मैं लंबे समय से मानता आया हूं - या यूं कहें कि मैं इसे सच मानता रहा हूं - कि निवेश की सफलता या असफलता पूरी तरह से निवेशक के मनोविज्ञान पर टिकी होती है. हम कह सकते हैं कि फ़लां-फ़लां इंसान ने ग़लत एसेट चुनने, मार्केट में ग़लत समय चुनने या ख़राब अर्थव्यवस्था के कारण बुरा प्रदर्शन किया, लेकिन ये केवल कुछ हद तक ही असर करने वाले कारण या लक्षण हैं. बुनियादी कारण हमेशा निवेशक की अपनी मानसिकता, समझ और नज़रिया ही होता है. बेशक़, ये बात सिर्फ़ निवेश पर ही नहीं बल्कि ज़िंदगी के कई दूसरे पहलुओं के लिए भी सच है.
असल में, ये वाक़ई दिलचस्प है कि कैसे इंसान किसी चीज़ का सच जानने के बावजूद ऐसा व्यवहार कर सकता है जैसे उसे उस चीज़ पर बिल्कुल भी यक़ीन ही न हो. समझ और असलियत के बीच इस उलटे संबंध की शायद सबसे अजीबोगरीब मिसाल कसरत या एक्सरसाइज़ होगी.
हम सभी जानते हैं - और पूरे यक़ीन के साथ - कि नियम से कसरत जैसी शारीरिक मेहनत हमारे स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है. इसके सबूत काफ़ी हैं, फ़ायदे हर तरफ़ दिखाई भी देते हैं और साइंस में भी इस पर कोई दो राय नहीं है. लेकिन फिर भी, हममें से कितने लोग हैं जो कसरत का सही रुटीन लगातार बनाए रखते हैं? कुछ जानने और करने के बीच का अंतर आश्चर्यजनक रूप से बहुत बड़ा है.
यही घटना निवेश की दुनिया में भी आश्चर्यजनक रूप से दिखाई देती है, ख़ासकर कंपाउंडिंग की पावर को लेकर. कसरत की तरह, कंपाउंडिंग जीवन की उन बहुत कम चीज़ों में से एक है जो ठीक वही देती है जिसका वादा करती है. ये कोई मार्केटिंग की चालबाज़ी या बेचने का चालाक तरीक़ा नहीं - इसमें तो बस गणित काम करता है. पैसे के अपने आप बढ़ने का अंकगणित तो गुरुत्वाकर्षण जितना ही भरोसा का है, फिर भी हमारा रवैया इसकी ताक़त को लेकर एक अजीब से शक़ का होता है.
हमारी इस महीने की कवर स्टोरी कंपाउंडिंग के मकैनिक्स में गहराई से उतरती है, लेकिन मैं ख़ुद को इस सवाल से ज़्यादा रोमांचित पाता हूं: हम इतनी साफ़ तौर से फ़ायदेमंद चीज़ के ख़िलाफ़ क्यों होते हैं? मुझे शक़ है कि इसका जवाब इस बात में छिपा है कि समय को लेकर हमारा मन क्या समझता है. कसरत और कंपाउंडिंग दोनों में एक जैसी ख़ूबियां हैं - जहां एक्शन और रिवॉर्ड के बीच काफ़ी ज़्यादा फ़ासला होता है. जब हम कसरत करते हैं, तो हम तुरंत एक शानदार शरीर नहीं बना लेते. ठीक इसी तरह, जब हम निवेश करते हैं, तो हम पहले कुछ सालों में कोई नाटकीय नतीजे नहीं देखते.
ख़ासतौर से आज की दुनिया में ये देर से मिलने वाली संतुष्टि (delayed gratification) बहुत चुनौती भरी चीज़ है, क्योंकि इस दौर में हम तुरंत नतीजे पाने के आदी हो गए हैं. हम खाना ऑर्डर करने के मिनटों में इसकी डिलीवरी पा सकते हैं, किसी भी फ़िल्म को तुरंत स्ट्रीम कर सकते हैं या एक ही दिन के भीतर पैकेज डिलीवर करवा सकते हैं. इस तात्कालिकता ने शायद उन तरीक़ों पर भरोसा करने की हमारी क्षमता को कम कर दिया है जो नतीजे दिखाने में समय लेते हैं.
लेकिन यहां कुछ और भी है - कुछ ज़्यादा बारीक़. कसरत और कंपाउंडिंग दोनों में शुरुआती दौर कोई नतीजे नहीं देने वाले लग सकता है. कसरत के पहले कुछ महीने तो अक्सर नतीजों के बजाए दर्द बढ़ाने वाले ज़्यादा लगते हैं. इसी तरह, कंपाउंडिंग के पहले कुछ साल इतने मामूली लग सकते हैं कि इंसान निराश ही हो जाए. इनमें एक ख़ास पड़ाव के बाद ही ऐसे नतीजे मिलने लगते हैं जो निवेश की कोशिशों के अनुपात में महसूस होते हैं.
हमारी कवर स्टोरी का डेटा इसे साफ़-साफ़ दिखाता है. ₹10,000 के मासिक निवेश में रक़म पर सही मायनों में रिटर्न दिखाई देने में क़रीब एक दशक लग जाता है. और ठीक यही वो समय होता है जब ज़्यादातर निवेशक धीरज खो बैठती हैं. वे शुरुआती सालों का मामूली फ़ायदा देख कर ये नतीजा निकालते हैं कि ये खेल उनके खेलने लायक़ नहीं है. ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई कुछ महीनों के बाद कसरत करना छोड़ दे क्योंकि वो उतना फ़िट नहीं हो पाया जितना होना चाहता था.
इस बात को और भी दिलचस्प बना देता है कि कैसे हम कम समय में हासिल की जाने वाली चीज़ को ज़्यादा अहमियत देते हैं, और लंबे समय में हासिल होने वाली चीज़ को कम करके आंकते हैं. हम एक महीने की कसरत से नाटकीय नतीजों की उम्मीद करते हैं लेकिन ये कल्पना नहीं कर पाते हैं कि उसे लगातार एक दशक तक करते रहने से कितना बड़ा फ़र्क़ पैदा हो सकता है. इसी तरह, हम एक साल में 10 प्रतिशत रिटर्न मिलने से हताश हो जाते हैं लेकिन ये समझ नहीं आता कि 20 साल में कंपाउंडिंग कैसे हमारी संपत्ति कई गुना बढ़ा सकती है.
इसका समाधान शायद और ज़्यादा शिक्षा या जानकारियां देने में नहीं है - हम पहले से ही इन सच्चाइयों को जानते हैं - बल्कि ऐसे प्रोसेस में गहरा विश्वास पैदा करने में है जिनमें समय लगता है. ये कंपाउंडिंग को अपना जादू चलाने देने के लिए धीरज विकसित करने के बारे में है, फिर बात चाहे फ़ाइनांस की हो या फ़िटनेस की. आख़िर, साफ़-साफ़ दिखने वाले सच पर विश्वास की शुरुआत करने का सबसे अच्छा समय कल का था. दूसरा सबसे अच्छा समय आज है.