Anand Kumar
बड़ा ही दिलचस्प होता है जब दुनिया के सबसे सफल निवेशक का निवेश संबंधी ज्ञान आसानी से समझे जाने वाली बात के तौर पर सामने आता है. एक वायरल हुए स्क्रीनशॉट में डाइवर्सिफ़िकेशन पर वॉरेन बफ़े के विचार दिखे. उसमें उन्होंने कहा है कि आत्मविश्वास से भरे प्रोफ़ेशनल्स को अपने निवेश पर ध्यान देना चाहिए जबकि बाक़ी सभी को इंडेक्स फ़ंड के ज़रिए डाइवर्सिफ़िकेशन को पूरे तौर पर अपनाना चाहिए. ये हैं क्लासिक वॉरेन बफ़े - बेहद सरल, कुछ विरोधाभासी, मगर उसके बावजूद उनकी बात में गहरा ज्ञान है जिसे खोल कर समझने की ज़रूरत है.
उनकी ये बात मौजूदा मार्केट के परिदृश्य के लिए ख़ासतौर से प्रासंगिक है. जहां सेंसेक्स ने पिछले पांच साल में 117 प्रतिशत की ज़बरदस्त बढ़त हासिल की है और बीएसई स्मॉलकैप इंडेक्स में लगभग 278 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, वहीं हाल के महीनों में तेज़ गिरावट देखी गई है - बाक़ी के मार्केट के मुक़ाबले स्मॉलकैप में काफ़ी ज़्यादा गिरावट रही है. ये उठा-पटक स्वाभाविक रूप से कई निवेशकों को उनके नज़रिए को लेकर सवाल उठाने के लिए मजबूर करती है. क्या उन्हें "विनर्स" पर ध्यान देना चाहिए, जैसा कि बफ़े का सुझाव है, या ये गिरावट डाइवर्सिफ़िकेशन की वैल्यू को मज़बूती देती है?
लेकिन बफ़े की बात में कुछ ज़रूरी बारीक़ियां हैं जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. जब वे एकाग्रता के बारे में बात करते हैं, तो वे लोगों के एक बहुत ही छोटे से ग्रुप की बात कर रहे होते हैं - जो असल में बिज़नस समझते हैं और निवेश के मौक़ों का सही मूल्यांकन करने के लिए भावनात्मक अनुशासन और विश्लेषण करने की महारथ रखते हैं. बफ़े की सलाह हममें से ज़्यादातर के लिए स्पष्ट है: एक सस्ता इंडेक्स फ़ंड या एक अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड वाला कंज़रवेटिव इक्विटी फ़ंड ख़रीदें और समय के साथ उसमें धीरे-धीरे निवेश करें.
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इस आम सी लगने वाली उनकी सिफ़ारिश में अक्लमंदी की बात है. ज़्यादातर लोगों के पास अपने निवेश को सफलता से केंद्रित या कॉन्सनट्रेटेड बनाने करने के लिए समय, क़ाबिलियत या भावनात्मक क्षमता की कमी होती है. बाज़ार की आवाज़ का मोह बहुत ताक़तवर होता है - ख़ासकर जब हम ऐसे चार्ट देखते हैं जैसे कि हम अभी देख रहे हैं. जब इंडेक्स लगातार ऊपर की ओर चढ़ते हैं, तो ये विश्वास करना आसान होता है कि विनर्स को चुनना आसान है और एकाग्रता ही पूंजी पाने का सीधा और स्पष्ट रास्ता है. ये ठीक वही समय है जब बफ़े की "सच में मूर्ख" होने की चेतावनी सबसे ज़्यादा मायने रखती है.
1964 के अमेरिकन एक्सप्रेस की एक मिसाल देखिए. सलाद ऑयल स्कैंडल (or soybean scandal) के बाद स्टॉक में भारी गिरावट आई, लेकिन बफ़े के पास ये पहचानने की एनेलिटिकल समझ थी कि बुनियादी बिज़नस मज़बूत बना हुआ है और इस एक ही निवेश के लिए अपने पोर्टफ़ोलियो का 40 प्रतिशत समर्पित करने का भावनात्मक साहस था. हममें से कितने लोगों के पास ऐसी क्षमता है? सच्चाई ये है कि ज़्यादातर निवेशक जो इसी तरह की एकाग्रता की कोशिश करते हैं, वे बिल्कुल ग़लत समय पर ग़लत पोज़ीशन पर ज़्यादा पैसा लगा रहे होते हैं.
