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अवंती फ़ीड्स: क्या झींगा से परे ग्रोथ की तलाश कारगर होगी?

क्या ये दिग्गज एक्वाकल्चर कंपनी फिश फ़ीड और पालतू जानवरों के भोजन के क्षेत्र में उतरकर प्रॉफ़िटेबिलिटी बनाए रख सकती है, या डाइवर्सिफ़िकेशन से इसकी मुख्य ताकत कमज़ोर हो जाएगी?

अवंती फीड्स: झींगा में प्रभुत्व से परे विकास की तलाशAI-generated image

बाज़ार में उथल-पुथल के बीच, अवंती फ़ीड्स लगातार 52-सप्ताह के नए हाई बना रहा है. कंपनी का लंबे समय से भारत की झींगा फ़ीड इंडस्ट्री पर दबदबा है, जो झींगा निर्यात के सहारे अप्रत्याशित रूप से बिज़नस को आगे बढ़ा रही है. जब वैश्विक स्तर पर क़ीमतें बढ़ती हैं, तो झींगा पालन फलता-फूलता है और इससे फ़ीड की मांग बढ़ती है. लेकिन जब क़ीमतें गिरती हैं, जैसा कि हाल के वर्षों में इक्वाडोर के बाज़ार में बहुत ज़्यादा सप्लाई के कारण हुआ, तो पूरा इकोसिस्टम प्रभावित होता है.

इन चुनौतियों के बावजूद, कंपनी खुद को एक अहम मोड़ पर पाती है. ये केवल तूफान का सामना नहीं कर रही है, बल्कि ये सक्रिय रूप से अपने भविष्य को नया आकार दे रही है. ग्रोथ के नए इंजनों का इस्तेमाल करके और अपने पोर्टफ़ोलियो का विस्तार करके, अवंती फ़ीड्स एक झींगा फ़ीड एक्सपर्ट से एक डाइवर्सिफ़ाइड एक्वाकल्चर कंपनी में बदलने की कोशिश कर रही है. लेकिन क्या ये अपनी गति को बनाए रख सकती है और नए क्षेत्रों में पिछली सफलताओं को दोहरा सकती है?

एक दमदार रिकवरी - लेकिन कब तक?

झींगा क्षेत्र में मुश्किल हालात के बावजूद, कंपनी लगातार फ़ायदे में बनी हुई है, जिससे बाज़ार में उसकी अहम स्थिति जाहिर होती है. इसकी झींगा फ़ीड बाज़ार में हिस्सेदारी फ़ाइनेंशियल ईयर 18 की 43 फ़ीसदी से बढ़कर फ़ाइनेंशियल ईयर 24 में 50 फ़ीसदी हो गई है, हालांकि इंडस्ट्री की ग्रोथ धीमी रही है. फिर भी, झींगा की कमज़ोर क़ीमतों और कृषि गतिविधियों में सुस्ती से निश्चित रूप से ग्रोथ और मार्जिन पर असर पड़ा है.

लेकिन, हाल में हालात में कुछ बदलाव हुआ है. कंपनी के हालिया बेहतर प्रदर्शन के पीछे एक अहम कारण इसकी वित्तीय स्थिति में सुधार है. मछली का आटा, सोयाबीन का आटा और गेहूं जैसे कच्चे माल की क़ीमतों में गिरावट से मार्जिन पर दबाव कम हुआ है. फ़ाइनेंशियल ईयर 25 की तीसरी तिमाही में, ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट मार्जिन एक साल पहले के 6.6 फ़ीसदी से बढ़कर 10.6 फ़ीसदी हो गया, जिससे प्रॉफ़िटेबिलिटी को बढ़ावा मिला.

अवंती फ़ीड्स: भारी गिरावट के बाद मार्जिन में सुधार

उतार-चढ़ाव भरे प्रदर्शन के साथ बाज़ार की चुनौतियों का सामना करना

मेट्रिक FY18 FY19 FY20 FY21 FY22 FY23 FY24
रेवेन्यू (करोड़ ₹) 3,393 3,488 4,115 4,101 5,036 5,087 5,369
ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट मार्जिन (%) 20.9 12.4 11.9 12.5 6.5 8.5 10.1
टैक्स के बाद मुनाफ़ा (करोड़ ₹) 466 307 386 397 245 312 394
फ़्री कैश फ़्लो (करोड़ ₹) 244 217 211 397 -205 348 251

