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टैक्स इंसेंटिव: एक बहस आदत बनाने पर

आलोचना करने वाले फ़ाइनेंशियल फ़्रीडम के फ़ैसलों की आज़ादी की बात करते हैं, लेकिन अनुभव कहता है कि व्यवहार को दिशा देने वाले हल्के धक्के या प्रेरणाएं ही निवेश की गहरी आदतें गढ़ते हैं.

टैक्स इंसेंटिव: निवेश की आदतें गढ़ने का सही तरीका

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बजट पर मेरे पिछले कॉलम में मैंने टैक्स की बचत से दूर जाने के नतीजों पर चर्चा की थी, इसकी प्रतिक्रिया में पैसों को लेकर लोगों के व्यवहार पर एक दिलचस्प बहस खड़ी हो गई है. जहां कुछ पाठकों ने मेरे इस नज़रिए का पूरा समर्थन किया कि टैक्स इंसेंटिव लोगों में बचत की आदतें बढ़ाने में एक बड़ी प्रेरणा का काम करते हैं. वहीं कुछ दूसरे लोगों ने ज़्यादा आज़ादी वाला नज़रिया अपनाने के पक्ष में तर्क दिए और सुझाया कि लोगों को टैक्स कोड के ज़रिए सरकारी दखल के बिना पैसों से जुड़े विकल्प तय करने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए.

ये चर्चा इंसानी व्यवहार पर एक बुनियादी सवाल खड़ा करती है: क्या बाहरी इंसेंटिव असलियत में गहरी आदतों को आकार देते हैं, या ये केवल थोड़े समय के कंप्लायंस ही बनाते हैं? बिहेवियरल इकोनॉमिक्स के सबूत लगातार व्यवहार में स्थाई बदलावों को बढ़ावा देने के लिए अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए इन 'धक्कों' या प्रेरणाओं की ताक़त की ओर इशारा करते हैं, ख़ासतौर से बात जब पैसौं से जुड़े फ़ैसलों की हो.

कामकाजी ज़िंदगी शुरू करने वाले एक आम युवा के बारे में सोचिए. यूनिवर्सिटी से बाहर निकलते ही, उन्हें पहली आमदनी मिलनी शुरू होती है और उसके साथ ही तुरंत ख़र्च करने के कई प्रलोभन भी मिलने लगते हैं. उनका स्वाभाविक झुकाव, ख़ासतौर पर हमारे तेज़ी से बढ़ते कंज़्यूमर-ओरिएंटेड समाज में, बचत के बजाय ख़र्च करने का होता है. यहीं पर टैक्स बचाने वाले निवेश एक बड़ी भूमिका निभाते हैं. ये कोई दबाव नहीं होता, बल्कि पैसों को सही तरीक़े से मैनेज करने की समझदारी का एक हल्का धक्का या प्रेरणा होती है.

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टैक्स से जुड़ी बचत की ख़ूबसूरती उनके दोहरे फ़ायदे में छुपी है. टैक्स बचाना एक तुरंत मिलने वाली संतुष्टि के शुरुआती हुक का काम करती है, लेकिन असली बदलाव निवेश के लॉक-इन पीरियड के दौरान होता है. इन सालों के दौरान, युवा निवेशक कंपाउंडिंग की ताक़त को देखते हैं, मार्केट के उतार-चढ़ाव का सामना करना सीखते हैं, और सबसे बड़ी बात, लंबे समय के निवेश के साथ मनोवैज्ञानिक स्तर पर तालमेल बैठा लेते हैं.

हालांकि, मेरे आलोचकों कहते हैं कि जो लोग स्वाभाविक रूप से बचत करना चाहते हैं, वे टैक्स के फ़ायदों की परवाह किए बिना भी ऐसा ही करेंगे, जबकि दूसरे लोग तमाम प्रोत्साहनों के बावजूद ख़र्च ही करेंगे. हालांकि ये बात, दो किनारों की अति में रहने वालों के लिए सही हो सकती है, मगर बीच का रास्ता लेने वालों और उन लोगों के की बात नहीं हो सकती जिन्होंने अब तक कोई पुख़्ता फ़ैसला नहीं किया होता और उनका झुकाव किसी भी तरफ़ हो सकता है. ऐसे तमाम लोगों के लिए, टैक्स के इंसेंटिव अक्सर बचत करने की आदत गढ़ने के लिए एक निर्णायक धक्के या प्रेरणा का काम करते हैं.

