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डैनियल काह्नमैन की मृत्यु (जो मार्च 2024 में हुई) के बारे में हाल ही में हुए खुलासे ने उनके काम को फ़ॉलो करने वालों को सोचने पर मजबूर कर दिया है. नोबेल पुरस्कार विजेता मनोवैज्ञानिक, ने फ़ैसले लेने की हमारी समझ को बुनियादी तौर से बदल दिया. उन्होंने पिछले साल स्विटज़रलैंड में आत्महत्या करने में मदद लेना चुना. 90 साल की उम्र में, किडनी की क्षमता में कमी और बढ़ती हुई दिमाग़ी कमियों का सामना करते हुए, काह्नमैन ने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फ़ैसला लिया, और ये फ़ैसला उनकी साफ़ सोच-समझ और सटीक अनालेसिस की क्षमता के साथ लिया गया.
उनके इस आख़िरी फै़सले की सबसे ख़ास बात ये है कि इसने उन सिद्धांतों को पूरी तरह से मूर्त रूप दिया, जिसे समझने में उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताया. काह्नमैन ने इस बारे में काफ़ी विस्तार से लिखा कि अनिश्चितता होने पर इंसान कैसे फ़ैसले लेते हैं. ठीक वैसे ही उन्होंने अपनी अंत को उसी अनालेसिस के अंदाज़ से देखा, जैसा उन्होने फ़ाइनेंस पर इंसानी रवैये पर लागू किया था. अपनी आख़िरी ईमेल में, उन्होंने बताया कि वो अपनी कम उम्र से ही मानते थे कि "ज़िंदगी के आख़िरी सालों के दुख और अपमान ग़ैर ज़रूरी हैं." ये कोई तैश में आ कर लिया फ़ैसला नहीं था, बल्कि शांति से सोचा-समझा गया निर्णय था, जो उन्होंने पूरे होश-ओ-हवास में लिया था.
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इस रहस्य का ख़ुलासा व्यवहार अर्थशास्त्र (behavioural economics) के गुरु का एक गहरा और कुछ हद तक अप्रत्याशित आख़िरी सबक़ देता है - जो निवेशकों के लिए ख़ासतौर से प्रासंगिक है.
काह्नमैन ने अपने काम से दिखाया कि कैसे सोच-समझ के पूर्वाग्रह अक्सर हमारे फ़ैसलों को प्रभावित करते हैं. हम नुक़सान पर बहुत ज़्यादा प्रतिक्रिया करते हैं, झुंड के पीछे चलते हैं, और अपने फ़ैसलों में बहुत ज़्यादा आत्मविश्वास दिखाते हैं. फिर भी उनके आख़िरी फ़ैसले ने कुछ अलग दिखाया: इन पूर्वाग्रहों को समझकर और उनका हिसाब लगाकर नतीजे देने वाले निर्णयों को स्पष्ट करने की संभावना.
ये तुलना निवेशकों को शिक्षा देने वाली है. फ़ाइनेंशियल मार्केट सबसे बड़ा क्षेत्र है जहां हमारी सोच-समझ के पूर्वाग्रह एक साथ उभर कर सामने आते हैं. बाज़ार सिर्फ़ आर्थिक बुनियादी बातों पर ही नहीं बल्कि सामूहिक मनोविज्ञान की लहरों - डर, लालच, अति आत्मविश्वास और घबराहट की वजह से भी चढ़ते-उतरते हैं. ज़्यादातर निवेशक इन लहरों में फंस जाते हैं, उनके फ़ैसले अनालेसिस के बजाय भावनाओं के चलते होते हैं.
काह्नमैन का काम सिर्फ़ अकादमिक नज़रिया नहीं था; इसने आगे बढ़ने का रास्ता सुझाया. अपने पूर्वाग्रहों को समझकर, हम उन्हें रोकने के लिए काम कर सकते हैं. उनका आख़िरी फ़ैसला इस सिद्धांत को व्यवहार में दिखाता है - सामाजिक अपेक्षाओं या भावनात्मक प्रतिक्रियाओं के बजाय अपने मूल्यों और परिस्थितियों के आधार पर एक गहरा व्यक्तिगत विकल्प चुनना.