हालांकि, इसे एक बुनियादी बदलाव के रूप में देखना भ्रामक होगा. कंपनी के मार्जिन में रिकवरी का श्रेय हाल में बने अनुकूल हालात को जाता है, जो स्वाभाविक रूप से कमज़ोर बने हुए थे. ख़ास तौर पर मछली के आटे और सोयाबीन के आटे जैसे कच्चे माल सहित कमोडिटी की क़ीमतें, बेहद अस्थिर हैं, जिसकी वजह अप्रत्याशित वैश्विक आपूर्ति और जिओपॉलिटिकल फ़ैक्टर हैं. इन अस्थायी फ़ायदों को ध्यान में रखकर लंबे समय तक ग्रोथ की धारणाएं कायम करने से निवेशकों को निराशा हाथ लग सकती है.

इसके अलावा, इक्वाडोर द्वारा अपनी आपूर्ति को कम करने के कारण झींगा की क़ीमतों में स्थिरता लंबे समय तक नहीं रह सकती. इक्वाडोर की मंदी चीन और अमेरिका से कमज़ोर मांग, ऊर्जा की कमी और काउंटरवेलिंग ड्यूटीज़ के कारण हुई. इनमें से कोई भी वजह ग्लोबल सप्लाई में बड़े बदलाव का संकेत नहीं देती है. डिमांड में सुधार या सप्लाई से जुड़ी बाधाओं में ढील इन अनुकूल स्थितियों को जल्दी से उलट सकती है.

इक्वाडोर के झींगा एक्सपोर्ट में ग्रोथ थमी

अवंती फ़ीड्स को वर्षों की लगातार ग्रोथ के बाद स्थिर क़ीमतों से राहत मिली

साल एक्सपोर्ट वॉल्यूम ('000 MT में) झींगा की ग्लोबल कीमतें ($/किग्रा)
2017 426 9.1
2018 506 8.5
2019 634 7.8
2020 676 7.3
2021 842 7.7
2022 1061 8.0
2023 1214 6.9
2024 1212 7.4
स्रोत: फेडरल रिज़र्व बैंक ऑफ सेंट लुइस, श्रिंपियाको

इसलिए आपको अस्थायी तौर पर मार्जिन बढ़ाने पर कम और अवंती फ़ीड्स की प्रमुख ताकत पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए. असली सवाल ये है कि क्या कंपनी ने स्थायी कॉस्ट एडवांटेज और परिचालन से जुड़ी दक्षताएं हासिल की हैं जिससे इसे इंडस्ट्री साइकल्स के अनिवार्य रूप से बदलने पर भी प्रॉफ़िटेबल बना रहना संभव होता है. इनके बिना, वर्तमान प्रदर्शन ठोस होने के बजाय कुछ समय के लिए टिकाऊ साबित हो सकता है.

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झींगा फ़ीड से परे: नई ग्रोथ के पीछे भागना

फिश फ़ीड पर दांव लगाना

भारत के कुल एक्वाकल्चर उत्पादन में झींगा की हिस्सेदारी सिर्फ़ 15-20 फ़ीसदी है, इसलिए अवंती फ़ीड्स को फिश फ़ीड के बहुत बड़े बाज़ार में उतरने करने का अवसर दिख रहा है, जिसमें कार्प का वर्चस्व है. इसे स्थानीय तालाबों में पाले जाने वाली मीठे पानी की मछली द्वारा व्यापक रूप से खाया जाता है.

इस क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के लिए, कंपनी ने थाई यूनियन फ़ीडमिल के साथ साझेदारी की है, जिसके तहत कंपनी की उन्नत फ़ीड तकनीक और विशेषज्ञता का लाभ उठाया गया है. अवंती फ़ीड्स में थाई यूनियन समूह की रणनीतिक 24 फ़ीसदी हिस्सेदारी इस कदम की विश्वसनीयता को पुष्ट करती है. ये सहयोग झींगा फ़ीड विशेष रूप से वन्नामेई झींगा के लिए अच्छी क्वालिटी वाला फ़ीड तैयार करने में इसकी पिछली सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था.

