूरेशन फ़ंड का रिटर्न 2.6 फ़ीसदी और 11.3 फ़ीसदी के बीच रहा है. जब आप इसी अवधि में औसत रिटर्न देखते हैं, तो अंतर काफ़ी कम हो जाता है.
यहां तक कि तीन साल जैसी होल्डिंग अवधि में भी, लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड ने औसतन 8 फ़ीसदी रिटर्न दिया है, जबकि शॉर्ट ड्यूरेशन फ़ंड ने 7.4 फ़ीसदी रिटर्न दिया है. इसलिए, भले ही लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड कटौती के दौरान थोड़े समय के लिए बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन उनकी लंबे समय की बढ़त नाटकीय नहीं है. इससे भी बदतर, वे आपको इस प्रक्रिया में बहुत अधिक अस्थिरता के संपर्क में लाते हैं. यहां ये बताना ज़रूरी है कि लंबे समय तक केवल एक ही लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड अस्तित्व में था और उसके प्रदर्शन को कैटेगरी के ऐतिहासिक व्यवहार को दर्शाने के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है.
किस तरह का फ़िक्स्ड-इनकम फ़ंड चुनें?
आम तौर पर ब्याज दरों में गिरावट से लंबी अवधि के फ़िक्स्ड-इनकम म्यूचुअल फ़ंड को सबसे ज़्यादा फ़ायदा होता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वे सभी के लिए सही विकल्प हैं.
फ़िक्स्ड इनकम की मुख्य भूमिका स्थिरता प्रदान करना है, न कि रिटर्न का पीछा करना. ये काम इक्विटी के लिए छोड़ देना बेहतर है. इसे देखते हुए, आपका कोर फ़िक्स्ड इनकम पोर्टफ़ोलियो शॉर्ट-ड्यूरेशन या अन्य कम अवधि वाली कैटेगरीज़ के इर्द-गिर्द बनाया जाना चाहिए, जो ज़्यादा अनुमानित रिटर्न और कम अस्थिरता प्रदान करते हैं.
हालांकि, अगर आप दर-कटौती के मौजूदा साइकल का फ़ायदा उठाने के इच्छुक हैं, तो आप लंबी अवधि या डायनेमिक बॉन्ड फ़ंड में 5 से 10 फ़ीसदी का रणनीतिक एलोकेशन करने पर विचार कर सकते हैं. ये आपको अपने डेट पोर्टफ़ोलियो की समग्र सुरक्षा से समझौता किए बिना संभावित फ़ायदा हासिल करने की अनुमति देता है.
मुख्य रूप से शॉर्ट-ड्यूरेशन पर टिके रहें और लंबी अवधि को एक वैकल्पिक पहल के रूप में देखें - नींव के रूप में नहीं.
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