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सेंसेक्स में 1,400 अंक से ज़्यादा की गिरावट, क्या आपको चिंता करनी चाहिए?

हम यहां मार्केट में जारी बिकवाली के कारणों का एनालिसिस कर रहे हैं

शेयर बाजार में गिरावट: आज सेंसेक्स में 1,400 से अधिक अंकों की गिरावट. क्या आपको चिंतित होना चाहिए?

हाल के हफ़्तों में भारतीय शेयर बाज़ार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. शुक्रवार, 28 फ़रवरी, 2025 को BSE सेंसेक्स 1,414 अंक लुढ़ककर बंद हुआ. इस प्रकार, इंडेक्स अपने रिकॉर्ड हाई से लगभग 14 फ़ीसदी नीचे आ चुका है, जबकि निफ़्टी मिडकैप 150 और स्मॉलकैप 250 इंडेक्स अपने शिखर से 20 फ़ीसदी से ज़्यादा गिरकर मंदी के दौर में जाते नज़र आ रहे हैं.

लगातार बढ़त के आदी निवेशकों के लिए, ये तेज़ गिरावट गंभीर सवाल खड़े करती है: बिकवाली की वजह क्या है और लंबी अवधि के निवेशकों को इस उथल-पुथल भरे माहौल में कैसे आगे बढ़ना चाहिए? आइए इस पर करीब से नज़र डालते हैं.

गिरावट का दौर है!

विभिन्न इंडेक्सों की गिरावट पर एक नज़र

इंडेक्स YTD 1 सप्ताह 1 महीना 3 महीने 1 साल
BSE सेंसेक्स -5.9 -2.9 -4.2 -7.8 1.6
BSE मिड कैप -17.2 -5.9 -9.3 -16.5 -1.5
BSE स्मॉल कैप -21.8 -6.9 -12.7 -22.4 -4.8
BSE 100 -7.9 -3.6 -5.2 -9.6 1.1
BSE 200 -9.2 -3.8 -5.7 -10.6 0.3
BSE 500 -10.7 -4.2 -6.4 -12.2 -0.8
% में रिटर्न
डेटा 28 फ़रवरी, 2025 तक का है

किन वजहों से बाज़ार में आ रही गिरावट?

1. वैश्विक स्तर पर टैरिफ़ से जुड़ी चिंताएं

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल में, कनाडा और मैक्सिको से होने वाले इंपोर्ट पर 25 फ़ीसदी टैरिफ की समयसीमा को 2 अप्रैल से घटाकर 4 मार्च, 2025 कर दिया है. उन्होंने चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त 10 फ़ीसदी शुल्क भी लगाया है और यूरोपीय यूनियन पर 25 फ़ीसदी टैरिफ लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.

इससे कई क्षेत्रों में व्यापक अनिश्चितता पैदा हो गई है, जिससे निवेशकों का भरोसा कम हुआ है और बिकवाली तेज़ हो गई है.

2. विदेशी निवेशकों की बिकवाली जारी है

विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारतीय इक्विटी में बेतहाशा बिकवाली कर रहे हैं. NSDL के आंकड़ों के अनुसार, FII ने 2025 में अब तक भारतीय बाज़ारों से ₹1,13,721 करोड़ निकाले हैं और उनका ध्यान चीन, ब्राजील और दक्षिण कोरिया जैसे सस्ते बाज़ारों पर बना हुआ है. अकेले जनवरी में ही FII ने ₹45,000 करोड़ के भारतीय शेयर बेचे, जिससे इंडेक्सों पर दबाव और बढ़ गया है.

3. सुस्त ग्रोथ, कमज़ोर अर्निंग

भारत की प्रमुख कंपनियों की अर्निंग में ग्रोथ निराशाजनक रही है. अक्तूबर-दिसंबर 2024 तिमाही में, निफ़्टी 50 कंपनियों ने अर्निंग्स में केवल 5 फ़ीसदी की ग्रोथ दर्ज की. इस तरह लगातार तीसरे महीने में सिंगल डिजिट ग्रोथ वृद्धि रही है.

हालांकि, भारत की GDP ग्रोथ के फ़ाइनेंशियल ईयर 2025 में सुस्त होकर 6.4 फ़ीसदी रहने के अनुमान से चिंता बढ़ गई है, जो पिछले फ़ाइनेंशियल ईयर में 7.2 फ़ीसदी रही थी. सुस्ती के ऐसे दौर में निवेशकों का सेंटिमेंट भी कमज़ोर हो गया है और भविष्य में अर्निंग्स की संभावनाओं को लेकर बढ़ गई हैं.

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4. आर्थिक दबाव के संकेत

सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने इकोनॉमिक ग्रोथ को समर्थन देने के लिए टैक्स में कटौती और 25 बेसिस प्वाइंट्स की रेपो रेट को घटाकर 6.25 फ़ीसदी करने सहित कई उपाय लागू किए हैं. हालांकि, इन क़दमों से ये भी संकेत मिलते हैं कि पॉलिसीमेकर्स आर्थिक दबाव को स्वीकार करते हैं, जिससे बाज़ार में और भी घबराहट बढ़ गई है.

5. रुपए पर दबाव

अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपया कमज़ोर हुआ है जो पहली बार ₹87 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया है. कमज़ोर रुपया इंपोर्ट को महंगा बनाता है और भारतीय कंपनियों पर विदेशी कर्ज़ का बोझ बढ़ाता है. इसका असर ख़ासकर तेल और गैस, टेक्नोलॉजी और मैन्युफ़ैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों पर पड़ता है.

इसके अलावा, एक कमज़ोर करेंसी विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय एसेट्स के आकर्षण को कम करती है, जिससे पूंजी का आउटफ़्लो बढ़ता है.

निवेशकों को क्या करना चाहिए?

अस्थिरता बाज़ारों का अभिन्न अंग है. इतिहास ने दिखाया है कि बाज़ार अंततः अपने पिछले स्तरों पर आ जाते हैं, जिसका फ़ायदा सब्र रखने वाले निवेशकों को मिलता है. भले ही, गिरावट चिंता में डाल सकती है, लेकिन ऐसे दौर में आकर्षक वैल्यूएशन पर क्वालिटी स्टॉक जमा करने का मौक़ा भी मिलता है. अगर आपके निवेश के उद्देश्यों में बदलाव नहीं हुआ है तो तो घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है.

कम समय के उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया देने के बजाय, इस समय का इस्तेमाल अपनी निवेश स्ट्रैटजी का फिर से आकलन करने और उसे मज़बूती देने में करें. इक्विटी, फ़िक्स्ड इनकम और दूसरी एसेट क्लास में फैला हुआ एक अच्छी तरह से डायवर्सिफ़ाइड पोर्टफ़ोलियो आपको आत्मविश्वास के साथ मंदी से बाहर निकलने में मदद कर सकता है.

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