फिर भी, फिश फ़ीड में उस सफलता को दोहराना इतना आसान नहीं हो सकता. फिश फ़ीड मूल रूप से एक कमोडिटी बिज़नस है, जिसमें प्राइस के लिहाज़ से भारी कॉम्पीटिशन और कम प्रॉफ़िट मार्जिन होता है. झींगा फ़ीड के विपरीत, जहां अवंती फ़ीड्स को शुरुआती कंपनी होने का फ़ायदा मिला है, फिश फ़ीड एक अव्यवस्थित, कॉस्ट के लिहाज़ से संवेदनशील बाज़ार है. भारत के ज़्यादातर मछली किसान क्वालिटी से ज़्यादा क़ीमतों को प्राथमिकता देते हैं, और इसीलिए, कम कॉस्ट, कम पोषण वाले विकल्पों का चयन करते हैं. भले ही, प्रीमियम फ़ीड पर कंपनी का ध्यान रणनीतिक लगता है, लेकिन ये बेहतर पोषण के लिए प्रीमियम का भुगतान करने के उद्देश्य से किसानों की इच्छा को ज़्यादा आंकने का जोखिम उठाता है.

इसलिए, चुनौती सिर्फ़ प्रोडक्ट क्वालिटी से जुड़ी नहीं है, बल्कि कॉस्ट के लिहाज़ से लीडरशिप और डिस्ट्रीब्यूशन में दक्षता हासिल करने के बारे में भी है. फिश फ़ीड में झींगा फ़ीड की सफलता की कहानी को दोहराने के लिए तकनीकी के लिहाज़ से श्रेष्ठता से ज़्यादा की ज़रूरत होगी. इसके लिए उस तरह के पैमाने और प्राइसिंग की ताकत की ज़रूरत होगी जो कम मार्जिन और भारी भरकम प्राइस कॉम्पीटिशन वाले बाज़ार में होना मुश्किल है.

पालतू जानवरों का भोजन: खुदरा क्षेत्र में एक साहसिक कदम

अगर फिश फ़ीड अवंती फ़ीड्स की एक्वाकल्चर क्षेत्र से जुड़ी विशेषज्ञता का तार्किक विस्तार है, तो पालतू जानवरों का भोजन एक पूरी तरह से नए क्षेत्र में एक साहसिक छलांग है. भारत में पालतू जानवरों के भोजन का बाज़ार फ़ाइनेंशियल ईयर 18 से फ़ाइनेंशियल ईयर 23 तक (एग्रीकल्चर एंड एग्री-फूड कनाडा के अनुसार) सालाना 20 फ़ीसदी की दर से बढ़ रहा है, जो पालतू जानवर रखने के चलन में बढ़ोतरी और वैज्ञानिक रूप से तैयार किए गए आहार की ओर रुझान के कारण है. ₹5,000 करोड़ से ज़्यादा के इस बाज़ार में ग्रोथ की अभी ख़ासी संभावनाएं हैं.

अवंती फ़ीड्स सबसे पहले बिल्ली के फूड के क्षेत्र को लक्षित कर रही है, जिसकी बाजार में 15-20 फ़ीसदी हिस्सेदारी है, उसके बाद वो कुत्ते के भोजन की कैटेगरी में प्रवेश करेगी. इसने विशेष फॉर्मूलेशन विकसित करने के लिए थाईलैंड की ब्लूफेलो पेट केयर के साथ साझेदारी की है और इन-हाउस मैन्युफैक्चरिंग स्थापित करने के लिए उसकी ₹130-150 करोड़ के निवेश की योजना है, जो समय के साथ कंट्रोल बढ़ा सकती है और मार्जिन में सुधार कर सकती है.

हालांकि, ये रणनीति चुनौतियों से भरी है. भारतीय पालतू जानवरों के भोजन के बाजार पर पेडिग्री और ड्रूल्स जैसे स्थापित ब्रांडों का दबदबा है, जिनका कुल मार्केट शेयर लगभग 76 फ़ीसदी है. इन खिलाड़ियों ने आक्रामक मार्केटिंग, सेलिब्रिटी सपोर्ट और व्यापक डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के माध्यम से जबरदस्त ब्रांड लॉयल्टी विकसित की है. इसके विपरीत, पारंपरिक B2B फ़ीड मैन्युफैक्चरर अवंती फ़ीड्स के पास रिटेल ब्रांड-बिल्डिंग और उपभोक्ता जुड़ाव के मामले में कम अनुभव है.