इसी बात का बड़ा सबूत है इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) का सफल होना. कई युवा प्रोफ़ेशनल जो शुरुआत में केवल टैक्स के फ़ायदों के लिए म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करते हैं, वे तीन साल के लॉक-इन पीरियड के दौरान इक्विटी निवेश की क्षमता को जान जाते हैं. ये होल्डिंग पीरियड, जो अनिवार्य होता है, अक्सर उनकी सोच को महज़ टैक्स बचाने की तलाश से आगे ले जाकर लॉन्ग-टर्म इक्विटी इन्वेस्टमेंट से बड़ी पूंजी खड़ी करने की समझ में बदल देता है. ये अनुभव अक्सर उन्हें इक्विटी फ़ंड में और ज़्यादा सिस्टमैटिक प्लान खोजने के लिए प्रेरित करता है. इससे मार्केट के उतार-चढ़ाव को संभालने का आत्मविश्वास और लंबे अर्से के लिए निवेश में बने रहने का धैर्य विकसित होता है.

इसके अलावा, टैक्स इंसेंटिव पाने के लिए किए गए निवेश एक और महत्वपूर्ण काम करते हैं: वे बचत के लिए एक सुलझा हुआ नज़रिया बनाते हैं. हर साल टैक्स बचाने की कवायद को लेकर आख़िरी समय में की जाने वाली भागदौड़ को लेकर अक्सर मज़ाक होते हैं, लेकिन इससे नियमित निवेश करने की एक लय बन जाती है. इस तरह का नियम लंबे समय में पूंजी खड़ी करने के लिए ज़रूरी है. अनगिनत रिसर्च दिखाती है कि सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट, मार्केट को टाइम करने की कोशिशों से कहीं बेहतर नतीजे देता है.

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जैसे-जैसे हम एक आसान टैक्स रिज़ीम की ओर बढ़ रहे हैं, जो अपनी कंप्लायंस की सरलता के लिए फ़ायदे की चीज़ है, हमें प्रेरणा देने वाले इन इनोवेटिव तरीक़ों को बनाए रखने के नए रास्ते तलाशने होंगे. इसके लिए सरकार शायद टैक्स की बचत के ऐसे नए तरीक़े खोज सकती है जो इंसेंटिव देने वाले हों और आसान टैक्स स्ट्रक्चर के साथ-साथ लोगों में निवेश की अच्छी आदतें भी बनाते हों. NPS की सफलता बताती है कि ऐसे प्रोडक्ट डिज़ाइन किए जा सकते हैं जो आसान भी हों और असरदार तरीक़े से प्रोत्साहित भी करते हों.

ये बात लोगों को पैसे बचाने के लिए मजबूर करने की नहीं है, बल्कि ऐसा माहौल तैयार करने की है जो पैसों के लेकर समझदारी भरे विकल्प आसान बनाता हो. मुझे इस बात पर कोई शक़ नहीं है कि टैक्स पॉलिसी सोच-समझ कर तैयार किए गए इंसेंटिव के ज़रिए आर्थिक भलाई को बढ़ावा दे सकती है. इस दौर के बदलते पारिवारिक ढांचे और लोगों की लंबी होती उम्र के कारण रिटायरमेंट प्लानिंग बेहद ज़रूरी हो गई है. आज, लंबे समय के लिए की जाने वाली बचत व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों तरह के हितों को साधती है.

टैक्स इंसेंटिव की ख़ूबसूरती बचत पर उसके तत्काल पड़ने वाले असर में नहीं, बल्कि निवेश के दरवाज़े के भीतर आने के शुरुआती अनुभव में है, और यही निवेश की दुनिया से लोगों का परिचय कराती है. एक बार जब ये दरवाज़ा पार हो जाता है, तो फ़ाइनेंशियल प्लानिंग कई लोगों के स्वभाव का हिस्सा बन जाती है जो सिर्फ़ टैक्स बचाने से कहीं बड़ी बात होती है. बदलाव लाने की ये क्षमता ही है, जो टैक्स से जुड़ी बचत को हमारे नए टैक्स फ़्रेमवर्क में शामिल रखने लायक़ बनाती है.

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