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इन दिनों सोशल मीडिया पर एक नज़र डालने से आपको लगेगा कि आर्थिक सर्वनाश छाया हुआ है. हैरान-परेशान निवेशकों के मैसेज से मेरा इनबॉक्स भरा पड़ा है, जो अपने "बर्बाद" पोर्टफ़ोलियो पर रो रहे हैं. उनका दर्द साफ़ दिखाई देती है, लेकिन थोड़ा सा परिप्रेक्ष्य या नज़रिया इस दर्द की सबसे अच्छी दवा हो सकती है.
आइए देखते हैं कि अभी क्या हो रहा है, जबकि मैं ये लिख रहा हूं. छह महीने की तस्वीर वास्तविक दर्द दिखाती है- BSE सेंसेक्स 11.5% गिर गया है, जो 9,400 से ज़्यादा प्वाइंट गंवा चुका है. स्मॉल-कैप का कहर और भी बड़ा है, जिसमें 23.7% की भारी गिरावट आई है, जो 13,200 से ज़्यादा प्वाइंट मिटा चुकी है. ये मामूली गिरावट नहीं हैं; ये पोर्टफ़ोलियो से ग़ायब हो रही असली वैल्थ के आंकड़े हैं. ये उन निवेशकों को ज़रूर विनाशकारी लगता है, जो छोटी कंपनियों में भारी निवेश करते हैं, ख़ासकर वे जो हाल ही में बाज़ार में शामिल हुए हैं. मैं उस दर्द को समझता हूं- महीनों या सालों के मुनाफ़े को हफ़्तों में ग़ायब होते देखना बेहद परेशान करने वाला होता है, फिर चाहे पिछले पैटर्न कुछ भी दिखाते रहें.
लेकिन यहीं पर परिप्रेक्ष्य या नज़रिया बेशक़ीमती हो जाता है. पांच साल के चार्ट देखें, और अचानक, कहानी नाटकीय रूप से बदल जाती है. इस दौरान सेंसेक्स ने 95% की प्रभावशाली बढ़ोतरी की है, जबकि स्मॉल-कैप में 221% की बड़ी ग्रोथ हुई है. इस "क्रैश" के बाद भी, धीरज रखने वाले निवेशक जो पांच साल तक इस राह पर बने रहे, उन्होंने अपने निवेश को काफ़ी हद तक बढ़ते देखा है. ये पैटर्न नया या आश्चर्य भरा नहीं है, हालांकि नए निवेशकों को इसकी गंभीरता अभूतपूर्व लग सकती है. छह महीने के चार्ट से पता चलता है कि बाज़ार में निवेश करने वाले अनुभवी लोग इसे एक क्लासिक गिरावट के तौर पर देखते हैं- तेज़, दर्दनाक और जैसे कभी न ख़त्म होने वाली हो. मगर बाज़ार के इतिहासकार आपको बताएंगे कि इस तरह की गिरावट वाला समय उतना ही निश्चत है जितना ये निश्चित है कि कल फिर सवेरा होगा. ये गिरावटें एक स्वस्थ बाज़ार की स्वाभाविक सांस लेने की लय हैं.
मैं लंबे समय से संतुलित नज़रिए की वकालत करता रहा हूं - मोटे तौर पर कहें तो, शायद 10-30% फ़िक्स्ड इनकम में, 30-40% लार्ज-कैप में और बाक़ी मिड और स्मॉल-कैप में बांटा जाए. ये महज़ दकियानूसी समझदारी नहीं है; ये बाज़ार की असलियत की समझ है. जिन निवेशकों ने अपने पोर्टफ़ोलियो को इस तरह से बनाया है, उनके लिए मौजूदा स्थिति मैनेज करने लायक़ है - शायद कुछ तकलीफ़ देने वाली है, मगर विनाशकारी नहीं है. अगर आप ख़ुद को हाल के उतार-चढ़ाव से दबा-कुचला महसूस कर रहे हैं, तो मैं "मैंने आपको पहले ही बता दिया था" जैसा ठंडा दिलासा नहीं दूंगा. हम सभी ने निवेश को लेकर ग़लतियां की हैं - मैं भी इसमें शामिल हूं. सवाल ये नहीं कि हम ग़लती करेंगे (हम करेंगे ही) बल्कि सवाल ये है कि क्या हम अपने अनुभवों से सीखेंगे.