बड़ी कंपनियों की मज़बूत मौजूदगी को देखते हुए, केवल प्रोडक्ट क्वालिटी के दम पर प्रतिस्पर्धा करना काफ़ी नहीं हो सकता. एक नया उपभोक्ता ब्रांड बनाने के लिए व्यापक मार्केटिंग इन्वेस्टमेंट, मज़बूत रिटेल डिस्ट्रीब्यूशन और ग्राहक जुड़ाव के लिए लंबे समय तक बने रहने ज़रूरत होती है. पालतू जानवरों के भोजन में एक बड़ी खिलाड़ी बनने की कंपनी की महत्वाकांक्षा न केवल प्रोडक्ट इनोवेशन पर बल्कि ब्रांड के प्रति धारणा पर निर्भर करेगी, जो एक ऐसा क्षेत्र जहां कंपनी को अभी काफ़ी काम करना है.

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क्या अवंती फ़ीड्स प्रॉफ़िट के लिहाज़ से खुद को डायवर्सिफ़ाई कर सकती है?

भले ही, कंपनी की डाइवर्सिफ़िकेशन की स्ट्रैटजी कागजों पर उम्मीदें जगाती है, लेकिन इसके सामने आने वाली चुनौतियां बहुत बड़ी हैं. कम मार्जिन वाले कमोडिटी-आधारित बाज़ार, फिश फ़ीड में विस्तार से बड़े पैमाने पर लागत के लिहाज़ से दक्षता हासिल करने की इसकी क्षमता का परीक्षण होगा. इस बीच, एक स्थापित उपभोक्ता ब्रांड के बिना पालतू जानवरों के भोजन के सेगमेंट में प्रवेश करने से मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में भारी निवेश की ज़रूरत होती है.

आपको वैल्यूएशन के लिहाज़ से भी सावधान रहना चाहिए. 25 का P/E रेशियो एक ऐसे बिज़नस के लिए आशावादी लगता है जो साइक्लिकल कमोडिटीज के साथ इतने व्यापक स्तर पर जुड़ा हुआ है. कच्चे माल की कॉस्ट में कमी के सहारे मार्जिन में सुधार, अल्पकालिक साबित हो सकता है. शॉर्ट टर्म मार्जिन बढ़ने से लंबे समय में अर्निंग में स्थिरता का आकलन करने से बिज़नस के ओवर वैल्यूएशन का जोखिम रहता है.

असली सवाल सिर्फ़ ये नहीं है कि अवंती फ़ीड्स बढ़ सकती है या नहीं, बल्कि ये है कि क्या ये झींगा फ़ीड में अपनी मुख्य ताकत को बनाए रखते हुए मुनाफ़े के मामले में ऐसा कर सकती है. किसी भी तरह का विस्तार, कंपनी की प्रतिस्पर्धी बढ़त को कम करने या कैपिटल एलोकेशन में अनुशासन का त्याग करने की क़ीमत पर नहीं होना चाहिए.

अंत में, कंपनी का रणनीतिक विकास महत्वाकांक्षी और जोखिम भरा दोनों है. निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए और न केवल कंपनी की ग्रोथ, बल्कि विविध और चुनौतीपूर्ण बाज़ारों में प्रॉफ़िट बनाए रखने की इसकी क्षमता की भी जांच करनी चाहिए. क्या अवंती फ़ीड्स वास्तव में खुद को नए रूप में स्थापित कर सकती है, इसका उत्तर विस्तार में नहीं बल्कि क्रियान्वयन में है.

आत्मविश्वास के साथ निवेश करें: स्टॉक पर एक्सपर्ट की राय हासिल करें

अवंती फ़ीड्स की साहसिक डाइवर्सिफ़िकेशन की स्ट्रैटजी ग्रोथ को आगे बढ़ाते हुए मुख्य क्षमताओं के साथ आगे बढ़ने की चुनौतियों को उजागर करती है. निवेशकों के लिए, ये आकलन करना अहम है कि क्या किसी कंपनी के कदम वास्तव में लंबे समय में वैल्यू को बढ़ाएंगे या मौजूदा क्षमताओं को कमज़ोर करेंगे.

यही वह जगह है जहां वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र काम आता है. अनुभवी एनालिस्ट्स की हमारी टीम कंपनियों के फ़ाइनेंशियल्स, रणनीतियों और ग्रोथ की क्षमता में गहराई से गोता लगाती है, ताकि आपको निवेश का सोचा-समझा फैसला लेने में मदद मिल सके. चाहे वो डाइवर्सिफ़िकेशन के जोखिमों को समझना हो या टिकाऊ ग्रोथ स्टोरीज़ को पहचानना हो, हमारी सलाह आपको आत्मविश्वास के साथ निवेश करने के लिए ज़रूरी बढ़त देती है.

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ये लेख पहली बार मार्च 24, 2025 को पब्लिश हुआ.

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