पर्सनल फ़ाइनांस इनसाइट

निवेश का डर सच में होता है और इसका बुरा असर भी

हमारा अपना मनोविज्ञान हमें अमीर होने से रोके रखता है और इसे समझना इस बंधन से आज़ादी है

निवेश और मनोविज्ञान: भारतीय मानसिकता और धन के फैसले

भारतीय मध्यम वर्ग की सावधानी: कहानी एक भारतीय की

पुणे के 35 साल के आईटी प्रोफ़ेशनल रवि शर्मा कई मध्यम वर्गीय भारतीयों की तरह थे—पैसे को लेकर बहुत सतर्क, लेकिन मन ही मन महत्वाकांक्षी भी. उनकी महीने की आमदनी ₹80,000 थी और वो अपनी पत्नी प्रिया और छह साल की बेटी के साथ किराए के 2BHK में रहते थे. हर महीने ₹20,000 फ़िक्स्ड डिपॉज़िट (FD) में डालना उनकी आदत थी. रवि के लिए बचत एक पवित्र चीज़ थी—ये आदत मध्य प्रदेश के छोटे से शहर छतरपुर में अपने माता-पिता को हर रुपए को संभालते देखकर बनी. लेकिन निवेश? ये उनके लिए एक अनजानी बात थी, जिसे वो भारत के बदलते आर्थिक माहौल और अपनी सोच के चलते शक़ की नज़र से देखते थे.

बचत का प्रेम, निवेश का डर: NISM का अध्ययन

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ सिक्योरिटीज़ मार्केट्स (NISM) की 2023 की स्टडी से पता चलता है कि औसत भारतीय का झुकाव निवेश से ज़्यादा बचत की ओर है. शहरी परिवारों में 62% लोग फ़िक्स्ड डिपॉज़िट और सोने को स्टॉक या म्यूचुअल फ़ंड से ऊपर रखते हैं. ये "नुक़सान से बचाव" (Loss Aversion) को दिखाता है—एक ऐसी अवधारणा जिसे डैनियल काह्नमैन (Daniel Kahneman) और आमोस ट्वर्स्की (Amos Tversky) ने 1979 की प्रॉस्पेक्ट थ्योरी में पेश किया. काह्नमैन ने दिखाया कि लोग पैसे खोने के दर्द को उसकी ख़ुशी से दोगुना महसूस करते हैं. रवि पर ये बात अक्षरशः सच थी. शेयर बाज़ार में अपनी मेहनत की कमाई गंवाने का ख़याल उन्हें व्यक्तिगत धोखे जैसा लगता था, भले ही उनके साथ काम करने वाले SIP से दस साल में दोगुने रिटर्न की बात करते थे.

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बढ़ता ख़र्च, घटती बचत: एक रिपोर्ट के हवाले से

रवि का जीवन 2024 की रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) की कंज़्यूमर सर्वे रिपोर्ट की मिसाल पेश करता था: शहरी मध्यम वर्ग में ख़र्च बढ़ रहा है. भारत की GDP ग्रोथ और ई-कॉमर्स के उछाल के साथ, रवि और प्रिया ने ख़र्च शुरू कर दिया—फ़्लिपकार्ट सेल में ₹5,000 का स्मार्ट टीवी, हर महीने ₹3,000 के ज़ोमाटो और स्विगी के ऑर्डर और वीकेंड पर मॉल की सैर. सर्वे में 58% लोगों ने कहा कि वे अपने दोस्तों के साथ "बने रहने" का दबाव महसूस करते हैं—ये "झुंड जैसा व्यवहार" (Herd Behavior) है, जिसे काह्नमैन ने भी समझाया है. रवि को नहीं पता था, लेकिन ये बढ़ता ख़र्च उनकी बचत को खा रहा था, और पैसे कम बच रहे थे.

SIP और शक़: एंकरिंग का असर

एक शाम प्रिया ने SIP के बारे में यूट्यूब वीडियो देखकर बात की. "रवि, सब ऐसा कर रहे हैं. दिल्ली में मेरे कज़न ने ₹5,000 महीने से शुरू किया और अब उनके पास ₹8 लाख हैं!" रवि ने तंज़ कसा, "और अगर बाज़ार गिर गया तो? FD में पैसा सेफ़ है." ये "एंकरिंग बायस" था—काह्नमैन की वो सोच कि लोग अपने शुरुआती संदर्भ पर अटक जाते हैं. रवि के लिए 6% FD रिटर्न उनका आधार था, जिसे वो छोड़ नहीं सकते थे, भले ही 4% महंगाई दर उनकी बचत की असल क़ीमत लगातार कम कर रही थी.