ख़ास बात ये है कि बफ़े भी अपने शानदार कौशल के साथ मोटे तौर पर सिर्फ़ पांच पोज़ीशन के साथ काम करते थे - एक नहीं, दो नहीं, बल्कि पांच. उन्होंने उन पांचों के भीतर डाइवर्सिफ़िकेशन के सिद्धांतों को बनाए रखा, सामान्य परिस्थितियों में अपनी सबसे बड़ी पोज़ीशन को 25 प्रतिशत तक सीमित रखा. केवल असाधारण परिस्थितियों में, जहां उनका आत्मविश्वास बहुत ज़्यादा था, वहीं उन्होंने ज़्यादा एलोकेशन करने के बारे में सोचा.
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बुनियादी समस्या ये है कि ज़्यादातर निवेशक अपनी क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ा कर देखते हैं. हम ख़ुद को बफ़े के बताया गया आत्मविश्वासी एक्सपर्ट समझ बैठते हैं, लेकिन स्टेटेस्टिक्स के स्तर पर कहें तो हममें से लगभग कोई भी वैसा नहीं है. ये अति आत्मविश्वास ठीक उसी व्यवहार की ओर ले जाता है जिसके बारे में बफ़े चेतावनी देते हैं: ख़ुद को मुसीबत के लिए तैयार करते हुए, निवेश पर हफ़्ते में एक घंटा ख़र्च करना और ये समझ लेना कि हम बहुत स्मार्ट हैं.
इसका मतलब ये नहीं है कि हर निवेशक को आंख मूंदकर हमेशा इंडेक्स फ़ंड फ़ॉलो करने चाहिए. बीच का रास्ता भी है. डाइवर्सिफ़ाई किए हुए इंडेक्स निवेश के ज़रिए एक ठोस आधार स्थापित करने के बाद, कोई व्यक्ति अपने पोर्टफ़ोलियो का एक छोटा हिस्सा ज़्यादा कॉन्सन्ट्रेटेड पोज़ीशन पर लगा सकता है. ये नज़रिया फ़ाइनेंशियल बर्बादी के रिस्क के बिना निवेश के कुछ विकल्पों में शामिल होने की आज़ादी देता है, फिर चाहे ये विकल्प कभी-कभी ग़लत साबित होते हों.
बफ़े की समझदारी से सबसे बड़ी सीख ये नहीं है कि इन्वेस्टमेंट में कॉन्सनट्रेटेड या केंद्रित रहना है या फिर डाइवर्सिफ़ाई यानि विविधता लानी है - ये ईमानदारी से ख़ुद का मूल्यांकन करने की बात है. ख़ुद को लेकर इस तरह की समझ आपको इंडेक्स और स्थापित ट्रैक रिकॉर्ड वाले क्वालिटी कंज़रेटिव इक्विटी फ़ंड्स के बीच चुनाव करने में गाइड करेगी. क्या आपके पास असल में एक्सपर्ट जैसा ज्ञान या महारथ है जो आपको बढ़त देती हो? या आप एक और निवेशक हैं, जिन्हें लेकर बफ़े ने कहा है कि वो इस बात को नहीं जानते कि ये एक कार्ड गेम में हैं और इसमें वही निशाने पर हैं?
हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए, इसका जवाब सीधे उनकी रेकमेंडेशन पर ही जाना चाहिए, पर थोड़े से बदलाव के साथ: इंडेक्स फ़ंड या एक कंज़रवेटिव इक्विटी फ़ंड ख़रीदें जिसका लॉन्ग-टर्म ट्रैक रिकॉर्ड साबित हो चुका हो, उसमें धीरे-धीरे निवेश करते रहें और अपनी दिमाग़ी ऊर्जा को बाज़ार को पछाड़ने की कोशिश में खपाने के बजाय किसी बेहतर चीज़ पर ख़र्च करें. हाल ही में हुई तेज़ गिरावट के बावजूद, दोनों इंडेक्स से लंबे समय के दौरान मिला प्रभावशाली रिटर्न ये दिखाता है कि ये "उबाऊ" नज़रिया उन भारतीय निवेशकों के लिए बहुत कारगर रहा है, जो बाज़ार की तमाम उठा-पटक के बावजूद इसके साथ बने रहे.
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