तो "काह्नमैन-स्टाइल" का निवेश कैसा दिख सकता है? सबसे पहले, इसके लिए अपने प्रति एक गहरी ईमानदारी की ज़रूरत होती है. जिस तरह काह्नमैन ने ख़ुद को छलावा दिए बग़ैर अपनी कम होती हुई क्षमताओं का सामना किया, उसी तरह निवेशकों को पूरी ईमानदारी से अपनी रिस्क लेने की क्षमता, समझ की सीमाओं और भावनाओं को भड़काने वाले कारणों का पता करने चाहिए. ख़ुद को लेकर ऐसी जागरूकता अच्छे निवेश की नींव है.
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दूसरा, ये मांग करता है कि हम फ़ैसलों और नतीजों के बीच अंतर करें. काह्नमैन ने बार-बार दिखाया कि अक्सर इंसान इन दोनों बातों को मिला देते हैं, फ़ैसले लेने के प्रोसेस यानि तरीक़े के बजाय नतीजों के आधार पर फ़ैसले लेते हैं. निवेश का एक अच्छा फ़ैसला किसी अचानक होने वाली घटनाओं की वजह से ख़राब नतीजे दे सकता है, जबकि बिल्कुल घटिया अनालेसिस के बावजूद कभी-कभी फ़ायदा मिल सकता है. आपके काम करने के प्रोसेस की क्वालिटी किसी एक नतजे से ज़्यादा मायने रखती है.
तीसरा, इसके लिए ऐसे सिस्टम बनाने की ज़रूरत होती है जो हमें हमारे सबसे बुरे भावनात्मक आवेगों से बचाए. काह्नमैन जानते थे कि संज्ञा के स्तर पर पूर्वाग्रहों पर क़ाबू पाने के लिए केवल इच्छाशक्ति ही काफ़ी नहीं. स्मार्ट निवेशक नियम और स्ट्रक्चर स्थापित करते हैं जो उन्हें ऑटोमैटिक तरीक़े से बेहतर फ़ैसलों की ओर ले जाते हैं - नियमित निवेश, डाइवर्सिफ़िकेशन की ज़रूरत, या पहले से तय की गई निवेश से पैसे निकालने की रणनीतियां.
और आख़िर में, काह्नमैन शानदार मुनाफ़े के पीछा करने के बजाए बड़ी ग़लतियों से बचने पर ज़्यादा ध्यान देने का सुझाव देते हैं. नुक़सान से बचने को लेकर उनकी रिसर्च बताती है कि नुक़सान उसी जैसे फ़ायदे के मुक़ाबले ज़्यादा दुख देते हैं. निवेश में, इसका मतलब हुआ कि रिस्क मैनेजमेंट को बड़े रिटर्न से ऊपर रखना चाहिए. मैंने अपने पिछले कॉलमों में इस पर बात की है कि ख़राब निवेशों को पहले ही अपनी लिस्ट से बाहर निकाल देना, अक्सर अगले मल्टी-बैगर की पहचान करने से बेहतर होता है.
काह्नमैन का आख़िरी चुनाव मार्मिक है क्योंकि ये दिखाता है कि उनके ये सिद्धांत केवल अकादमिक सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि ज़िंदगी के सबसे अहम फ़ैसलों की प्रैक्टिकल गाइड हैं. उन्होंने केवल फ़ैसले लेने के बारे में स्टडी नहीं की थी; उन्होंने अपने नज़रिए और सोच को जिया.
निवेशकों के लिए, सबक़ साफ़ है: हमारे फ़ैसलों के मनोविज्ञान को समझना कोई छोटी फ़िक्र नहीं है - ये हमारी आर्थिक सफलता तय करने वाला पहला फ़ैक्टर है. मार्केट हमेशा उतार-चढ़ाव वाले होंगे, लेकिन हमारे रिएक्शन भी उसी तरह हों, इसकी ज़रूरत नहीं है. इस मायने में, काह्नमैन का आख़िरी फ़ैसला हमें उनका आख़िरी सबक़ देता है: अनिश्चितता और भावनाओं के बावजूद स्पष्टता और तर्कसंगत होना संभव है. ये एक बड़े विचारक का बड़ा उपहार है और शायद दुनिया भर के निवेशकों के लिए उनकी सबसे क़ीमती विरासत भी.
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