बाज़ार में गिरावट को अपनी फ़ाइनेंशियल एजुकेशन की फ़ीस जैसा समझें. सबक़ महंगे हो सकते हैं, लेकिन अगर ठीक से समझे जाएं तो वे बेशक़ीमती होते हैं. बड़ी समझ ये नहीं है कि बाज़ार कभी-कभी गिरते हैं - बौद्धिक स्तर पर हर कोई ये बात जानता है. गहरा सबक़ ये है कि इस सच्चाई को जानने लेने भर से हम ऐसी स्थिति में भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से नहीं बच सकते हैं.
अगर आप अभी तनाव महसूस कर रहे हैं, तो इस अनुभव का इस्तेमाल करके अपनी रिस्क सहने की वास्तविक क्षमता पर दो बार सोचें. जब बाज़ार में उछाल पर हो, तो रिस्क उठाना आसान होता है; मंदी के दौरान, हमें उतार-चढ़ाव सहने की अपनी क्षमता का पता चलता है. शायद आपके एलोकेशन को एडजस्ट की ज़रूरत है, इसलिए नहीं कि बाज़ार चौकाने वाला होता है, बल्कि इसलिए कि उसके प्रति आपकी भावनात्मक प्रतिक्रिया अपेक्षा से कहीं ज़्यादा तीखी साबित हुई है.
याद रखें कि समय किसी भी निवेशक के शस्त्रागार में सबसे शक्तिशाली हथियार की तरह क़ायम है. पांच-साल के चार्ट केवल प्रभावशाली मुनाफ़ा ही नहीं दिखाते हैं; वे पिछली मंदी के दौरान धीरज रखने के लिए ईनाम भी देते हैं और इस बात को पूरी तरह से भुला दिया गया है. जिन निवेशकों ने वे रिटर्न हासिल किए, वे ज़रूरी नहीं कि दूसरों के मुक़ाबले ज़्यादा क़ाबिल थे - वे निवेश में बने रहने के बारे में ज़्यादा अनुशासित थे.
हालांकि, ये छह महीने की गंभीर गिरावट, बहुत से निवेशकों को परेशान करने वाली है, लेकिन एक व्यापक निवेश रणनीति के भीतर मैनेज की जा सकती है. जबकि स्मॉल-कैप निवेशक जिसने पोर्टफ़ोलियो की वैल्यू का आधा हिस्सा भाप बनते देखा है, वो गंभीर रूप से परेशान हो सकता है, संतुलित निवेशक जिसने ज़रूरी लार्ज-कैप और फ़िक्स्ड-इनकम पोज़ीशन बनाए रखी है, उनका अनुभव उतना विनाशकारी नहीं है. ये तीखा विरोधाभास ही है जिसके कारण डाइवर्सिफ़िकेशन अहम है - सिर्फ़ एक सिद्धांत की तरह नहीं, बल्कि बाज़ार के झटके के खिलाफ़ व्यावहारिक सुरक्षा के तौर पर.
मौजूदा गिरावट मार्केट को टाइम करने के बारे में भी एक अहम बात याद दिलाती है. बहुत से निवेशक जो बड़े उछाल के दौरान बाज़ार में आए थे, वे कभी भी ये नहीं समझ पाए कि भावनाएं कितनी जल्दी बदल सकती हैं. छह महीने पहले, बाज़ार अजेय लग रहे थे. आज, निराशा से भरे हैं. कोई भी चरम सीमा मौलिक आर्थिक वास्तविकताओं को सटीक रूप से नहीं दिखाती है - वे बस बाज़ार मनोविज्ञान के भावनात्मक पेंडुलम हैं जो एक चरम से दूसरे चरम पर झूल रहे हैं.
जो लोग ख़ुद को मौजूदा उठा-पटक को लेकर बहुत ज़्यादा संवेदनशील पाते हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि सबसे ज़्यादा दर्द के दौरान जल्दबाज़ी में लिए गए फ़ैसले शायद ही कभी लंबे समये के हितों का साथ देते हैं. बाज़ार ठीक हो जाएगा, जैसा कि हमेशा होता ही है. सवाल ये नहीं कि वे वापस उछलेंगे या नहीं, बल्कि ये है कि क्या हमारे पास ऐसा होने पर सही स्थिति में रहने के लिए समझ और अनुशासन होगा. और शायद सबसे बड़ी बात ये है कि क्या हम इस सबक़ को याद रखेंगे जब अगली बार बाज़ार में उछाल आएगा और सावधानी बेकार की चीज़ लगेगी.