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निवेश की ओर पहला क़दम

प्रिया के ज़ोर देने पर रवि ने एक फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र से मिलने का फ़ैसला किया. मुलाक़ात में उन्हें डेटा दिखाया गया: पिछले दस साल में निफ़्टी 50 ने 12% सालाना रिटर्न दिया, जो FD से कहीं ज़्यादा था. उन्होंने बताया कि SIP बाज़ार की अस्थिरता को कम कर सकता है—काह्नमैन की ये बात कि लोग छोटे रिस्क को बढ़ा-चढ़ाकर देखते हैं और लंबे फ़ायदे को कमतर आंकते हैं. एडवाइज़र ने 2023 की सेबी की स्टडी का भी हवाला दिया, जिसमें केवल 27% भारतीय परिवार इक्विटी मार्केट में निवेश करते हैं. ऐसा अक्सर पारंपरिक बचत पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसे या अनजाने डर के कारण होता है. "आप अकेले नहीं हैं," एडवाइजर ने रवि और प्रिया को चेताया, "लेकिन आपकी बेटी की पढ़ाई FD के भरोसे नहीं रुक सकती."

एक साइड स्टोरी: फ़्रेमिंग का जादू

रवि का मन तब बदला जब उनके साथ काम करने वाले संजय ने अपनी बात शेयर की. संजय ने कई साल पहले एक ग़लत स्टॉक में ₹50,000 गंवाए थे, लेकिन फिर म्यूचुअल फ़ंड में टिके रहे. अब उनका पोर्टफ़ोलियो ₹15 लाख का था. संजय के नुक़सान ने रवि को डराया नहीं—ये इंसानी अनुभव बन गया. काह्नमैन इसे "फ़्रेमिंग इफ़ेक्ट" कहते हैं कि फ़ैसला इस बात से प्रभावित होता है कि उसे कैसे पेश किया जाए—नुक़सान को सबक़ के तौर पर देखने से रवि ने संजय को लापरवाही नहीं, बल्कि मज़बूती समझी.

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निवेश की शुरुआत: नुक़सान का डर और धीरज

रवि ने हिम्मत की—हर महीने ₹10,000 इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड में डाले. पहला साल उतार-चढ़ाव भरा था. बाज़ार 8% गिरा, और उनका ₹1.2 लाख का निवेश ₹1.1 लाख हो गया. नुक़सान का डर फिर हावी हुआ—वो सब निकालने वाला था, लेकिन प्रिया ने नेहा की सलाह याद दिलाई: "धीरज रखो." 2027 तक उनका फ़ंड ₹4.5 लाख हो गया, 15% सालाना रिटर्न के साथ. NISM की स्टडी सही थी: 38% निवेशक जो छोटी गिरावट को नजरअंदाज़ करते हैं, वे फ़ायदा उठाते हैं.

बदलाव का सबक़: मनोविज्ञान से आगे

अपनी निवेश यात्रा पर सोचते हुए, रवि ने देखा कि उनका नज़रिया बदल गया. भारत का बदलता जीवन—ज़्यादा ख़र्च, बड़े सपने—ने उन्हें बचत पर फिर से विचार करने को मज़बूर किया. काह्नमैन का मनोविज्ञान बताता था कि वो क्यों हिचकिचाए: नुक़सान का डर, झुंड की मानसिकता, और पुरानी सोच से चिपके रहना. लेकिन इन रुकावटों को पार करने से नया रास्ता खुला. आज रवि अपनी बेटी के भविष्य के लिए सिर्फ़ बचत नहीं, निवेश कर रहे हैं.

धनक कैसे मदद कर सकता है

वैल्यू रिसर्च का धनक भारतीय निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद साथी है. ये पर्सनल फ़ाइनेंस, म्यूचुअल फ़ंड और स्टॉक निवेश पर सटीक डेटा और अनालेसिस देता है. चाहे आप SIP शुरू करना चाहें या अपने पोर्टफ़ोलियो को समझना हो, धनक आपको फ़ैक्ट्स पर आधारित सलाह देता है ताकि आप मनोवैज्ञानिक बाधाओं को पार कर सूझबूझ से फ़ैसले ले सकें.

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ये लेख पहली बार मार्च 20, 2025 को पब्लिश हुआ.

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